छत्तीसगढ़ में जोत के आकार का वितरण प्रतिरूप
क्पेजतपइनजपवदंस च्ंजजमतद व िस्ंदक भ्वसकपदह पद ब्ीींजजपेहंती
निवेदिता ए.लाल1 एवं चैतन्य नन्द2
1शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव (छ.ग.)
2शासकीय कन्या महाविद्यालय जांजगीर (छ.ग.)
प्रस्तावनारू
भारतीय कृषि व्यवस्था में जोत के आकार से तात्पर्य उस भूखण्ड से है जो एक कृषक के स्वामित्व क्षेत्र में पड़ता है। इसके लिये आवश्यक नहीं है कि सभी भूखण्ड एक ही स्थान पर हों। उत्तराधिकार संबंधी कानूनों तथा जनसंख्या वृध्दि के कारण जोत का आकार एवं भूस्वामित्व निरंतर घटता जा रहा है। किसी भी क्षेत्र के, कृषक विकास में, जोत के आकार की अहम भूमिका होती है।
अध्ययन क्षेत्र:-
’’धान का कटोरा’’ कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ भारतीय संघ का 26वां राज्य है। इसकी भौगोलिगक सीमाएं 17ह्46‘ से 42ह्50‘ उत्तर अक्षांश तथा 80ह्15‘ से 84ह्20‘ पूर्वी देशान्तर के मध्य विस्तृत है। 1,35,194 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह राज्य देश की 2ण्02ः जनसंख्या (2,07,95,956 व्यक्ति) को आबद्ध करता है। प्रशासकीय दृष्टि से 3 राजस्व संभागों, 16 जिलों, 97 तहसीलों, 146 विकासखण्डों, 97 नगरों तथा 20,308 ग्रामों में विभाजित है। यहां की 79ण्63ः मुख्य कार्यशील जनसंख्या कृषि से आजीविका पाती है। यहां कृषि जोत का स्वरूप बहुत बिखरा हुआ है।
उद्देश्य:-
प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य राज्य के विभिन्न भागों के भौतिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में जोत के आकार एवं वितरण तथा उत्पादन संबंधी विशेषताओं को स्पष्ट करना है जिससे भविष्य में उचित कृषि विकास संबंधी क्षेत्रीय योजनाओं के प्रस्तुतीकरण को दिशा प्राप्त हो सके।
आंकड़ों के स्त्रोत:-
प्रस्तुत अध्ययन द्वितीयक आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। राज्य के 16 जिलों को इकाई मानकर अध्ययन किया गया है।
सांख्यिकी एवं मानचित्रांकन तकनीक:-
जोत के आकार का वितरण प्रतिरूप, से संबधित विभिन्न तथ्यों के अध्ययन एवं विश्लेषण को तथ्यपरक बनाने हेतु प्रस्तुत अध्ययन में अनेक मात्रात्मक तकनीकों का प्रयोग किया गया है। प्रतिशत, अनुपात, दर, आदि का प्रयोग अनेक बार हुआ है।
प्रस्तुत शोध में जोत के आकार का वितरण प्रतिरूप के स्थानिक वितरणों को वर्णमात्री मानचित्रों ;ब्ीवतवचसमजी डंचद्ध के माध्यम से यथार्थता को चित्रित करने का प्रयास किया गया है।
छत्तीसगढ़ में कृषि जोत आकार एवं फसल उत्पादन:-
