छत्तीसगढ़ के चांपा जिले में कुटीर उद्योग एवं उनमें कार्यरत् श्रमिकों की आय एवं रोजगार का विश्लेषण (कोसा उद्योग के विशेष संदर्भ में)

 

अर्चना सेठी

शा. नवीन कन्या महाविद्यालय, जांजगीर छत्तीसगढ़

 

सारांश

कोसा उद्योग कृषि मूल का वन पर आधारित उद्योग है जो अधिकाशंतः हाथकरघा द्वारा संचालित होता है। कोसा उद्योग भारतीय ग्रामीण  अर्थ व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंश है। कितना भी औद्योगिकीकरण क्यों हों उससे हिंदुस्तान में बड़े पैमाने पर इस घरेलू उद्योग के विकास की संभावना आवश्यकता को दूर नहीं किया जा सकता है। कम पूंजी निवेश, उत्पादन की सरल तकनीक, अधिक रोजगार, आर्थिक विकेन्द्रीकरण, गांवों की शहरों पर निर्भरता में कमी, कृषि कार्यों में लगे लोगों की बेरोजगारी का अंत, बेकार महिलाओं को काम, शहरों की ओर ग्रामों से पलायन पर स्वाभाविक प्रतिबंध, स्थानीय आवश्यकता के अनुरूप उत्पादन, उपभोक्ता शोषण की कमी, श्रम सम्मान नियमित रोजगार, आय का समान वितरण, महाजन के शोषण से मुक्ति आदि समस्त विशेषतायें कोसा उद्योग जैसे कुटीर उद्योग में समाहित है।

 

प्रस्तावना

किसी भी देश की आर्थिक समृद्धि वहां के निवासियों के अथक श्रम में निहित रहती है। प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता से सम्पन्न देश भी पर्याप्त एवं कुशल श्रम के अभाव में मनोवांछित प्रगति नहीं कर सकता है। चाहे देश की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान हो अथवा उद्योग प्रधान, श्रम के महत्व को कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता है। विश्व के प्रगतिशील देशों का इतिहास इस बात का गवाह है कि उनकी प्रगति का प्रमुख कारण वहां के निवासियों का श्रम ही है। श्रम उत्पत्ति का अविभाज्य साधन है। प्रत्येक व्यक्ति श्रम करके अधिक से अधिक सुख प्राप्त करना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने नये-नये यंत्रों एवं मशीनों का आविष्कार किया है। मनुष्य वर्तमान में कृषि व्यापार एवं औद्योगिक क्षेत्रों में जो सफलता प्राप्त की है वह उसके सतत् परिश्रम का ही परिणाम है।

 

हमारे देश में श्रमिकों की समस्या वैदिक तथा रामायण काल से चली रही है। कुटीर तथा लघु उद्योगों की प्रचुरता के उपरांत भी दासता की विभीषिका ने श्रमिकों का शोषण जारी रखा है। प्रारंभ में हमारे देश में निर्मित शाॅल, मलमल, रेशमी साड़ियों तथा कालीनों की व्यापक विदेशी मांग थी तथा इसमें कार्यरत कारीगर तथा श्रमिक अपनी कला एवं परिश्रम का पूरा भुगतान पाते थे परन्तु ब्रिटिश शासन ने अपने निहित स्वार्थों के कारण लघु तथा कुटीर उद्योगों पर कुठाराघात ही नहीं किया वरन् उनकी कमर तोड़कर रख दी। औद्योगिकरण की आंधी ने समाज को दो वर्गों में बांट दिया - एक शोषक वर्ग तथा दूसरा शोषित। उद्योगपति तथा पूंजीपति स्वयं को मालिक तथा श्रमिकों को नौकर मानने लगे, जिसके कारण आज बड़े से बड़े उद्योग से लेकर लघु उद्योगों तक में वर्ग संघर्ष का शिलान्यास हो चुका है।

 

कोसा उद्योग कृषि मूल का वन पर आधारित उद्योग है जिसमें हजारों श्रमिक कार्यरत हैं। ये कोसा श्रमिक दिन में 10-12 घंटे कठिन परिश्रम करने के बाद भी दयनीय दशा में अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। चांपा जिले में प्राकृतिक तथा कृत्रिम (टसर तथा मलबरी) ककून में उत्पादन की व्यापक संभावनाएं हैं तथा इस उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की अशिक्षा, अज्ञानता तथा असंगठित होने के कारण होने वाले आर्थिक शोषण की जानकारी प्राप्त करने हेतु ही इस विषय का चयन किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन के लिए विभिन्न प्रतिदर्श उपयोग में लाये गये है। अपेक्षित सामाग्री संकलन हेतु अनुसूची की सहायता ली गई है। संबंधित अधिकारियों, कर्मचारियों तथा श्रमिकों से साक्षात्कार, विद्वानों से भेंट, उपलब्ध सामाग्री का अध्ययन आदि प्राथमिक आंकड़ों के अतिरिक्त विभिन्न प्रकाशनों पर आधारित द्वितीयक समंकों का प्रयोग किया गया है।

 

अध्ययन क्षेत्र

चांपा जिला छत्तीसगढ़ मैदान के मध्य में स्थित है। चांपा जिला 2106‘ से 2204‘ उत्तरी अक्षांश तथा 8203‘ से 832‘ पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है। जिले का क्षेत्रफल 3672.35 वर्ग कि.मी. है तथा जनसंख्या 1316140 है। चांपा जिले का निर्माण 25 मई सन् 1998 को किया गया। इस जिले का मुख्यालय जांजगीर में है। इस जिले के उत्तर में कोरबा जिला, पूर्व में रायगढ़ जिला, पश्चिम में बिलासपुर जिला तथा दक्षिण में रायपुर जिला स्थित है। ‘‘जनगणना के अनन्तिम आंकड़ों के अनुसार 1 मार्च 2001 को जिले की जनसंख्या 13,16,140 है। जिसमें से 6,58,377 पुरूष एवं 6,57,763 स्त्रियां है। दशकीय वृद्धि दर 1981 से 1991 के बीच 31.35 थी जो 1991 से 2001 के बीच घटकर 18.55 हो गई। स्त्री पुरूष अनुपात 1981 में 1007 था जो 2001 में 999 हो गया तथा जनसंख्या का घनत्व 1991 में 288 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. था जो 2001 में 342 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. हो गया। 1991 में चांपा जिले की कुल जनसंख्या 11,10,200 थी जो कि राज्य की कुल जनसंख्या का 6.33 है। यह जिला जनसंख्या की दृष्टि से राज्य में 5वें स्थान पर है। घनत्व की दृष्टि से प्रथम तथा स्त्री पुरूष अनुपात के अनुसार 8 वें स्थान पर है। जिले में 8 नगर है।

