बस्तर प्रक्षेत्र में भूमि उपयोग में परिवर्तन

(Changes in Land Use Patterns in Bastar Region)

 

Dr. (Smt.) Archana Sethi1* and Dr. (Smt.) Gouri Sharma2

1Contact Lecturer, SOS in Economics, Pt. Ravishankar Shukla University, Raipur

2Contact Lecturer, SOS in Education, Pt. Ravishankar Shukla University, Raipur

 

सार-संक्षेप:

प्रस्तुत शोध पत्र का उदृेश्य बस्तर प्रक्षेत्र में भूमि उपयोग परिवर्तन को ज्ञात करना है इस हेतु 1984-87 के औसत और 2004-07 के औसत अर्थात 20 वर्षो के भूमि उपयोग में परिवर्तन को आधार माना गया है आकड़े भूमि उपयोग कार्यालय एवं जिला कृषि सांख्यिकी पुस्तिका से प्राप्त किये गये है बस्तर प्रक्षेत्र में एक-तिहाई क्षेत्र निरा फसली क्षेत्र है जबकि एक-तिहाई क्षेत्र वनों के अंतर्गत है इसी तरह परती भूमि तथा कृषि योग्य बेकार भूमि बस्तर में अधिक है और अकृषि भूमि कम है वनों का प्रतिशत दंतेवाड़ा जिले में सर्वाधिक है। इसके विपरीत निरा फसली क्षेत्र, परती भूमि तथा परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि दंतेवाडा जिला में कम है कांकेर जिला में निरा फसली क्षेत्र, परती भूमि तथा परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि अधिक है। बस्तर प्रक्षेत्र में 1984-87 से 2004-07 के मध्य ग्रामीण वनों के प्रतिशत में सर्वाधिक कमी जबकि परती भूमि के प्रतिशत में सर्वाधिक वृद्धि हुई है जबकि कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि एवं परती भूमि के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि में कमी तथा निरा फसली क्षेत्र एवं कृषि योग्य बेकार भूमि के प्रतिशत में बहुत कम वृद्धि हुई है

 

ज्ञमल ूवतकेरू

भूमि उपयोग, निरा फसली, फसल प्रतिरुप, कृषि योग्य, परती भूमि

 

 

प्रस्तावनारू

“The Bastar District of Madhya Pradesh (India) is a paradise for the researchers. Within its area of about 15,000 square miles, it contains a great variety of natural and cultural phenomena-largely unexplored, on account of its inaccessibility. The geologist has yet to survey the rich mineral resources of Bastar. The botanist finds innumerable species of plants, growing in the widespread forests of the District. The zoologist would eagerly observe the multitude of fauna, inhabiting these forests, and the soil scientist could analyse a variety of soils, at different stages of their formation, on various rocks and surface gradients, under the prevailing forest cover. The greatest interest in Bastar, however, lies in the field of anthropology and human geography. Situated in the heart of the peninsula, Bastar represents a backwater in the history of Indian culture. Isolated by the extensive forests and difficult terrain the various tribes, inhabiting this region, have preserved their ancient customs, institutions and material culture, which is of unique interest to a geographer”. (Agrawal, 1968). भारत वर्ष का हृदय स्थल छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित बस्तर अपने नाम से ही अतीत के गौरव को दोहराता है यह आज भी सम्पूर्ण भारत के लिए एक आश्चर्य बना हुआ है यह पुरात्न काल से ही विभिन्न सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्रियाकलापों के लिए पौराणिक युग में दण्डकारण्य नाम से विभूषित अपनी प्राचीन ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक सामग्री से भरपूर है बस्तर प्रक्षेत्र दण्डकारण्य पठार का उत्तरी हिस्सा है

 

 

 

 

