छत्तीसगढ़ में जोत के आकार का वितरण प्रतिरूप

क्पेजतपइनजपवदंस च्ंजजमतद िस्ंदक भ्वसकपदह पद ब्ीींजजपेहंती

 

निवेदिता .लाल1 एवं चैतन्य नन्द2

 

1शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव (..)

2शासकीय कन्या महाविद्यालय जांजगीर (..)

 

 

 

प्रस्तावनारू

भारतीय कृषि व्यवस्था में जोत के आकार से तात्पर्य उस भूखण्ड से है जो एक कृषक के स्वामित्व क्षेत्र में पड़ता है। इसके लिये आवश्यक नहीं है कि सभी भूखण्ड एक ही स्थान पर हों। उत्तराधिकार संबंधी कानूनों तथा जनसंख्या वृध्दि के कारण जोत का आकार एवं भूस्वामित्व निरंतर घटता जा रहा है। किसी भी क्षेत्र के, कृषक विकास में, जोत के आकार की अहम भूमिका होती है।

 

अध्ययन क्षेत्र:-

’’धान का कटोरा’’ कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ भारतीय संघ का 26वां राज्य है। इसकी भौगोलिगक सीमाएं 17ह्46‘ से 42ह्50‘ उत्तर अक्षांश तथा 80ह्15‘ से 84ह्20‘ पूर्वी देशान्तर के मध्य विस्तृत है। 1,35,194 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह राज्य देश की 2ण्02 जनसंख्या (2,07,95,956 व्यक्ति) को आबद्ध करता है। प्रशासकीय दृष्टि से 3 राजस्व संभागों, 16 जिलों, 97 तहसीलों, 146 विकासखण्डों, 97 नगरों तथा 20,308 ग्रामों में विभाजित है। यहां की 79ण्63 मुख्य कार्यशील जनसंख्या कृषि से आजीविका पाती है। यहां कृषि जोत का स्वरूप बहुत बिखरा हुआ है।

 

उद्देश्य:-

प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य राज्य के विभिन्न भागों के भौतिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में जोत के आकार एवं वितरण तथा उत्पादन संबंधी विशेषताओं को स्पष्ट करना है जिससे भविष्य में उचित कृषि विकास संबंधी क्षेत्रीय योजनाओं के प्रस्तुतीकरण को दिशा प्राप्त हो सके।

 

आंकड़ों के स्त्रोत:-

प्रस्तुत अध्ययन द्वितीयक आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। राज्य के 16 जिलों को इकाई मानकर अध्ययन किया गया है।

 

सांख्यिकी एवं मानचित्रांकन तकनीक:-

जोत के आकार का वितरण प्रतिरूप, से संबधित विभिन्न तथ्यों के अध्ययन एवं विश्लेषण को तथ्यपरक बनाने हेतु प्रस्तुत अध्ययन में अनेक मात्रात्मक तकनीकों का प्रयोग किया गया है। प्रतिशत, अनुपात, दर, आदि का प्रयोग अनेक बार हुआ है।

प्रस्तुत शोध में जोत के आकार का वितरण प्रतिरूप के स्थानिक वितरणों को वर्णमात्री मानचित्रों ;ब्ीवतवचसमजी डंचद्ध के माध्यम से यथार्थता को चित्रित करने का प्रयास किया गया है।

 

छत्तीसगढ़ में कृषि जोत आकार एवं फसल उत्पादन:-

जोत वह भूमि है जिस पर कृषि, एक इकाई के रूप में, किसी व्यक्ति या परिवार द्वारा की जाती है। प्रत्येक क्षेत्र में जनसंख्या के आधार पर कृषि की जोतों का आकार निश्चित होता है। यदि क्षेत्रफल बहुत अधिक और जनसंख्या बहुत कम है तो कृषि की जोतें बड़ी होती है जैसेः- साइबेरिया तथा आस्ट्रेलिया में। चीन तथा भारत में जनसंख्या अधिक होने से कृषि की जोतों का आकार तुलनात्मक रूप से बहुत छोटा है। जोत का औसत आकार भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते भार, कृषि पर निर्भरता (अन्य व्यवसायों के अवसरों की अल्पता), उत्तराधिकार नियमों, सामाजार्थिक परिस्थितियों, भौतिक दशाओं, शस्य स्वरूप् इत्यादि से निर्धारित होता है।