 

अध्ययन का उद्देश्य

      प्रस्तुत शोध प्रबंध में मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है -

1.    कोसा उद्योग की कार्यप्रणाली का अध्ययन करना।

2.    इस उद्योग में कार्यरत श्रमिकों के रोजगार, आय एवं गरीबी का अध्ययन करना।

3.    कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों में कार्य के प्रति संतुष्टि की जानकारी प्राप्त करना।

4.    कोसा उद्योग तथा उसमें कार्यरत श्रमिकों की विभिन्न समस्याओं को जानना एवं उन्हें दूर करने हेतु आवश्यक सुझाव प्रस्तुत करना।

 

परिकल्पना का परीक्षण

      प्रस्तुत अध्ययन में मुख्यतः दो परिकल्पनायें रखी गई है।

1.    इस उद्योग में कार्यरत विभिन्न वर्ग के निदर्श परिवार अपने वर्तमान कार्य से संतुष्ट है।

2.    इस उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिक परिवारों (बुनकरों) की औसत आय के मध्य कोई अंतर नहीं है।

 

शोध पद्धति

(आंकड़ों का संग्रहण: यह अध्ययन प्राथमिक समंकों पर आधारित है। आंकड़ों के संग्रहण हेतु सर्वप्रथम अनुसूची का निर्माण किया गया जिसमें चांपा जिले के कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों के सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं तथा उनकी आय एवं रोजगार की स्थिति से संबंधित प्रश्नों को समावेशित किया गया। अनुसूची का सर्वप्रथम पूर्व परीक्षण किया गया ताकि आवश्यकतानुसार इसमें विषय से संबंधित अन्य प्रश्नों को रखा जा सके।

 

संदर्भ वर्ष (2007-2008) में चांपा जिले में कोसा उद्योग में 21200 श्रमिक परिवार कार्यरत् थे। अध्ययन हेतु निदर्श के रूप में समग्र का 2 अर्थात् कुल 425 श्रमिक परिवारों का चयन दैव निदर्शन प्रणाली के आधार पर किया गया। चांपा जिले में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत क्षेत्रों में कार्यरत कोसा श्रमिकों का चयन संभावना अनुपात रीति के द्वारा किया गया, ताकि सभी वर्गों को समान प्रतिनिधित्व मिल सके। निदर्श श्रमिकों के (425) चयन हेतु चांपा जिले के 8 विकासखंडों में से कोसा उद्योग में कार्यरत (तालिका क्र. 4.17) श्रमिकों के साथ ही स्त्री श्रमिकों का भी चयन किया गया। संदर्भ वर्ष 2007-08 में चांपा जिले में कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों में 58.9 पुरूष श्रमिक तथा शेष 41.1 स्त्री श्रमिक है। दोनों वर्गों को समान प्रतिनिधित्व देने हेतु कुल निदर्श श्रमिक परिवारों में से 58.9 श्रमिक परिवारों में पुरूष श्रमिकों से तथा शेष 41.1 श्रमिक परिवारों में स्त्री श्रमिकों से सूचना एकत्र की गई।

 

()   आंकड़ों का विश्लेषण

अध्ययन में सम्मिलित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु विभिन्न सांख्यिकीय तकनीकियों का प्रयोग किया गया जिसमें कई वर्ग एवं प्रमाप विभ्रम प्रमुख है।

 

कोसा उत्पादन की विधि

      कोसा उद्योग से संबंधित संपूर्ण कार्यों को निम्न क्रमों में बांटा जा सकता है -

वृक्षारोपणय तितलियों से जोड़े प्राप्त करनाय अण्डे प्राप्त करनाय अण्डे साफ करनाय कृमि पालनय फलों का संग्रहणय शंखी मारनाय फलों को उबालना, फलों में भाप देनाय फलों को सुखानाय फलों से रेशे प्राप्त करनाय सुपर फाइन यार्न, घींचा का कटिया यार्न , झुर्री यार्नय रीलिंग करनाय कपड़ों का ताना या बाना तैयार करनाय करघे पर वस्त्र तैयार करनाय वस्त्रों की धुलाई

ठण्डी धुलाई, गर्म धुलाइय कोसा वस्त्रों की रंगाई, छपाई, प्रेस।

चांपा जिले में सन् 2007-08 में लगभग 21200 श्रमिक परिवार कोसा कार्य से जुड़े हुये है।

 

तालिका 1 - विकासखंड अनुसार चांपा जिले में कोसा उद्योग में लगे श्रमिक परिवार

क्र.   विकासखंड   श्रमिक परिवार

1.    डभरा 2000

2.    मालखरौदा   1000

3.    सक्ती       3500

4.    जैजैपुर      700

5.    बम्हनीडीह   8000

6.    बलौदा 3000

7.    टकलतरा    2000

8.    नवागढ़      1000

      क्ुल 21200

स्रोत: एम.पी.एस.टी.सी, सिवनी 2007

जिले में 21200 श्रमिक परिवार इस उद्योग में कार्यरत है। टसर उत्पादन में अविभाजित मध्यप्रदेश का देश के उत्पादन में दूसरा स्थान है। प्रथम स्थान बिहार को प्राप्त है। भारत के कुल तसर निर्यात में 1995 में लगभग 7.10 भाग मध्यप्रदेश निर्यात करता था। अविभाजित मध्यप्रदेश में बिलासपुर जिले को अग्रणी स्थान प्राप्त है। यह क्षेत्र हाथकरघों की दृष्टि से प्रथम स्थान रखता है। यह उद्योग वर्तमान में चांपा जिले के लगभग 100-150 ग्रामों में सिवनी, कुरदा, पंतोरा, बलौदा, भिलाई, जावलपुर, बुची हरदी, हरदी, सरखों, चांपा, चोरिया, भोजपुर, सारागांव, बिर्रा, पोड़ीशंकर, रहौद, मुरना, दुरवा, जैजैपुर, रायपुरा, बेलादुला, बाराद्वार, ओड़केरा, सक्ती, सोंठी, झूलकदम, शकर्रा, टेमर, मोंहदी, पोरथा, नन्दौर, अखराभाठा, ठठारी, अड़भार, जांजगीर, अकलतरा, दल्हापोड़ी, चंद्रपुर आदि में कोसा वस्त्र बुने जाते हैं। इनमें से चांपा के वस्त्रों की मांग अपनी आकर्षकता के कारण बहुत अधिक है तथा चंद्रपुर की कलात्मक साड़ी बहुत प्रसिद्ध है। जिले में बुने हुये कोसा कपड़े गोरखपुर, इलाहाबाद, कोलकाता, वाराणसी, हैदराबाद, नागपुर मुम्बई जैसे महानगरों को जाता है। वहां से निर्यात कर इसे विदेशों में निर्यात भी करते है।