बस्तर प्रक्षेत्र का भू-पृष्ठ अनेक प्रकार की शैलों से निर्मित है इस क्षेत्र. में प्राचीन शैलों से लेकर आधुनिक नवीन शैले पायी जाती है इंद्रावती नदी बस्तर प्रक्षे़त्र को उत्तर और दक्षिण दो भागों में बांटती है इन्द्रावती नदी के उत्तरी भाग को पुनः तीन भागों में उत्तर का मैदानी भाग, केशकाल की घाटी एवं अबूझमाढ का पहाड़ी क्षेत्र है इंद्रावती नदी का दक्षिण भाग भी तीन भागों में उत्तरी-पूर्वी पठार, दक्षिण का पहाड़ी और दक्षिणी निम्न भूमि में विभाजित है बस्तर प्रक्षेत्र पहले वनों से आंच्छादित है उस समय यहाॅं के मूल निवासी (आदिवासी) कंदमूल तथा फल-फूल खाकर जीवनयापन करते थे बस्तर प्रक्षेत्र में जनसंख्या का विकास मुख्य रुप से नदियों के किनारे भागों में अधिक हुआ है प्रक्षेत्र की अधिकांश जनसंख्या उत्तरी-पूर्वी भाग में केन्द्रित है इसके अंतर्गत जगदलपुर, कोड़ागांव, दंतेवाड़ा और कांकेर विकासखण्ड शामिल हंै जहाॅं जनसंख्या अधिक है इसके विपरीत बीजापुर, कोण्टा, नारायणपुर विकासखण्ड में अधिकांश भाग वनाच्छिदत है और अबूझमाढ की पहाडियों से घिरा है अतः इन क्षेत्रों में जनसंख्या कम है

 

अध्ययन क्षेत्र

बस्तर प्रक्षेत्र में तीन जिले कांकेर, बस्तर और दंतेवाड़ा शामिल हैं। कांकेर जिले में 7 विकासखण्ड, बस्तर जिले में 14 विकासखण्ड तथा दंतेवाड़ा जिले में 11 विकासखण्ड शामिल है इस तरह बस्तर प्रक्षेत्र में 32 विकासखण्ड शामिल हैं प्रक्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 39114 वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 30,88,414 है

 

अध्ययन का उद्देश्य

1. प्रस्तुत शोध का उद्देश्य बस्तर प्रक्षेत्र में भूमि उपयोग में क्षेत्रीय प्रतिरुप को ज्ञात करना

2. 1984-87 से 2004-07 के मध्य 20 वर्षो की अवधि में भूमि उपयोग में परिवर्तन ज्ञात करना

 

आंकड़ो के स्रोत एवं विधि तंत्र

यह अध्ययन मुख्यतः द्वितीयक आंकडों पर आधारित है भूमि उपयोग के आंकडे भू-अभिलेख कार्यालय से विकासखण्ड के अनुसार एकत्र किये गये हैं यह अध्ययन 1984-85, 1985-86, 1986-87 के औसत और 2004-05, 2005-06, 2006-07 के औसत पर आधारित है भूमि उपयोग में परिवर्तन इन 20 वर्षो की अवधि में दर्शाये गये है मानचित्र भी इसी आधार पर बनाये गये है

 

भूमि उपयोग

भूमि उपयोग भौगोलिक अध्ययन का महत्वपूर्ण पहलू है यह विशेषकर कृषि से संबंधित है भूमि उपयोग का अध्ययन किसी क्षेत्र के भौगोलिक अध्ययन का आधार या स्वरुप प्रस्तुत करता है यह उस क्षेत्र विशेष के आर्थिक क्रियाकलापों का भी परिचायक होता है बस्तर प्रक्षेत्र की जनजातियों में गोंड़, हल्बा, धुरवा, डोरला, भतरा, मुरिया, मारिया प्रमुख है इनकी संस्कृति, रीतिरिवाज परम्पराओं का भूमि उपयोग पर छाप स्पष्ट रुप से दिखाई पड़ता है भूमि उपयोग के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य भूमि संसाधन की आदर्श उपयोग की रुप रेखा प्रस्तुत करता है किसी क्षेत्र में भूमि उपयोग किस प्रकार से तथा किन-किन कार्याे में कितनी भूमि लगी है, भूमि उपयोग वर्गीकरण के अंतर्गत आता है सर्वप्रथम 1930 में डडले स्टेम्प ने ग्रेट ब्रिटेन में भूमि उपयोग सर्वेक्षण का कार्य प्रारंभ कया भारत 1949-50 में भूमि उपयोग के वर्गीकरण के लिए एक समीति की स्थापना की गयी इस समीति ने भूमि उपयोग के वर्ग की स्पष्ट परिभाषा बनायी और भूमि उपयोग का एक वर्गीकरण प्रस्तुत किया इस आधार पर बस्तर जिले में भूमि उपयोग को पाॅंच भागों में बांटा गया है (1.) वन (2.) कृषि के लिए अप्राप्त भूमि (3.) परती के अतिरिक्त अन्य अकृषिगत भूमि (4.) परती भूमि (5.) निराफसली क्षेत्र

 