जोत वह भूमि है जिस पर कृषि, एक इकाई के रूप में, किसी व्यक्ति या परिवार द्वारा की जाती है। प्रत्येक क्षेत्र में जनसंख्या के आधार पर कृषि की जोतों का आकार निश्चित होता है। यदि क्षेत्रफल बहुत अधिक और जनसंख्या बहुत कम है तो कृषि की जोतें बड़ी होती है जैसेः- साइबेरिया तथा आस्ट्रेलिया में। चीन तथा भारत में जनसंख्या अधिक होने से कृषि की जोतों का आकार तुलनात्मक रूप से बहुत छोटा है। जोत का औसत आकार भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते भार, कृषि पर निर्भरता (अन्य व्यवसायों के अवसरों की अल्पता), उत्तराधिकार नियमों, सामाजार्थिक परिस्थितियों, भौतिक दशाओं, शस्य स्वरूप् इत्यादि से निर्धारित होता है।
तालिका क्रमांक - 1 छत्तीसगढ़: परिचालित जोतों का आकार वर्गीकरण तथा जोतों की संख्या एवं क्षेत्रफल (2002-2005)
जोत आकार
(हेक्टेयर में) जोतों की संख्या कुल जोतों का प्रतिशत क्षेत्रफल (हेक्टेयर में) कुल क्षेत्रफल का प्रतिशत
सीमांत ढ1 1180649 46ण्25 505011 8ण्82
लघु 1.2 512952 20ण्09 744756 13ण्01
अर्ध- मध्यम 2.4 473421 18ण्54 1303281 22ण्77
मध्यम 4.10 311097 12ण्18 1861539 32ण्52
वृहद् झ10 74137 2ण्90 1308928 22ण्86
योग 2552256 99ण्96 5723515 99ण्98
स्त्रोत:- कार्यालय आयुक्त, भूअभिलेख छ.ग. राज्य शासन रायपुर।
छत्तीसगढ़ में कुल 2552256 जोत में सीमान्त जोतों की संख्या (1180649) सबसे अधिक है जिसके अंतर्गत 1हेक्टेयर से कम जोत आकार को सम्मिलित किया जाता है इसका अनुपात कुल जोतों का 46ण्25 प्रतिशत है, लेकिन इनके स्वामित्व में कुल जोतों के क्षेत्रफल का भाग 8ण्82ः भाग ही है। इस तरह स्पष्ट है कि यहां 2/5 कृषि अत्यंत गरीब व अल्प साधनों वाली है। मध्य व उत्तर के मैदानी तथा पहाड़ी-पठारी भागों के ज्यादातर भागों में सीमांत कृषक अर्धबेरोजगारी की दशा से गुजरते है क्योंकि यहां की कृषि में उन्हें 5-6 माह ही रोजगार मिलता है। दिसम्बर से ये काम की तलाश में अन्य राज्यों में पलायन कर जाते हैं।
छत्तीगसढ़ में लघु जोतों की संख्या कुल जोतों का 20ण्09ः है। इस श्रेणी में 1-2 हेक्टेयर जोत आकार को शामिल किया जाता है लेकिन इस जोत आकार का क्षेत्र अनुपात 13ण्01ः है। यहां लगभग 2/3 लघु कृषक मध्यवर्ती व मैदानी भाग में केन्द्रित है यहां अधिकांश भागों में सिंचाई के साधन उपलब्ध होने के कारण दो फसली कृषि हो जाती है यदि सीमान्त व लघु जोतों की संख्या को देखा जाय तो 66ण्34 प्रतिशत इसी श्रेणी में है जबकि क्षेत्र अनुपात मात्र 21ण्83 ही है। ये कृषक सामान्यतः गरीब होते जा रहे हैं जिससे इनकी कृषि उत्पादकता भी कम होती जा रही है।
छत्तीसगढ़ में अर्धमध्यम जोतों की संख्या 47,3421 है तथा कुल जोत क्षेत्र का 18ण्54 प्रतिशत क्षेत्र इसके अंतर्गत है। राज्य के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्रों में इसका अनुपात तुलनात्मक रूप से मध्यम है जबकि दक्षिणी पहाड़ी-पठारी तथा उत्तरी पहाड़ी-पठारी भागों में इसका विस्तार अधिक है। इस वर्ग के कृषक सामान्यतः कुछ सहायक कार्य करके अपनी आर्थिक स्थिति को सामान्य बनाये रखते हैं।