 

कोसा वस्त्र निर्माण में कोसाफल जगदलपुर (बस्तर), सिंहभूमि (बिहार) आदि से मंगाया जाता है। छोटे पैमाने पर कटघोरा, पाली, बलौदा, कोरबा आदि में उगाया जा रहा है। कोकून जंगल से आदिवासी लाते है जिन्हें कोसा व्यवसायियों को बेचते हैं। सामान्यतः प्रति हजार कोसा फल की कीमत 1000 से 1200 तक होती है। कोसा व्यापारी कोसा फल को टेक्सटाइल सिवनी से भी प्राप्त कर लेते हैं। इन कोसा फलों को उबालकर सामान्यतः महिलाओं को दिया जाता है जो उन 7-8 कोसा फलों को जमीन में रखकर उसे पानी से छूकर अपने जांघों पर रकड़ती है जिससे रेशे निकल आती है। कुशल महिलायें इसे दूसरे हाथ में रखे बेलनाकार घिर्री में लपेटते जाती है। 100 कोकून से रेशे निकालने पर 5/ रूपये मिलता है। सर्वे के अनुसार चांपा जिले में कोसा उद्योग में लगे श्रमिकों में से लगभग 98 देवांगन समाज के है। कोसा उद्योग से जुड़े होने के कारण इन्हें कोष्टा भी कहा जाता है, परन्तु इस नाम से वे अपमान महसूस करते है तथा देवांगन कहलाना पसंद करते हैं।

 

कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की सामाजिक, आर्थिक विशेषताएं

प्रस्तुत अध्ययन को दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग चांपा जिले के कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिक परिवारों के सामाजिक एवं आर्थिक विशेषताओं से संबंधित है। जबकि अध्याय का द्वितीय भाग के अंतर्गत कोसा उत्पादन प्रक्रिया तथा चांपा जिले में कोसा उद्योग का संक्षेप में वर्णन किया गया है।

 

(निदर्श श्रमिकों की सामाजिक, आर्थिक विशेषताएं

मनुष्य जिस वातावरण में रहता है उसका प्रभाव उसकी कार्यक्षमता एवं कार्यकुशलता पर पड़ता है। प्रस्तुत अध्याय में कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिकों की सामाजिक एवं आर्थिक विशेषताओं का वर्णन किया गया है। निदर्श श्रमिकों के सामाजिक एवं आर्थिक विशेषताओं से संबंधित आंकड़ों के विश्लेषण से जो निष्कर्ष प्राप्त हुये है वे निम्न है -

 

1.    व्यक्तिगत विशेषतायें

()   लिंग एवं आयु

कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिकों की लिंग एवं आयु का अध्ययन से यह स्पष्ट है कि निदर्श पुरूष श्रमिक 30-39 आयु वर्ग में सबसे अधिक (30.4) तथा निदर्श स्त्री श्रमिकों में 20-29 आयु वर्ग में सबसे अधिक (28.57) है। निदर्श पुरूष श्रमिकों में सबसे कम 3.2 श्रमिक 60 से अधिक आयु वर्ग में है तथा निदर्श स्त्री श्रमिकों में सबसे कम 6.86 श्रमिक 60 से अधिक आयु वर्ग में है। ;तालिका 2द्ध

तालिका 2-कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिकों का लिंग और आयुवर्गानुसार वितरण

क्र.   आयु वर्ग (वर्ष मेंलिंगानुसार

            पुरूष  स्त्री   क्ुल

            संख्या प्रतिशत     संख्या प्रतिशत     संख्या प्रतिशत

1.    15-19  10    4.2   15    9.0   25    5.9

2.    20-29  60    24.0  50    28.5  110   25.9

3.    30-39  76    30.4  46    26.3  122   28.7

4.    40-49  66    26.2  30    17.0  96    22.6

5.    50-59  30    12.0  22    12.4  52    12.2

6.    60 से अधिक 8     3.20  12    6.8   20    4.7

योग  250   100.0 175   100.0 425   100.0

कुल से प्रतिशत    58.82       41.18       100.0

 

तालिका 3-कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिकों का लिंग और आयुवर्गानुसार वितरण

क्र.   शैक्षणिक स्तर     लिंगानुसार श्रमिक

                    पुरूष                स्त्री               कुल

            संख्या प्रतिशत     संख्या प्रतिशत     संख्या प्रतिशत

.   अशिक्षित    60    (24)  130   (74.29)     190   (44.71)

.    शिक्षित

1. केवल साक्षर   

60   

(16) 

20   

(11.43)    

60   

(14.12)

      2. प्राथमिक 90    (36)  15    (8.57)      105   (24.71)

      3. माध्यमिक      30    (12)  8     (4.57)      38    (8.94)

      4. हाॅयर सेकंडरी  30    (10)  2     (1.14)      27    (6.35)

      5. स्ना./अधिक    25    (2)   ..    ..    5     (1.17)

योग        (250) (100) (175) (100) 425   (100)

      कुल से प्रतिशत    (58.82)           (41.18)           (100)

     

तालिका 4-व्यवसाय के आधार पर निदर्श श्रमिकों का लिंगानुसार विवरण

क्र.   व्यवसाय    लिंगानुसार श्रमिक

            पुरूष  स्त्री   कुल

            संख्या प्रतिशत     संख्या प्रतिशत     संख्या प्रतिशत

1.    कोकून उबालना    15    (6.00)      -      -      15    (3.53)

2.    कोकून से रेशे निकालना  -      -      105   (60.00)     105   (24.71)

3.    रीलिंग -      -      70    (40.00)     70    (16.47)

4.    कपड़ा बुनना 135   (14)  -      -      135   (31.10)

5.    रंगाई 15    (6.00)      -      -      15    (3.53)

6.    कपड़े की धुलाई या ब्लीचिंग     20    (8.00)      -      -      20      (4.71)

7.    कुण्डी लगाना      15    (6.00)      -      -      15    (3.52)

8.    रफू करना   15    (3.20)      -      -      8     (1.88)

9.    प्रेस एवं पेकिंग कार्य      17    (6.80)      -      -      17    (4.67)

10.   कंपनी में देख-रेख कार्य   25    (10.00)     -      -      25    (5.88)

      योग  250(58.82)  (10.00)     175(41.18)  (100.00)    425   (100.00)

नोट: कोष्टक में दिया हुआ प्रतिशत कुल श्रमिकों में प्रतिशत को दर्शाता है।

 

 