बस्तर प्रदेश में एक-तिहाई से अधिक (35.0) क्षेत्र ग्रामीण वनों के अंर्तगत है इसके विपरीत मात्र 35.2 क्षेत्र निराफसली क्षेत्र है परती भूमि 7.9 प्रतिशत और कृषि योग्य बेकार भूमि 8.2 है ग्रामीण वनों का प्रतिशत दंतेवाड़ा जिले में सर्वाधिक 45.8 जबकि कांकेर जिले में 17.7 है इसी प्रकार कृषि योग्य बेकार भूमि दंतेवाड़ा जिले में सर्वाधिक 11.2 और कांकेर जिला में मात्र 4.7 है यही कारण है कि निराफसली क्षेत्र और परती भूमि तथा परतीको छोड़ अन्य अकृषि भूमि का प्रतिशत दंतेवाड़ा जिले में कम और कांकेर जिले में सर्वाधिक है निराफसल दंतेवाड़ा जिले में 28.0 एवं कांकेर जिले में 39.0 है परती भूमि दंतेवाड़ा जिला (4.4) से कांकेर जिले (20.5) में चार गुना अधिक है परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि दंतेवाड़ा जिला में 3.5 तथा कांकेर जिले में 8.6 है

 

ग्रामीण वन ;टपससंहम थ्वतमेजेद्ध

ग्रामीण वनों में सुरक्षित और आरक्षित वनों को शामिल नही किया जाता इसमें भू-अभिलेख के अंतर्गत आने वाले वन क्षेत्र को शामिल किया जाता है जिन विकासखण्डों में वनों का विस्तार अधिक है उसका कारण उस क्षेत्र का उबड-खाबड पर्वतीय क्षेत्र है जिससे कृषि कार्य का विस्तार कम हुआ है जिन विकासखण्डों में कृषि का विकास अधिक हुआ है उसका कारण उस भू-भाग का मैदानी और उपजाऊ होने के कारण वनों को काटकर कृषि करना है ओरछा विकासखण्ड में अबूझमाढ आता है जो वनों से आच्छादित है अतः ओरछा विकासखण्ड के आंकडे उपलब्ध नही हैं ग्रामीण वनों को प्रतिशत बस्तर प्रक्षेत्र में पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी भाग में 50.0ःसे अधिक है इसके अंतर्गत उत्तरी-पूर्वी पठारी भाग तथा गोदावरी-सबरी निम्न भूमि जिसमें उसूर गोपापल्ली पहाड़ी स्थित है, शामिल है इसके विपरीत उत्तर में कोटरी-महानदी बेसीन तथा दक्षिण पूर्व में दंतेवाड़ा मैदानी भाग में वनो का प्रतिशत 10.0 से कम है

सम्पूर्ण बस्तर प्रक्षेत्र में 2004-07 के अनुसार पृष्ठ के कुल क्षेत्र का 35.0 ग्रामीण वन है किन्तु ग्रामीण वन का प्रतिशत भोपालपटट्नम (72.9) और उसूर (72.4) में 70 से भी अधिक है इसी तरह बीजापुर (54.04) तथा भैरमगढ़ (64.6) विकासखण्ड में 50 से अधिक क्षेत्र ग्रामीण वन के अंर्तगत है ये चारों विकासखण्ड दंतेवाड़ा जिला के अंर्तगत है बस्तर जिले के माकड़ी (49.6), केशकाल (48.7), कोड़ागाॅंव (47.5) और बडेराजपुर (46.8) चारों विकासखण्ड में ग्रामीण वन 40.0  से अधिक है इसके विपरीत कांकेर जिले के कांकेर (4.9), चारामा (7.7) एवं बस्तर जिले के तोकापाल (5.4) एवं बस्तानार (7.0) चारों विकासखण्ड में ग्रामीण वन 10.0 से भी कम है

 

Table–1, Bastar Region : Land Use Pattern (2004-07 Average)

 Land use                                                           Kanker     Bastar     Dantewada             Total

Village Forest                                                      17.7                      33            45.8                    35

Land not available for cultivation                        9.5                      9.2            7.1                  8.4

Other uncultivated land excluding fallows           8.6                      5.4            3.5                         5.3

Culturable waste                                               4.7                           6.9          11.2                    8.2

Fallow land                                                     20.5                            4            4.4                       7.9

Net sown area                                                    39                           41.5        28                        35.2

 

कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि ;स्ंदक दवज ंअंपसंइसम वित बनसजपअंजपवदद्ध