 

 

 

 

तालिका क्रमांक - 1 छत्तीसगढ़: परिचालित जोतों का आकार वर्गीकरण तथा जोतों की संख्या एवं क्षेत्रफल (2002-2005)

जोत     आकार

(हेक्टेयर में)      जोतों की संख्या   कुल जोतों का प्रतिशत       क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)       कुल क्षेत्रफल का प्रतिशत

सीमांत   1       1180649  46ण्25   505011   8ण्82

लघु      1.2       512952   20ण्09   744756   13ण्01

अर्ध- मध्यम       2.4       473421   18ण्54   1303281  22ण्77

मध्यम   4.10      311097   12ण्18   1861539  32ण्52

वृहद्     10     74137    2ण्90    1308928  22ण्86

योग               2552256  99ण्96   5723515  99ण्98

स्त्रोत:- कार्यालय आयुक्त, भूअभिलेख .. राज्य शासन रायपुर।

 

 

छत्तीसगढ़ में कुल 2552256 जोत में सीमान्त जोतों की संख्या (1180649) सबसे अधिक है जिसके अंतर्गत 1हेक्टेयर से कम जोत आकार को सम्मिलित किया जाता है इसका अनुपात कुल जोतों का 46ण्25 प्रतिशत है, लेकिन इनके स्वामित्व में कुल जोतों के क्षेत्रफल का भाग 8ण्82 भाग ही है। इस तरह स्पष्ट है कि यहां 2/5 कृषि अत्यंत गरीब अल्प साधनों वाली है। मध्य उत्तर के मैदानी तथा पहाड़ी-पठारी भागों के ज्यादातर भागों में सीमांत कृषक अर्धबेरोजगारी की दशा से गुजरते है क्योंकि यहां की कृषि में उन्हें 5-6 माह ही रोजगार मिलता है। दिसम्बर से ये काम की तलाश में अन्य राज्यों में पलायन कर जाते हैं।

 

छत्तीगसढ़ में लघु जोतों की संख्या कुल जोतों का 20ण्09 है। इस श्रेणी में 1-2 हेक्टेयर जोत आकार को शामिल किया जाता है लेकिन इस जोत आकार का क्षेत्र अनुपात 13ण्01 है। यहां लगभग 2/3 लघु कृषक मध्यवर्ती मैदानी भाग में केन्द्रित है यहां अधिकांश भागों में सिंचाई के साधन उपलब्ध होने के कारण दो फसली कृषि हो जाती है यदि सीमान्त लघु जोतों की संख्या को देखा जाय तो 66ण्34 प्रतिशत इसी श्रेणी में है जबकि क्षेत्र अनुपात मात्र 21ण्83 ही है। ये कृषक सामान्यतः गरीब होते जा रहे हैं जिससे इनकी कृषि उत्पादकता भी कम होती जा रही है।

 

छत्तीसगढ़ में अर्धमध्यम जोतों की संख्या 47,3421 है तथा कुल जोत क्षेत्र का 18ण्54 प्रतिशत क्षेत्र इसके अंतर्गत है। राज्य के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्रों में इसका अनुपात तुलनात्मक रूप से मध्यम है जबकि दक्षिणी पहाड़ी-पठारी तथा उत्तरी पहाड़ी-पठारी भागों में इसका विस्तार अधिक है। इस वर्ग के कृषक सामान्यतः कुछ सहायक कार्य करके अपनी आर्थिक स्थिति को सामान्य बनाये रखते हैं।

 