(पप) वैवाहिक स्थिति एवं जाति

निदर्श श्रमिकों का 87.06 श्रमिक विवाहित है। चांपा जिले में कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों का 98.86 श्रमिक देवांगन जाति के हैं। केवल 1.24 श्रमिक अन्य जाति के है। देवांगन जाति के लोग सदियों से कोसा वस्त्र निर्माण का कार्य करते रहे है। ;तालिका 3द्ध

 

निदर्श श्रमिकों के शैक्षणिक स्तर का अध्ययन करने से यह स्पष्ट है कि निदर्श श्रमिकों में 44.71 श्रमिक पुरूष श्रमिक है तथा 68.42 श्रमिक स्त्री श्रमिक है। इसी तरह कुल निदर्श श्रमिकों में 14.12 श्रमिक केवल साक्षर है जिनमें पुरूष श्रमिक 66.67 तथा स्त्री श्रमिक 33.33 है। कुल निदर्श श्रमिकों में 24.71 प्राथमिक स्तर तक शिक्षित है जिसमें पुरूष श्रमिक 85.71 तथा महिला श्रमिक 14.29 है। माध्यमिक स्तर तक शिक्षित श्रमिकों का प्रतिशत कुल निदर्श श्रमिकों में 8.94 है जिसमें पुरूष श्रमिकों का प्रतिशत 78.94 तथा महिला श्रमिकों का योगदान 21.06 है। निदर्श के रूप में लिये गये श्रमिकों में 6.35 श्रमिक हाॅयर सेकण्डरी तक शिक्षित है जिसमें पुरूष श्रमिकों का योगदान 92.59 तथा महिला श्रमिकों का योगदान 7.41  है। स्नातक या अधिक स्तर तक शिक्षित श्रमिकों का प्रतिशत 1.17 है जिसमें से पुरूष श्रमिकों का योगदान 100 है।

 

2.    व्यावसायिक विशेषतायें

केसा उद्योग प्राथमिक व्यवसाय में सम्मिलित है। यह कृषि एवं वन पर आधारित उद्योग है। कोसा उद्योग को दो भागों में बांटा जा सकता है-

1. शहतूत पौधारोपण से कोकून उत्पादन की प्रक्रिया।

2. कोकून से वस्त्र निर्माण प्रक्रिया।

केकून से वस्त्र निर्माण क्रिया में अनेक छोटे-छोटे प्रक्रियाओं अर्थात् व्यवसाय सम्मिलित है जो निम्नलिखित है जिनमें कार्यरत श्रमिकों को ही

निदर्श के रूप में लिया गया है-

1. कोकून उबालना

2. कोकून से रेशे निकालना

3. रीलिंग

4. कपड़ा बुनना

5. रंगाई

6. कपड़े की धुलाई या ब्लीचिंग

7. कुण्डी लगाना

8. रफू करना

9. प्रेस एवं पेकिंग कार्य

10 देख-रेख कार्य

 

()   व्यवसाय एवं लिंग

कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिकों के अध्ययन से स्पष्ट है कि कोकून से रेशा निकालने तथा रीलिंग का कार्य निदर्श स्त्री श्रमिकों द्वारा किया जाता है जिनका प्रतिशत कुल निदर्श श्रमिकों का 41.18 है तथा कोकून उबालना, कपड़ा बुनना, रेशे या कपड़ा रंगना, कपड़े की धुलाई या ब्लीचिंग करना, कुण्डी लगाना, प्रेस एवं पेकिंग कार्य, रफू करना, कंपनी में देख-रेख का कार्य निदर्श पुरूष श्रमिकों द्वारा किया जाता है। इसमें निदर्श श्रमिकों का 58.82 श्रमिक कार्यरत है।

 

30-39 आयु वर्ग में कुल निदर्श श्रमिकों का 28.71 श्रमिक कार्यरत है जिसका सबसे अधिक 28.69 श्रमिक कोकून से रेशे निकालने में तथा 25.41 कपड़ा बुनने के कार्य में कार्यरत है। कुण्डी लगाना तथा प्रेस एवं पेकिंग के कार्य में सबसे कम प्रतिशत (3.28) श्रमिक कार्यरत है। 40-49 आयु वर्ग में कुल निदर्श श्रमिकों का 22.59 श्रमिक कार्यरत है। इस वर्ग के श्रमिकों का सबसे अधिक प्रति श्रमिक कार्यरत है। इस वर्ग के श्रमिकों का सबसे अधिक प्रतिशत 43.75 श्रमिक कपड़ा बुनने तथा कोकून से रेशे निकालने के व्यवसाय में 17.71 श्रमिक कार्यरत है। प्रेस एवं पेकिंग के कार्य में सबसे कम 1.04 श्रमिक कार्यरत है। इसी तरह 50-59 से अधिक आयु के श्रमिकों में कुल निदर्श श्रमिकों का 12.24  श्रमिक कार्यरत है। जिसका सबसे अधिक 34.62 श्रमिक कपड़ा बनुने तथा 17.31 श्रमिक कोकून से रेशे निकालने के व्यवसाय में कार्यरत है। 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में कुल निदर्श श्रमिकों का 4.71 श्रमिक कार्यरत है। जिसका सबसे अधिक प्रतिशत 40 श्रमिक कंपनी की देख-रेख में कार्यरत है। कोसाफल उबालने रीलिंग आदि व्यवसाय में इस वर्ग के कोई श्रमिक नहीं है। ;तालिका 4द्ध

 

(पप) व्यवसाय एवं कार्य की स्थिति

कार्य की स्थिति से तात्पर्य कार्य के स्थायित्व से है। कार्य की स्थिति का प्रभाव श्रमिक के कार्य के प्रति संतुष्टि तथा आय पर स्पष्ट रूप से पड़ता है। सामान्यतः स्थायी श्रमिक की आय अस्थायी श्रमिक की तुलना में अधिक होती है। तालिका 4 में व्यवसाय एवं कार्य की स्थिति बताया गया है जिससे यह स्पष्ट है कि स्थायी श्रमिक (100) कंपनी के देख-रेख के कार्यों में कार्यरत् है जबकि अस्थायी श्रमिक (100) शेष सभी कार्यों में कार्यरत है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि चांपा जिले में कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों के रोजगार की प्रकृति अस्थायी है। जब कपड़े की मांग का आर्डर रहता है तब उनको काम मिलता है अन्यथा काम नहीं मिलता। ‘‘काम नहीं-मजदूरी नहीं‘‘ का सिद्धांत लागू होता है। केवल कंपनी में देख-रेख का कार्य करने वाले श्रमिकों को स्थायी रोजगार प्राप्त है। वर्षा ऋतु में अधिकांश श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। वे श्रमिक जिनके पास थोड़ी-बहुत कृषि भूमि है वे कृषि कार्य में व्यस्त हो जाते है तथा जिनके पास कृषि भूमि नहीं है वे अन्य मजदूरी कार्य में व्यस्त हो जाते है (तालिका 4)