यहां 12ण्18 प्रतिशत जोत मध्यम आकार (4-10 हेक्टेयर) के अंतर्गत है जिनका जोत क्षेत्र 1861539 हेक्टेयर (32.52ः) अर्थात लगभग एक तिहाई जोत क्षेत्र है। क्षेत्रफल की दृष्टि से इस जोत आकार का अनुपात छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक है। उत्तरी पहाड़ी-पठारी भागों में इस जोत आकार का विस्तार कुछ अधिक है। लेकिन फसलों की उत्पादकता कम उर्वर मिट्टी कम पूंजी निवेश तथा जनजातीय जनसंख्या की अधिकता के कारण तुलनात्मक रूप से कम है तथा मैदानी भागों में उन्नत कृषि निवेशों के कारण उत्पादन अधिक है।
वृहद जोत श्रेणी (10 हेक्टेयर से अधिक) के जोतों की संख्या 74137 (2.90 प्रतिशत) है जबकि जोत क्षेत्र अनुपात 22.86 प्रतिशत है। वृहत जोत वाले कृषक उन्नत बीजों तथा उच्च कृषि निवेशों के कारण अधिक उत्पादकता प्राप्त करते है। नदियों के मैदानी भागों में इनका विस्तार अधिक है। पुराने मालगुजारों एवं सामंतो के स्वामित्व में इस प्रकार के जोत ज्यादा हैं ऐसे जोतों के कृषक कृषि कार्य मजदूरों द्वारा ठेका, मजदूरी या निश्चित उत्पादन के आधार पर काम कराते हैं।
जोत आकार का वितरण प्रतिरूप:-
तालिका 2 में छत्तीसगढ़ में जिलेवार जोतों की संख्या एवं क्षेत्र के प्रतिशत अनुपात को स्पष्ट किया गया है। जिसका विश्लेषण निम्नानुसार है:-
तालिका क्रमांक 2रू छत्तीसगढ़ - परिचालित जोतों का आकार वितरण प्रतिरूप (2002-2005)
क्र. जिले सीमांत लघु अर्धमध्यम मध्यम वृहत् औसत आकार
संख्या क्षेत्र संख्या क्षेत्र संख्या क्षेत्र संख्या क्षेत्र संख्या क्षेत्र
1 रायगढ़ 30ण्9 6ण्55 11ण्96 10ण्41 19ण्95 19ण्92 16ण्31 34ण्01 4ण्77 28ण्94 2ण्41
2 जशपुर 25ण्36 3ण्62 18ण्03 7ण्76 25ण्55 19ण्98 23ण्48 42ण्48 6ण्70 26ण्03 2ण्42
3 कोरिया 16ण्98 3ण्60 12ण्24 8ण्21 13ण्15 14ण्98 7ण्18 21ण्26 50ण्20 52ण्01 2ण्23
4 सरगुजा 19ण्47 3ण्90 9ण्84 6ण्81 10ण्88 12ण्24 8ण्54 25ण्97 50ण्07 51ण्31 2ण्30
5 बिलासपुर 64ण्33 19ण्07 17ण्71 18ण्14 12ण्26 25ण्06 6ण्23 24ण्98 0ण्81 9ण्43 1ण्43
6 कोरबा 60ण्00 20ण्10 18ण्58 21ण्06 13ण्58 23ण्99 6ण्66 25ण्63 0ण्79 9ण्22 1ण्57
7 जांजगीर 50ण्63 11ण्02 20ण्45 18ण्13 17ण्16 24ण्47 9ण्88 30ण्74 1ण्80 4ण्45 1ण्24
8 रायपुर 50ण्60 11ण्33 21ण्00 15ण्54 16ण्51 23ण्72 9ण्81 29ण्58 2ण्05 19ण्80 1ण्78
9 महासमुंद 38ण्49 6ण्96 20ण्87 11ण्16 20ण्89 21ण्91 15ण्60 36ण्99 3ण्9 23ण्27 2ण्00
10 धमतरी 45ण्58 7ण्82 18ण्63 10ण्69 17ण्23 20ण्12 14ण्20 34ण्71 4ण्36 27ण्40 1ण्49
11 दुर्ग 47ण्04 9ण्83 21ण्22 13ण्82 16ण्95 21ण्83 11ण्32 30ण्78 2ण्94 23ण्21 2ण्09