यहां 12ण्18 प्रतिशत जोत मध्यम आकार (4-10 हेक्टेयर) के अंतर्गत है जिनका जोत क्षेत्र 1861539 हेक्टेयर (32.52) अर्थात लगभग एक तिहाई जोत क्षेत्र है। क्षेत्रफल की दृष्टि से इस जोत आकार का अनुपात छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक है। उत्तरी पहाड़ी-पठारी भागों में इस जोत आकार का विस्तार कुछ अधिक है। लेकिन फसलों की उत्पादकता कम उर्वर मिट्टी कम पूंजी निवेश तथा जनजातीय जनसंख्या की अधिकता के कारण तुलनात्मक रूप से कम है तथा मैदानी भागों में उन्नत कृषि निवेशों के कारण उत्पादन अधिक है।

 

वृहद जोत श्रेणी (10 हेक्टेयर से अधिक) के जोतों की संख्या 74137 (2.90 प्रतिशत) है जबकि जोत क्षेत्र अनुपात 22.86 प्रतिशत है। वृहत जोत वाले कृषक उन्नत बीजों तथा उच्च कृषि निवेशों के कारण अधिक उत्पादकता प्राप्त करते है। नदियों के मैदानी भागों में इनका विस्तार अधिक है। पुराने मालगुजारों एवं सामंतो के स्वामित्व में इस प्रकार के जोत ज्यादा हैं ऐसे जोतों के कृषक कृषि कार्य मजदूरों द्वारा ठेका, मजदूरी या निश्चित उत्पादन के आधार पर काम कराते हैं।

 

 

जोत आकार का वितरण प्रतिरूप:-

तालिका 2 में छत्तीसगढ़ में जिलेवार जोतों की संख्या एवं क्षेत्र के प्रतिशत अनुपात को स्पष्ट किया गया है। जिसका विश्लेषण निम्नानुसार है:-

तालिका क्रमांक 2रू छत्तीसगढ़ - परिचालित जोतों का आकार वितरण प्रतिरूप (2002-2005)

क्र.       जिले     सीमांत   लघु      अर्धमध्यम        मध्यम   वृहत्     औसत आकार

                    संख्या   क्षेत्र      संख्या   क्षेत्र      संख्या   क्षेत्र      संख्या   क्षेत्र      संख्या   क्षेत्र     

1         रायगढ़  30ण्9    6ण्55    11ण्96   10ण्41   19ण्95   19ण्92   16ण्31   34ण्01   4ण्77    28ण्94          2ण्41

2         जशपुर   25ण्36   3ण्62    18ण्03   7ण्76    25ण्55   19ण्98   23ण्48   42ण्48   6ण्70    26ण्03          2ण्42

3         कोरिया  16ण्98   3ण्60    12ण्24   8ण्21    13ण्15   14ण्98   7ण्18    21ण्26   50ण्20   52ण्01          2ण्23

4         सरगुजा  19ण्47   3ण्90    9ण्84    6ण्81    10ण्88   12ण्24   8ण्54    25ण्97   50ण्07   51ण्31          2ण्30

5         बिलासपुर          64ण्33   19ण्07   17ण्71   18ण्14   12ण्26   25ण्06   6ण्23    24ण्98   0ण्81          9ण्43    1ण्43

6         कोरबा    60ण्00   20ण्10   18ण्58   21ण्06   13ण्58   23ण्99   6ण्66    25ण्63   0ण्79    9ण्22          1ण्57

7         जांजगीर 50ण्63   11ण्02   20ण्45   18ण्13   17ण्16   24ण्47   9ण्88    30ण्74   1ण्80    4ण्45          1ण्24

8         रायपुर   50ण्60   11ण्33   21ण्00   15ण्54   16ण्51   23ण्72   9ण्81    29ण्58   2ण्05    19ण्80          1ण्78

9         महासमुंद          38ण्49   6ण्96    20ण्87   11ण्16   20ण्89   21ण्91   15ण्60   36ण्99   3ण्9          23ण्27   2ण्00

10        धमतरी  45ण्58   7ण्82    18ण्63   10ण्69   17ण्23   20ण्12   14ण्20   34ण्71   4ण्36    27ण्40          1ण्49

11        दुर्ग      47ण्04   9ण्83    21ण्22   13ण्82   16ण्95   21ण्83   11ण्32   30ण्78   2ण्94    23ण्21          2ण्09