 

(पपप)      भर्ती एवं कार्य के स्रोत

      चंपा जिले में कोसा उद्योग में श्रमिकों को भर्ती की कोई विशेष व्यवस्था नहीं है। श्रमिक कोसा उद्योग के स्वामी के पास स्वतः जाकर कार्य मांगते है। कभी-कभी कोसा उद्योग के स्वामी अपने मुंशी भेजकर अधिक कपड़े का आर्डर होने पर श्रमिकों, बुनकरों को कार्य सौंप आते है। बुनकर तथा धागा निकालने वाली महिला कतिन अपना कार्य घर पर ही अधिकांश रूप से करते है। बड़े-बड़े फार्मों पर सभी कार्य होता है।

 

(पअ) प्रशिक्षण

यह तथ्य सर्वमान्य है कि श्रमिक की कार्यकुशलता पर प्रशिक्षण का भी प्रभाव पड़ता है। कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों को अपने परिवार के सदस्यों से ही प्रशिक्षण मिलता रहता है जिससे उनकी कार्यक्षमता में निरंतर वृद्धि होती रहती है। सर्वे से ज्ञात हुआ है कि जिले के बुनकर वाराणसी और बैंगलोर जाकर साड़ियों के डिजाइन सीखते है और उसका प्रयोग अपने द्वारा निर्मित कोसा साड़ियों में करते है कभी-कभी कोसा साड़ियों में हस्तकला का इतना अच्छा नमूना होता है कि उसके सामने वाराणसी साड़ियां भी धूमिल पड़ जाती है। कोसे की साड़ियां वजन में अपेक्षाकृत हल्की होती है। चांपा जिले में कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिकों की 3.53 प्रशिक्षित है। ये श्रमिक मध्यप्रदेश स्टेट टेक्सटाइल्स कार्पोरेशन सिवनी (एम.पी.एस.टी.सी.) में प्रशिक्षण प्राप्त किये है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि निदर्श शिक्षित श्रमिकों का 5.13 प्रशिक्षण लिये है, जबकि निदर्श अशिक्षित श्रमिकों का 2.17 प्रशिक्षण लिये है। ;तालिका 5द्ध

 

 

तालिका 5-व्यवसाय के आधार पर कोसा उद्योग में कार्यरतश्रमिकों का कार्य की स्थितिनुसार वितरण

क्र.   व्यवसाय    श्रमिक और श्रम की स्थिति

            स्थायी अस्थायी     कुल

            संख्या प्रतिशत     संख्या प्रतिशत     संख्या प्रतिशत

1.    कोकून उबालना    -      -      105   (26.25)     15    (24.71)

2.    कोकून से रेशे निकालना  -      -      25    (6.25)      25    (5.88)

3.    रीलिंग -      -      70    (17.5)      70    (16.47)

4.    कपड़ा बुनना -      -      135   (3.75)      135   (31.76)

5.    रेशे या कपड़ा रंगना      -      -      15    (3.75)      15    (3.56)

6.    ब्लीचिंग या धुलाई -      -      20    (5)   20    (4.71)

7.    कुण्डी लगाना      -      -      15    -      15    (3.53)

8.    रफू करना   -      -      8     -      8     (1.88)

9.    प्रेस एवं पेकिंग कार्य      -      -      17    -      17    (4)

10.   कंपनी में देख-रेख कार्य   25 (100)    -      -      -      25    (5.88)

      योग  25(5.88)    -      400

(94.12)     -      425

(100) (100.00)

 

(कार्य एवं संतुष्टि

कार्य के प्रति संतुष्टि अनेक तत्वों से प्रभावित होता है, जिसमें आयु, शिक्षा, प्रशिक्षण, आय, कार्य की अवधि, कार्य की स्थिति या स्थायित्व प्रमुख है। ये तत्व निम्नलिखित तरीके से कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों को प्रभावित किय है।

(अप) शैक्षणिक स्तर और कार्य के प्रति संतुष्टि

तलिका 5 में चांपा जिले में कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों का कार्य के प्रति संतुष्टि शैक्षणिक स्तर के अनुसार दर्शाया गया है। तालिका से यह स्पष्ट है कि अशिक्षित निदर्श श्रमिकों का 63.16 कार्य के प्रति संतुष्ट है तथा शिक्षित निदर्श श्रमिकों का 19.15 श्रमिक कार्य के प्रति संतुष्ट है। ;तालिका 6द्ध

तलिका 6- कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिकों का शैक्षणिक स्तर और संतुष्टिनुसार वितरण

क्र.   शैक्षणिक स्तर     संतुष्टि      असंतुष्टि    कुल

.   अशिक्षित    120 (63.16) 70 (36.84)  190

.    शिक्षित

. केवल साक्षर  

10 (16.67) 

50 (83.33) 

60

      . प्राथमिक 21 (20.00)  84 (80.00)  105

      . माध्यमिक     6 (15.79)   32 (84.21)  38

      . हाॅयर सेकण्डरी      7 (25.93)   20 (74.07)  27

      . स्नातक या अधिक    1 (20.00)   4 (80.00)   5

      योग (शिक्षित)     45 (19.15)  190 (80.85) 235

      महायोग (शिक्षित$अशिक्षित)    165 (38.82) 260 (61.18) 425

नोट: कोष्टक में दिया हुआ प्रतिशत कुल श्रमिकों में प्रतिशत को दर्शाता है।

 

इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षित श्रमिक अशिक्षित श्रमिक की तुलना में अधिक असंतुष्ट है। जिले में शिक्षित युवकों को अन्य रोजगार या नौकरी मिलने से वे कोसा उद्योग से जुड़ अवश्य जाते है परन्तु वे उससे संतुष्ट नहीं है। शिक्षा एवं कार्य के प्रति संतुष्टि के मध्य ऋणात्मक संबंध दिखलाई देता है। जैसे-जैसे शिक्षा के स्तर में वृद्धि होती जाती है, कार्य के प्रति संतुष्टि का स्तर वैसे-वैसे कम होते जाता है। क्योंकि शिक्षित व्यक्ति के मन में यह भावना जाती है कि उसे अपनी योग्यता के अनुरूप् कार्य नहीं मिला है। इस बात की पुष्टि गुण संबंध गुणांक एवं कई वर्ग परीक्षण द्वारा भी किया गया है।

 