12 कवर्धा 57ण्27 14ण्55 18ण्95 17ण्19 13ण्91 24ण्26 7ण्61 28ण्38 1ण्43 15ण्60 1ण्56
13 राजनांदगांव 36ण्22 5ण्99 20ण्98 10ण्92 21ण्66 21ण्87 16ण्96 36ण्73 4ण्10 24ण्16 2ण्47
14 कांकेर 35ण्30 5ण्90 20ण्70 11ण्60 23ण्00 24ण्70 17ण्80 40ण्40 3ण्20 17ण्40 2ण्19
15 बस्तर 18ण्61 2ण्56 17ण्43 6ण्24 31ण्15 19ण्75 23ण्50 35ण्62 9ण्31 35ण्83 3ण्31
16 दन्तेवाड़ा 30ण्13 8ण्60 20ण्70 9ण्69 32ण्5 26ण्30 17ण्01 30ण्11 3ण्75 20ण्92 3ण्08
औसत:- 46ण्25 8ण्82 20ण्09 13ण्01 18ण्54 22ण्77 12ण्18 32ण्52 2ण्90 22ण्86 2ण्09
स्त्रोत:- कार्यालय आयुक्त, भूअभिलेख छत्तीसगढ़ राज्य शासन, रायपुर।
(1) सीमान्त जोत:-
यहां जोत संख्या का अनुपात इस वर्ग में सबसे अधिक ;46ण्25ःद्ध है लेकिन क्षेत्र का अनुपात सबसे कम 8ण्82ः है। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक सीमांत जोत अनुपात बिलासपुर जिले में ;64ण्33ःद्ध तथा सबसे कम अनुपात कोरिया जिले में ;16ण्98ःद्ध प्रतिवेदित हुआ है जबकि अनुपात में कोरबा प्रथम ;20ण्10ःद्ध तथा बस्तर ;2ण्56ःद्ध जिला अंतिम स्थान पर है। स्पष्ट है कि जनजातीय क्षेत्रों में सीमान्त जोतों की संख्या तथा क्षेत्र कम होती है जिसका कारण विरली जनसंख्या तथा भूमि का कम उपजाऊ होना है। बंटवारे के प्रकरण भी कम देखे जाते है सामान्यतः विषम उच्चावच मिट्टी की लेटेराइजेशन रेत प्रधान मिट्टियों के कारण कृषि क्षेत्र कुछ सीमित होता है। यहां अधिक सीमांत जोत वाले जिले कवर्धा ;57ण्27ःद्ध जांजगीर ;50ण्63ःद्ध रायपुर ;50ण्60ःद्ध दुर्ग ;47ण्04ःद्ध धमतरी ;45ण्58ःद्ध इत्यादि जिले हैं जबकि कम सीमांत जोत वाले जिले बस्तर ;18ण्61ःद्ध सरगुजा ;19ण्47ःद्ध जशपुर ;25ण्36ःद्ध दंतेवाड़ा ;30ण्13ःद्ध इत्यादि है। इसी तरह अनुपात की अधिकता बिलासपुर ;19ण्07ःद्ध कवर्धा ;14ण्55ःद्ध रायपुर ;11ण्33ःद्ध जांजगीर ;11ण्02ःद्ध जिले में देखने को मिलती है जो ज्यादातर सामान्य जनसंख्या वाले भाग है। (मानचित्र 3.6 ’अ’)
(2) लघु जोत:-
राज्य के लगभग दो-तिहाई लघु जोत मध्यवर्ती मैदानी और पठारी भागों में है। इस वर्ग में जोत संख्या का सर्वाधिक अनुपात दुर्ग जिले ;21ण्22ःद्ध तथा सबसे कम सरगुजा जिले ;9ण्84ःद्ध में है। इसके उच्च संख्या अनुपात क्षेत्रों के अंतर्गत रायपुर ;21ण्00ःद्ध राजनांदगांव ;20ण्98ःद्ध कांकेर ;20ण्70ःद्ध महासमुंद ;20ण्87ःद्ध जांजगीर ;20ण्45ःद्ध दुर्ग ;21ण्22ःद्ध दंतेवाड़ा ;20ण्70ःद्ध जिलों में प्रतिवेदित हुआ है जो मैदानी भागों की कृषि क्षेत्र प्रधानता को प्रमाणित करता है। इसका अधिक क्षेत्र अनुपात बिलासपुर ;18ण्14ःद्ध कवर्धा ;17ण्19ःद्ध जांजगीर ;18ण्13ःद्ध में है जबकि न्यून अनुपात सरगुजा ;6ण्81ःद्ध जशपुर ;7ण्76ःद्ध कोरिया ;8ण्21ःद्ध जिलों में प्रतिवेदित हुआ है। इस तरह देखा जाय तो सीमांत तथा लघु जोत वर्ग में कुल जोत क्षेत्र का मात्र 1/5 हिस्सा है जबकि संख्या अनुपात 3/5 है। इन वर्गों के कृषक विभिन्न आवश्यक कार्यों जैसे गम्भीर बीमारी, शादी ब्याह इत्यादि में खर्च के लिये वैकल्पिक उपाय न होने पर जमीन बेच देते है। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इन वर्गों के कृषकों की आर्थिक दशा बहुत खराब है। (मानचित्र 3.6 ’ब’)
(3) अर्धमध्यम जोत:-
राज्य के इस जोत वर्ग में जोतों की संख्या ;18ण्54ःद्ध और क्षेत्र अनुपात ;22ण्77ःद्ध में ज्यादा भिन्नता नहीं है। इस वर्ग के जोतों के वितरण प्रतिरूप सीमांत एवं लघु जोताकारों के समान आवश्यक नहीं है। सर्वाधिक संख्या अनुपात दन्तेवाड़ा ;32ण्50ःद्ध तथा बस्तर ;31ण्15ःद्ध और न्यूनतम संख्या अनुपात सरगुजा ;10ण्88ःद्ध तथा बिलासपुर ;12ण्26ःद्ध जिले में प्रतिवेदित हुआ है इसी तरह अधिकतम तथा न्यूनतम क्षेत्र अनुपात क्रमशः दन्तेवाड़ा ;26ण्30ःद्ध सरगुजा ;12ण्24ःद्ध जिले में है।
इस वर्ग के जोतों की संख्या और क्षेत्र में ज्यादा परिवर्तन न होने का महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस वर्ग के कृषक अपनी पहचान नहीं खोना चाहतें हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि उनकी कृषि भूमि सुरक्षित रहे। (मानचित्र 3.7 ’अ’)
(4) मध्यम जोत:-
क्षेत्रफल की दृष्टि से यह जोत वर्ग ;32ण्52ःद्ध प्रथम क्रम पर है। इस जोत वर्ग के कृषक प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये पर्याप्त जोखिमके साथ विभिन्न कृषि निवेशों का प्रयोग करने में सक्षम होते है और इन्हें अपनी आवश्यकताओं के अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त होता है जिससे वे आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होते है। यहां इनकी अधिकतम संख्या अनुपात बस्तर ;23ण्50ःद्ध और जशपुर ;23ण्48ःद्ध जिले में तथा न्यूूनतम संख्या अनुपात बिलासपुर जिले ;6ण्23ःद्ध प्रतिवेदित हुआ है। मध्यम जोत संख्या के वितरण प्रतिरूप में भिन्नता इस वर्ग के जोत क्षेत्र अनुपात की तुलना में अधिक है। (मानचित्र 3.7 ’ब’)
मानचित्र 3.8 ’अ’ मानचित्र 3.8 ’ब’
(5) वृहद् जोत:-
इस जोत वर्ग में भी संख्या ;2ण्90ःद्ध की तुलना में क्षेत्र ;22ण्86ःद्ध का अनुपात सात गुना से अधिक है। सबसे अधिक अनुपात कोरिया ;50ण्20ःद्ध सरगुजा ;50ण्07ःद्ध जिले में तथा न्यूनतम संख्या अनुपात कोरबा ;0ण्79ःद्ध व बिलासपुर ;0ण्81ःद्ध जिले में प्रतिवेदित हुआ है और क्षेत्र अनुपात वितरण में यही दशा है।