12        कवर्धा    57ण्27   14ण्55   18ण्95   17ण्19   13ण्91   24ण्26   7ण्61    28ण्38   1ण्43    15ण्60          1ण्56

13        राजनांदगांव       36ण्22   5ण्99    20ण्98   10ण्92   21ण्66   21ण्87   16ण्96   36ण्73   4ण्10          24ण्16   2ण्47

14        कांकेर    35ण्30   5ण्90    20ण्70   11ण्60   23ण्00   24ण्70   17ण्80   40ण्40   3ण्20    17ण्40          2ण्19

15        बस्तर    18ण्61   2ण्56    17ण्43   6ण्24    31ण्15   19ण्75   23ण्50   35ण्62   9ण्31    35ण्83          3ण्31

16        दन्तेवाड़ा 30ण्13   8ण्60    20ण्70   9ण्69    32ण्5    26ण्30   17ण्01   30ण्11   3ण्75    20ण्92          3ण्08

          औसत:- 46ण्25   8ण्82    20ण्09   13ण्01   18ण्54   22ण्77   12ण्18   32ण्52   2ण्90    22ण्86          2ण्09

स्त्रोत:- कार्यालय आयुक्त, भूअभिलेख छत्तीसगढ़ राज्य शासन, रायपुर।

 

 

(1) सीमान्त जोत:-

यहां जोत संख्या का अनुपात इस वर्ग में सबसे अधिक ;46ण्25ःद्ध है लेकिन क्षेत्र का अनुपात सबसे कम 8ण्82 है। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक सीमांत जोत अनुपात बिलासपुर जिले में ;64ण्33ःद्ध तथा सबसे कम अनुपात कोरिया जिले में ;16ण्98ःद्ध प्रतिवेदित हुआ है जबकि अनुपात में कोरबा प्रथम ;20ण्10ःद्ध तथा बस्तर ;2ण्56ःद्ध जिला अंतिम स्थान पर है। स्पष्ट है कि जनजातीय क्षेत्रों में सीमान्त जोतों की संख्या तथा क्षेत्र कम होती है जिसका कारण विरली जनसंख्या तथा भूमि का कम उपजाऊ होना है। बंटवारे के प्रकरण भी कम देखे जाते है सामान्यतः विषम उच्चावच मिट्टी की लेटेराइजेशन रेत प्रधान मिट्टियों के कारण कृषि क्षेत्र कुछ सीमित होता है। यहां अधिक सीमांत जोत वाले जिले कवर्धा ;57ण्27ःद्ध जांजगीर ;50ण्63ःद्ध रायपुर ;50ण्60ःद्ध दुर्ग ;47ण्04ःद्ध धमतरी ;45ण्58ःद्ध इत्यादि जिले हैं जबकि कम सीमांत जोत वाले जिले बस्तर ;18ण्61ःद्ध सरगुजा ;19ण्47ःद्ध जशपुर ;25ण्36ःद्ध दंतेवाड़ा ;30ण्13ःद्ध इत्यादि है। इसी तरह अनुपात की अधिकता बिलासपुर ;19ण्07ःद्ध कवर्धा ;14ण्55ःद्ध रायपुर ;11ण्33ःद्ध जांजगीर ;11ण्02ःद्ध जिले में देखने को मिलती है जो ज्यादातर सामान्य जनसंख्या वाले भाग है। (मानचित्र 3.6 ’’)

 