(अपप)     कार्य करने की अवधि और कार्य के प्रति संतुष्टि

तलिका 7 में कार्य के प्रति संतुष्टि कार्य करने की अवधि के अनुसार दर्शाया गया है जिससे स्पष्ट है कि जो निदर्श श्रमिक 1 वर्ष से कार्य कर रहे है उनके कार्य के प्रति संतुष्टि केवल 2 है परन्तु जो निदर्श श्रमिक 20 वर्ष से अधिक समय से कोसा उद्योग में कार्य कर रहे है उनकी कार्य के प्रति संतुष्टि अधिक (52.1) है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ज्यों-ज्यों कार्य की अवधि बढ़ती जा रही है त्यों-त्यों कार्य के प्रति संतुष्टि बढ़ती जा रही है। काई वर्ग परीक्षण तथा गुण संबंध गुणांक द्वारा सत्यता का परीक्षण किया गया है। ;तलिका 7द्ध

 

तलिका 7-कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों का कार्य की अवधि एवं संतुष्टिनुसार विवरण

क्र.   कार्यावधि    कर्य के प्रति संतुष्टि

            संतुष्ट असंतुष्ट     कुल

1.    1 वर्ष से कम      2 (8.00)    23 (92.00)  25

2.    1 वर्ष से 5 वर्ष     12 (17.14)  58 (82.85)  70

3.    5 से 10 वर्ष  38 (33.93)  74 (66.07)  112

4.    10 से 15 वर्ष 35 (51.16)  42 (48.84)  86

5.    15 से 20 वर्ष       35 (52.24)  32 (47.76)  67

6.    20 वर्ष से अधिक   34 (52.24)  31 (47.69)  65

      योग  165 (38.82) 260 (61.18) 425

नोट: कोष्टक में दिया गया प्रतिशत कुल श्रमिकों में प्रतिशत को दर्शाता है।

 

(अपपप)    मजदूरी भुगतान का तरीका एवं अवधि

कोकून से रेश निकालने वाली कतिनों को कार्यानुसार मजदूरी प्राप्त होती है। 100 कोकून से रेशे निकालने पर 5/- की दर से मजदूरी दी जाती है। इन श्रमिकों का प्रतिशत कुल निदर्श श्रमिकों का 24.71 हैं। वे बुनकर जो घर पर कार्य करते है उनको मजदूरी कार्यानुसार दी जाती है। जब भी ये बुनकर एक थान बुन लेते है उन्हें मजदूरी मिल जाती है एक थान में अधिकांशतः 35 मीटर कपड़ा होता है। प्रायः ये बनुकर महिने में 2 से 3 थान बुनते है। एक थान बुनने पर इनकों 5000 रूपये से 800 रूपये तक (डिजाइन के अनुसार) मिलता है। ऐसे बुनकर 48 है जो बुनकर निजी व्यापारियों के कोसा फार्म में जाकर कपड़ा बुनते है उनको समयानुसार मजदूरी दी जाती है।

 

 

 

 

 

तलिका 8- कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिक परिवार की संरचना एवं आय

क्र.   श्रमिक वर्ग

(आय वर्ग ) श्रमिकों की संख्या  सभी परिवारों की सदस्य संख्या संपूर्ण परिवार के कुल सदस्यों की आय (मासिक आय रू. में)     परिवार का औसत आकार      परिवार की औसत  आय (मासिक रू.में)     प्रति व्यक्ति औसत आय (मासिक रू)

1     2     3     4     5     6     7     8

1.    150-500      175 (41.18) 892(38.61)  70712(20.40)      5.09  404.07      79

2.    501-1000     55 (12.94)  315(13.63)  32375(9.34) 5.75  585.63      102.78

3.    1001-1500    125(29.41)  679(29.39)  137530(39.65)     5.49  1100.24      202.55

4.    1501 से अधिक    70 (16.41)  424 (18.37) 105850(30.55)     6.05      1512.14     249.65

      योग/औसत  425 (100.00)      2310(100)   346467(100) 5.59  900.52      158.49

 

 

 

चंपा जिले में कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिकों की मजदूरी भुगतान की अवधि दर्शाया गया है जिसके अनुसार 4 श्रमिक दैनिक मजदूरी प्राप्त करते है। 46 निदर्श श्रमिक साप्ताहिक मजदूरी प्राप्त करते है तथा 38.59 निदर्श श्रमिक पाक्षिक और 11.76 निदर्श श्रमिक मासिक मजदूरी प्राप्त करते है।

 

मजदूरी भुगतान की अवधि कार्य की स्थिति के अनुसार बताया गया है। जिससे स्पष्ट है कि स्थायी निदर्श श्रमिक (100) मासिक मजदूरी प्राप्त करते है। अस्थायी निदर्श श्रमिक का 3.75 श्रमिक दैनिक, 49 साप्ताहिक तथा 41 पाक्षिक और 6.25 निदर्श श्रमिक मासिक मजदूरी प्राप्त करते हैं।

 

(पग) कोसा वस्त्रों की विक्रय व्यवस्था या विपणन

बुनाई उद्योग के विकास के लिए नियमित एवं सस्ती कच्ची सामाग्री की उपलब्धता के साथ ही निर्मित उत्पाद का विपणन भी आवश्यक है। प्राचीनकाल में निर्मित उत्पाद की विपणन व्यवस्था का स्वरूप अत्यंत जटिल था। बुनकरों को अपने उत्पाद के विक्रय हेतु दर-दर भटकना पड़ता था क्योंकि उस समय इनके उत्पाद का कोई निश्चित बाजार नहीं था। वर्तमान में निम्न पद्धतियां प्रचलित है -

 

1.    सहकारी समिति के माध्यम से बिक्री

जिले में सहकारी समितियों के माध्यम से कोसे के वस्त्रों की विक्रय व्यवस्था की जाती है। नीति बुनकर इससे बहुत लाभानिवत होते है। ये अपने द्वारा बुने गये वस्त्रों को सहकारी समितियों को विक्रय कर देते है। सहकारी समितियां इन्हें अपने शो-रूम अथवा विक्रय केन्द्रों से विक्रय करती है। इससे अतिरिक्त सहकारी समितियां मध्यप्रदेश स्टेट टेक्सटाईल्स कार्पोरेशन से यार्न क्रय कर, वस्त्र बुनकर, इन्हें 30 कमीशन पर वापस एम.पी.सी. को दे देती है। किन्तु ऐसी व्यवस्था किसी-किसी केन्द्रों पर ही उपलब्ध है।

 

2.    बुनकारों द्वारा पेशेवर व्यापारियों को विक्रय

बुनकर अपने वस्त्र या उत्पाद को खानदानी पेशेवर व्यापारियों को बेचते है। ये व्यापारी इन उत्पादों को विभिन्न बाजारों में बेचने की व्यवस्था करते है। ये सामान्यतः महाजन बुनकर होते है।

 