यहां इसके वितरण प्रतिरूप से स्पष्ट होता है कि सामान्य क्षेत्रों की तुलना में अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों में वृहद जोत क्षेत्र का अनुपात तुलनात्मक रूप से कुछ अधिक ही है क्योंकि इन क्षेत्रों में सामान्य रूप से पारिवारिक आधार पर भूमि का उपविभाजन तथा अपखंडन कम हुआ है। इसके बावजूद भी जनजातीय लोग सामान्य की तुलना में आर्थिक-सामाजिक दृष्टियों से अधिक पिछड़े हैं। (मानचित्र 3.8 ’अ’)
निष्कर्ष:-
कुल मिलाकर राज्य में जोत के आकार के वितरण विश्लेषण से स्पष्ट है कि यहां के लगभग एक तिहाई के क्षेत्रों को छोड़कर बाकी दो तिहाई क्षेत्रों में सीमांत, लघु एवं अर्ध मध्यम जोत की संख्या की अधिकता है जबकि तुलनात्मक रूप से क्षेत्र आधा ही है। भूमि वितरण की यह असमानता एक तरफ सामाजिक असंतोष को जन्म देती है तो दुसरी ओर अलाभकर जोतो के लिये भी उत्तरदायी है। राज्य में मुख्यतः सीमांत जोत, जीवन निर्वाह स्तर से भी नीचे है। अधिकाशं परिवारों के पास बहुत ही कम कृषि भूमि है जिनके लिये कृषि जीविकोपार्जन तक ही सीमित रह गई है।
सुझाव:-
सीमांत व लघु जोतों की संख्या में वृद्धि तथा कुल क्षेत्र में हो रही कमी के संदर्भ में कहा जा सकता है कि भविष्य में कृषि का विकास इसी वर्ग पर निर्भर करेगा अतः कृषिनीति के निर्धारण में छोटे जोत के कृषकों के हितो को ध्यान में रखा जाना चाहिये। छोटे व बिखरे जोत को एक स्थान पर लाने हेतु चकबन्दी किया जाना चाहिये। छोटे जोत वाले क्षेत्र में सहकारी कृषि को अपनाया जा सकता है इससे कृषि में निवेश को बढ़ाकर उसे अधिक लाभदायी बनाया जा सकता है।
संदर्भ ;त्ममितमदबमेद्ध:-
1द्ध पाण्डेय, श्रीकांत (1977)- फरेन्दा तहसील में कृषि भूमि का परिवर्तनशील प्रतिरूप, उ.भा.भू.प. अंक-13 संख्या 1-2 पृ. 38-41
2द्ध कश्यप, डी.डी. (1993)- रायगढ़ जिले में कृषि उत्पादकता एवं भूमि की धारण क्षमता, अप्रका-पी.एच.डी. शोध प्रबंध पृ. 63-70
3द्ध पटेल, विमल-दुर्ग जिले में जोत के आकार का विवरण प्रतिरूप-एजुकेशनल वेव पाठक, घनश्याम अप्रैल-जून 2010, पृ. 45-46
4द्ध तिवारी, आर.सी. (2000)-कृषि भूगोल, प्रयाग पुस्तक भवन इलाहाबाद, पृ. 69-70
5द्ध ळनचजं भ्ण्ैण् ;1986द्ध ंदक क्पेजतपइनजपवदंस च्ंजजमतद व िस्ंदक ीवसकपदह पद डण्च्ण्ए ज्ीम क्मबबंद हमवहण् टवसण् ग्ग्प्टए छव.2 च्ण्च्ण्. 36.38
6द्ध ैपदहीए श्रंेइपत ;1975द्ध ंदक ।द ।हतपबनसजनतंस ।जसंे व िप्दकपं । ळमवहतंचीपबंस ।दंसलेपेए टपेींस च्नइण् ज्ञनतनोीमजतंए भ्ंतलंदंए प्दकपंण्
7द्ध ैींतउं ैण्ज्ञण् ;1988द्ध ंदक ।कवचजपवद व ि।हतपबनसजनतंस कमअमसवचउमदज उमंेनतमे पद तमसमजपवद जव ैप्रम ंदक ज्मदकमदबल व िकमअमसवचउमदज ीवसकपदह पद डण्च्ण् श्रवनतदण् प्दकण् त्महपवदंस ेबपमदबम टवसण्.20 छव.2ए च्ण्च्ण्.31.36ण्
Received on 08.09.2011
Accepted on 22.10.2011
© A&V Publication all right reserved
Research J. Humanities and Social Sciences 2011; 2(4): Oct.-Dec., 2011, 196-200