(2) लघु जोत:-

राज्य के लगभग दो-तिहाई लघु जोत मध्यवर्ती मैदानी और पठारी भागों में है। इस वर्ग में जोत संख्या का सर्वाधिक अनुपात दुर्ग जिले ;21ण्22ःद्ध तथा सबसे कम सरगुजा जिले ;9ण्84ःद्ध में है। इसके उच्च संख्या अनुपात क्षेत्रों के अंतर्गत रायपुर ;21ण्00ःद्ध राजनांदगांव ;20ण्98ःद्ध कांकेर ;20ण्70ःद्ध महासमुंद ;20ण्87ःद्ध जांजगीर ;20ण्45ःद्ध दुर्ग ;21ण्22ःद्ध दंतेवाड़ा ;20ण्70ःद्ध जिलों में प्रतिवेदित हुआ है जो मैदानी भागों की कृषि क्षेत्र प्रधानता को प्रमाणित करता है। इसका अधिक क्षेत्र अनुपात बिलासपुर ;18ण्14ःद्ध कवर्धा ;17ण्19ःद्ध जांजगीर ;18ण्13ःद्ध में है जबकि न्यून अनुपात सरगुजा ;6ण्81ःद्ध जशपुर ;7ण्76ःद्ध कोरिया ;8ण्21ःद्ध जिलों में प्रतिवेदित हुआ है। इस तरह देखा जाय तो सीमांत तथा लघु जोत वर्ग में कुल जोत क्षेत्र का मात्र 1/5 हिस्सा है जबकि संख्या अनुपात 3/5 है। इन वर्गों के कृषक विभिन्न आवश्यक कार्यों जैसे गम्भीर बीमारी, शादी ब्याह इत्यादि में खर्च के लिये वैकल्पिक उपाय होने पर जमीन बेच देते है। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इन वर्गों के कृषकों की आर्थिक दशा बहुत खराब है। (मानचित्र 3.6 ’’)

 

(3) अर्धमध्यम जोत:-

राज्य के इस जोत वर्ग में जोतों की संख्या ;18ण्54ःद्ध और क्षेत्र अनुपात ;22ण्77ःद्ध में ज्यादा भिन्नता नहीं है। इस वर्ग के जोतों के वितरण प्रतिरूप सीमांत एवं लघु जोताकारों के समान आवश्यक नहीं है। सर्वाधिक संख्या अनुपात दन्तेवाड़ा ;32ण्50ःद्ध तथा बस्तर ;31ण्15ःद्ध और न्यूनतम संख्या अनुपात सरगुजा ;10ण्88ःद्ध तथा बिलासपुर ;12ण्26ःद्ध जिले में प्रतिवेदित हुआ है इसी तरह अधिकतम तथा न्यूनतम क्षेत्र अनुपात क्रमशः दन्तेवाड़ा ;26ण्30ःद्ध सरगुजा ;12ण्24ःद्ध जिले में है।

 

इस वर्ग के जोतों की संख्या और क्षेत्र में ज्यादा परिवर्तन होने का महत्वपूर्ण कारण यह है  कि इस वर्ग के कृषक अपनी पहचान नहीं खोना चाहतें हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि उनकी कृषि भूमि सुरक्षित रहे। (मानचित्र 3.7 ’’)

 

(4) मध्यम जोत:-

क्षेत्रफल की दृष्टि से यह जोत वर्ग ;32ण्52ःद्ध प्रथम क्रम पर है। इस जोत वर्ग के कृषक प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये पर्याप्त जोखिमके साथ विभिन्न कृषि निवेशों का प्रयोग करने में सक्षम होते है और इन्हें अपनी आवश्यकताओं के अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त होता है जिससे वे आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होते है। यहां इनकी अधिकतम संख्या अनुपात बस्तर ;23ण्50ःद्ध और जशपुर ;23ण्48ःद्ध जिले में तथा न्यूूनतम संख्या अनुपात बिलासपुर जिले ;6ण्23ःद्ध प्रतिवेदित हुआ है। मध्यम जोत संख्या के वितरण प्रतिरूप में भिन्नता इस वर्ग के जोत क्षेत्र अनुपात की तुलना में अधिक है। (मानचित्र 3.7 ’’)

 

 

 

                    मानचित्र 3.8 ’’                                                    मानचित्र 3.8 ’

 

 

(5) वृहद् जोत:-

इस जोत वर्ग में भी संख्या ;2ण्90ःद्ध की तुलना में क्षेत्र ;22ण्86ःद्ध का अनुपात सात गुना से अधिक है। सबसे अधिक अनुपात कोरिया ;50ण्20ःद्ध सरगुजा ;50ण्07ःद्ध जिले में तथा न्यूनतम संख्या अनुपात कोरबा ;0ण्79ःद्ध बिलासपुर ;0ण्81ःद्ध जिले में प्रतिवेदित हुआ है और क्षेत्र अनुपात वितरण में यही दशा है।