3.    बुनकरों द्वारा वस्त्र व्यापारियों को विक्रय

      बुनकर अपने उत्पादित वस्त्रों को वस्त्र व्यापारियों को भी बेचते है। ये वस्त्र व्यापारी बड़े नगरों में अपनी स्थायी दुकाने खोल रखे है जैसे - बिलासपुर, रायपुर, नागपुर, जबलपुर आदि। यद्यपि ये नगर वस्त्र उत्पादन के प्रमुख केन्द्र नहीं है।

 

4.    मध्यस्थों के माध्यम से बिक्री

बुनकर अपने उत्पाद को थोक विक्रेता या फुटकर विक्रेता को महाजन के माध्यम से या कमीशन एजेंट के माध्यम से बेचता है। महाजन अपना कमीशन काटकर शेष विक्रय राशि बुनकरों को दे देते है।

 

निदर्श श्रमिक परिवार की संरचना एवं आय

तलिका 8 में चांपा जिले में कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिक तथा उनके परिवार की  आय को दर्शाया  गया है। तालिका 8 से स्पष्ट है कि निदर्श श्रमिकों का 41.18 श्रमिक 150-500 रूपये के अंतर्गत मासिक आय प्राप्त करते है तथा परिवार का औसत आकार 5.09 व्यक्ति है। निदर्श श्रमिकों का 12.94 श्रमिक 501-1000 रूपये मासिक आय प्राप्त करते है तथा परिवार का औसत आकार 5.75 व्यक्ति है। निदर्श श्रमिकों का 29.71 श्रमिक 1001 से 1500 रूपये तक मासिक आय प्राप्त करते है तथा परिवार

 

 

का औसत आकार 5.49 व्यक्ति है। निदर्श श्रमिकों का 16.41 श्रमिक 1500 रूपये से अधिक आय प्राप्त करते हैं तथा परिवार का औसत आकार 6.05 व्यक्ति है। निदर्श श्रमिकों की औसत मासिक आय 900.52 रूपये है। परिवार का औसत आकार 5.59 व्यक्ति है। प्रति व्यक्ति औसत मासिक आय 158.49 रूपये है। 150-500 आय समूह के निदर्श श्रमिकों के परिवार की औसत मासिक आय 404.07 रूपये है। 501 से 1000 रूपये आय प्राप्त करने वाले श्रमिक परिवार की औसत मासिक आय 588.63 रूपये है। 1001 से 1500 रूपये मासिक आय प्राप्त करने वाले श्रमिक परिवार की औसत मासिक आय 1100.24 रूपये है तथा 1501 से अधिक आय प्राप्त करने वाले श्रमिक परिवार की औसत मासिक आय 1512.14 रूपये है।

 

प्रति व्यक्ति आय

तालिका 8 में चांपा जिले में कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की प्रति व्यक्ति आय को दर्शाया गया है। प्रति व्यक्ति आय परिवार के पूरे सदस्यों की आय में परिवार की पूर्ण सदस्य संख्या को भाग देकर प्राप्त किया गया है। तालिका से स्पष्ट है कि 150-500 रूपये तक मासिक आय प्राप्त करने वाले निदर्श श्रमिक परिवार की प्रति व्यक्ति आय 79 रूपये मासिक है। 501 से 1000 रूपये मासिक आय प्राप्त करने वाले श्रमिक परिवार की प्रति व्यक्ति आय 102.78 रूपये है, 1001 से 1500 रूपये मासिक आय प्राप्त करने वाले श्रमिक परिवार की प्रति व्यक्ति आय 202.55 रूपये मासिक है। 1500 रूपये मासिक या अधिक आय प्राप्त करने वाले श्रमिक परिवार की प्रति व्यक्ति आय 249.65 रूपये मासिक है। संपूर्ण निदर्श श्रमिक परिवार की प्रति व्यक्ति औसत मासिक आय 158.49 रूपये है।

 

तालिका 9 से स्पष्ट है कि पूरे निदर्श श्रमिक परिवारों की सदस्य संख्या 2310 व्यक्ति है जिनका प्रति व्यक्ति औसत मासिक आय को तालिका 8 में दर्शाया गया है। तालिका से स्पष्ट है कि 38.61 प्रतिशत सदस्य 80 रूपये या उससे कम औसत मासिक आय प्राप्त करते है।  13.63 सदस्य 81-160 रूपये के अंतर्गत औसत मासिक आय प्राप्त करते है। 29.39 प्रतिशत सदस्य 161-240 रूपये के अंतर्गत औसत मासिक आय प्राप्त करते है तथा 18.37 सदस्य 241 रूपये या उससे अधिक औसत मासिक आय प्राप्त करते है।

 

तलिका 9- कोसा उद्योग में श्रमिकों की प्रति व्यक्ति औसत मासिक आयनुसार वितरण

क्र.   प्रति व्यक्ति औसत आय वर्ग (मासिक रू. में)      निदर्श श्रमिक परिवार में सदस्यों की संख्या     प्रतिशत

1.    80 से कम   892   (38.61)

2.    81-160 315   (13.63)

3.    161-240      679   (29.39)

4.    241 से अधिक     424   (18.37)

      योग 2310  100.00

 

 

घर पर कार्यरत एवं निजी व्यापारियों के फार्म पर कार्यरत् निदर्श बुनकरों की औसत दैनिक आय के मध्य अंतर की जांच:

जिले में कोसा उद्योग के विभिन्न व्यवसाय में कार्यरत निदर्श श्रमिकों की आय के मध्य कोई अंतर नहीं है। केवल निदर्श बुनकर वर्ग के आय में अंतर है। बुनकरों के दो वर्ग है प्रथम निजी व्यापारियों के बुनाई केन्द्र में कार्यरत बुनकर जिनकी निदर्श संख्या 71 है, तथा द्वितीय स्वयं के घर में कार्यरत बुनकर जिनकी संख्या 64 है। निजी व्यापारियों के कोसा बुनाई केन्द्र में कार्यरत बुनकरों (71) तथा स्वयं अपने घर में कार्यरत बुनकरों (64) की औसत दैनिक आय का अध्ययन करने पर यह ज्ञात हुआ कि निजी व्यापारियों के बुनाई केन्द्र में कार्यरत बुनकरों की औसत दैनिक प्रति व्यक्ति आय 32.57 रूप्ये है तथा स्वयं के घर में कार्यरत बुनकरों की औसत दैनिक प्रति व्यक्ति आय 36.50 रूपये है। दोनों वर्ग के बुनकरों की औसत दैनिक प्रति व्यक्ति आय का अंतर 3.93 रूपये है। इस बात का परीक्षण करने हेतु घर पर कार्यरत बुनकर तथा निजी व्यापारियों के कोसा फार्म में कार्यरत बुनकरों की दैनिक आय के मध्य महत्वपूर्ण अंतर है, सांख्यिकीय तकनीकी द्वारा दोनों माध्यों के मध्य अंतर की जांच की गई। इस हेतु दोनों माध्यों के अंतर का प्रमाप विभ्रम ज्ञात किया गया। परीक्षण के दौरान यह ज्ञात हुआ कि घर पर कार्यरत् बुनकरों एवं निजी व्यापारियों के कोसा फार्म में कार्यरत बुनकरों की आय के बीच अंतर, इस अंतर के प्रमाप विभ्रम के तीन गुना से अधिक है। अतः दोनों माध्यों में अंतर सांख्यिकीय दृष्टि से सार्थक पाया गया।

 

दोनों औसत आयों में सार्थक अंतर होने का प्रमुख कारण निजी व्यापारियों द्वारा बुनकरों की कम मजदूरी भुगतान करना है। निजी व्यापारी बुनकरों को समयानुसार मजदूरी देते है तथा घर पर कार्यरत बुनकर कार्यानुसार मजदूरी प्राप्त करते है तथा अधिक आय के लिए वे दिन भर मेहनत करते हैं।

 

उपभोग प्रारूप

इस अध्ययन में चांपा जिले में कोसा उद्योग मे ंकार्यरत् निदर्श श्रमिक परिवारों की उपभोग प्रारूप का विश्लेषण किया गया है। निदर्श श्रमिक परिवारों की व्यय एवं उपभोग प्रवृत्ति का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि निदर्श श्रमिक परिवार निम्नलिखित वस्तुओं एवं मदों पर अपनी संपूर्ण आय को व्यय करते है।

 

1.    भोजन      2.    कपड़ा          3. शिक्षा

4.    मकान किराया या आवास 5.    स्वास्थ्य एवं बीमारी

6.    नशीला पदार्थ      7.    ईंधन एवं रोशनी

8.    अन्य (मनोरंजन, यातायात, त्यौहार, विवाह आदि समारोह)

 

निर्धनता एवं गरीबी का विश्लेषण

भारत में भी निर्धनता मापन के लिए इसी विधि को प्रयोग में लाया जाता है। यहां निर्धनता की कसौटी के लिए 5 व्यक्तियों के परिवार के लिए प्रति व्यक्ति 2250 कैलोरी मूल्य के भोजन के आधार को अपनाया गया है। इस उपभोग के लिए आवश्यक भोजन सामाग्री के मूल्य को रूपये  पैसों में अंकित कर ‘‘निर्धनता-रेखा‘‘ निर्धारित कर दी जाती है। इस निर्धारण में भोजन के अतिरिक्त उपभोग में आने वाली अन्य वस्तुओं को सम्मिलित नहीं किया जाता। भोजन सामाग्री के मूल्यों में परिवर्तन के कारण रूपये-पैसों में अभिव्यक्त निर्धनता रेखा में मौद्रिक रूप से परिवर्तन होते रहते है वर्तमान समय में जिस परिवार की वार्षिक आय 12000 रूपये  से कम है उसे निर्धन कहा जाता है।  

 

चंापा जिले में कोसा उद्योग में कार्यरत निदर्श श्रमिकों की औसत मासिक आय तथा उनके सम्पूर्ण परिवार की औसत मासिक आय के अध्ययन से स्पष्ट है कि वर्तमान समय में गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए 12000 रूपये वार्षिक आय वाले परिवार को गरीबी रेखा से नीचे माना गया है तथा इन परिवारों की औसत सदस्य संख्या 5 मानी गई है। इस दृष्टि से प्रति परिवार औसत मासिक आय 1000 रूपये तक तथा प्रति व्यक्ति 200 रूपये मासिक आय तक गरीबी रेखा से नीचे माना गया है तथा इन परिवारों की औसत सदस्य संख्या 5 मानी गई है। इस दृष्टि से प्रति परिवार औसत मासिक आय 1000 रूपये तक तथा प्रति व्यक्ति 200 रूपये मासिक आय तक गरीबी रेखा से नीचे कहलायेगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि 54.12 निदर्श श्रमिक ऐसे है जिनकी औसत मासिक आय 1000 रूपये से कम है तथा प्रति व्यक्ति औसत आय 200 रूपये से कम है। अर्थात् ये गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे है (तालिका 7)

 

इस प्रकार उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की आय एवं रोजगार का अध्ययन करने पर यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि इन श्रमिकों की आय अत्यंत निम्न है तथा वे अपने कार्य से संतुष्ट नहीं है, जो श्रमिक संतुष्ट है उनकी भी संतुष्टि वास्तविक नहीं है, वे अपने कार्य से इसलिए संतुष्ट है क्योंकि रोजगार के अन्य साधनों का अभाव है। निदर्श श्रमिको का आधे से भी अधिक श्रमिक गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं।

 

समस्यायें

कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की भी अपनी समस्याएं हैं। आवास समस्या, ऋणग्रस्तता, बुनकरों को कच्चा माल मिलना, अशिक्षा, अज्ञानता, हाथकरघा से बुनाई कार्य, कार्यदशाओं का अच्छा होना, कार्य के लंबे घण्टे, महाजन वर्ग द्वारा सरकारी सहायता को हड़प लेना, सरकारी कर्मचारियों की उदासीनता आदि अनेक समस्यायें है जो कोसा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की कार्यक्षमता को बढ़ाने में बाधक है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए सर्वप्रथम श्रमिकों का प्रशिक्षण आवश्यक है, शक्तिकरघा द्वारा बुनाई, शिक्षा द्वारा श्रमिकों में जागरूकता पैदा करना जिससे वे सरकारी सहायता का लाभ उठा सकें।

 

निष्कर्ष

चांपा जिले का कोसा उद्योग आज विकास की दिशा में अग्रसर है। कोसा वस्त्र सम्पन्नता का परिचायक है। जिले में निर्मित वस्त्र ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों में निर्यात किया जाता है। एक ओर जहां महाजन वर्ग प्रगति के सोपान चढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर उसे निर्मित करने वाला श्रमिक वर्ग आज भी दो वक्त की रोटी के लिए मजबूर है। शासन को चाहिए कि बुनकरों को धागा उपलब्ध कराये तथा उनके द्वारा निर्मित वस्त्र की विक्रय की व्यवस्था करें तथा महिला कतिनों को कोकून उपलब्ध करायें। इससे निश्चय ही कोसा उद्योग में कार्यरत् श्रमिकों की आर्थिक दशा में सुधार आयेगा।

 

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Received on 13.05.2009

Accepted on 10.06.2009     

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Research J.  of Humanities and Social Sciences. 1(1): Jan.-March 2010, 24-29