 

यहां इसके वितरण प्रतिरूप से स्पष्ट होता है कि सामान्य क्षेत्रों की तुलना में अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों में वृहद जोत क्षेत्र का अनुपात तुलनात्मक रूप से कुछ अधिक ही है क्योंकि इन क्षेत्रों में सामान्य रूप से पारिवारिक आधार पर भूमि का उपविभाजन तथा अपखंडन कम हुआ है। इसके बावजूद भी जनजातीय लोग सामान्य की तुलना में आर्थिक-सामाजिक दृष्टियों से अधिक पिछड़े हैं। (मानचित्र 3.8 ’’)

 

निष्कर्ष:-

कुल मिलाकर राज्य में जोत के आकार के वितरण विश्लेषण से स्पष्ट है कि यहां के लगभग एक तिहाई के क्षेत्रों को छोड़कर बाकी दो तिहाई क्षेत्रों में सीमांत, लघु एवं अर्ध मध्यम जोत की संख्या की अधिकता है जबकि तुलनात्मक रूप से क्षेत्र आधा ही है। भूमि वितरण की यह असमानता एक तरफ सामाजिक असंतोष को जन्म देती है तो दुसरी ओर अलाभकर जोतो के लिये भी उत्तरदायी है। राज्य में मुख्यतः सीमांत जोत, जीवन निर्वाह स्तर से भी नीचे है। अधिकाशं परिवारों के पास बहुत ही कम कृषि भूमि है जिनके लिये कृषि जीविकोपार्जन तक ही सीमित रह गई है।

 

 

सुझाव:-

सीमांत लघु जोतों की संख्या में वृद्धि तथा कुल क्षेत्र में हो रही कमी के संदर्भ में कहा जा सकता है कि भविष्य में कृषि का विकास इसी वर्ग पर निर्भर करेगा अतः कृषिनीति के निर्धारण में छोटे जोत के कृषकों के हितो को ध्यान में रखा जाना चाहिये। छोटे बिखरे जोत को एक स्थान पर लाने हेतु चकबन्दी किया जाना चाहिये। छोटे जोत वाले क्षेत्र में सहकारी कृषि को अपनाया जा सकता है इससे कृषि में निवेश को बढ़ाकर उसे अधिक लाभदायी बनाया जा सकता है।

 

संदर्भ ;त्ममितमदबमेद्ध:-

1द्ध     पाण्डेय, श्रीकांत (1977)- फरेन्दा तहसील में कृषि भूमि का परिवर्तनशील प्रतिरूप, .भा.भू.. अंक-13 संख्या 1-2 पृ. 38-41

2द्ध     कश्यप, डी.डी. (1993)- रायगढ़ जिले में कृषि उत्पादकता एवं भूमि की धारण क्षमता, अप्रका-पी.एच.डी. शोध प्रबंध पृ. 63-70

3द्ध     पटेल, विमल-दुर्ग जिले में जोत के आकार का विवरण प्रतिरूप-एजुकेशनल वेव पाठक, घनश्याम अप्रैल-जून 2010, पृ. 45-46

4द्ध     तिवारी, आर.सी. (2000)-कृषि भूगोल, प्रयाग पुस्तक भवन इलाहाबाद, पृ. 69-70

5द्ध     ळनचजं भ्ण्ैण् ;1986द्ध ंदक क्पेजतपइनजपवदंस च्ंजजमतद िस्ंदक ीवसकपदह पद डण्च्ण्ए ज्ीम क्मबबंद हमवहण् टवसण् ग्ग्प्टए छव.2  च्ण्च्ण्. 36.38

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Received on 08.09.2011

Accepted on 22.10.2011     

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Research J. Humanities and Social Sciences 2011; 2(4): Oct.-Dec., 2011, 196-200