ऐसी भूमि जो कृषि के दृष्टिकोण से अयोग्य होती है अथवा जिसका उपयोग कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्यो में किया जाता है कृषि के लिए अप्राप्य भूमि में शामिल होता है इसके अंतर्गत सड़क, तालाब, अधिवास भूमि शामिल की जाती है इस वर्ग में 2 प्रकार की भूमि शामिल है () अकृषिगत कार्यो में प्रयुक्त भूमि () बेकार एवं कृषि के अयोग्य भूमि जहाॅं पर कृषि के लिए अप्राप्य भूमि अधिक है उन विकासखण्डों में जनसंख्या एवं नगरीकरण में वृद्धि हुई है बस्तर प्रदेश में कृषि के लिए

 

ग्रामीण वन ;टपससंहम थ्वतमेजेद्ध

ग्रामीण वनों में सुरक्षित और आरक्षित वनों को शामिल नही किया जाता इसमें भू-अभिलेख के अंतर्गत आने वाले वन क्षेत्र को शामिल किया जाता है जिन विकासखण्डों में वनों का विस्तार अधिक है उसका कारण उस क्षेत्र का उबड-खाबड पर्वतीय क्षेत्र है जिससे कृषि कार्य का विस्तार कम हुआ है जिन विकासखण्डों में कृषि का विकास अधिक हुआ है उसका कारण उस भू-भाग का मैदानी और उपजाऊ होने के कारण वनों को काटकर कृषि करना है ओरछा विकासखण्ड में अबूझमाढ आता है जो वनों से आच्छादित है अतः ओरछा विकासखण्ड के आंकडे उपलब्ध नही हैं ग्रामीण वनों को प्रतिशत बस्तर प्रक्षेत्र में पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी भाग में 50.0ःसे अधिक है इसके अंतर्गत उत्तरी-पूर्वी पठारी भाग तथा गोदावरी-सबरी निम्न भूमि जिसमें उसूर गोपापल्ली पहाड़ी स्थित है, शामिल है इसके विपरीत उत्तर में कोटरी-महानदी बेसीन तथा दक्षिण पूर्व में दंतेवाड़ा मैदानी भाग में वनो का प्रतिशत 10.0 से कम है

सम्पूर्ण बस्तर प्रक्षेत्र में 2004-07 के अनुसार पृष्ठ के कुल क्षेत्र का 35.0 ग्रामीण वन है किन्तु ग्रामीण वन का प्रतिशत भोपालपटट्नम (72.9) और उसूर (72.4) में 70 से भी अधिक है इसी तरह बीजापुर (54.04) तथा भैरमगढ़ (64.6) विकासखण्ड में 50 से अधिक क्षेत्र ग्रामीण वन के अंर्तगत है ये चारों विकासखण्ड दंतेवाड़ा जिला के अंर्तगत है बस्तर जिले के माकड़ी (49.6), केशकाल (48.7), कोड़ागाॅंव (47.5) और बडेराजपुर (46.8) चारों विकासखण्ड में ग्रामीण वन 40.0  से अधिक है इसके विपरीत कांकेर जिले के कांकेर (4.9), चारामा (7.7) एवं बस्तर जिले के तोकापाल (5.4) एवं बस्तानार (7.0) चारों विकासखण्ड में ग्रामीण वन 10.0 से भी कम है

 

अनुपलब्ध भूमि 8.4 है दंतेवाड़ा जिला के कटेकल्याण विकासखण्ड में सर्वाधिक 26.6 प्रतिशत है कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि बस्तर जिले के बस्तानार (20.3) और दंतेवाडा जिला के लौहंडीगुडा (19.9), दंतेवाडा (17.9) और कुंआकोडा (16.2) विकासखण्डों में 15 से अधिक है इसी तरह गीदम (10.6) और तोकापाल (12.4) विकासखण्डों में यह 10.0 से अधिक है इसके विपरीत दंतेवाडा जिले के उसूर (2.2) तथा बीजापुर, बस्तर जिले के बडेराजपुर (2.4), फरसगांव (3.4) और माकडी (3.2) विकासखण्डों में कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि 5.0 से भी कम है

 

 

परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि ;व्जीमत न्दबनसजपअंजमक संदक मगबसनकपदह ंिससवूेद्ध

अन्य अकृषिगत भूमि का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इस प्रकार की भूमि में ही कृषि का विस्तार सम्भव है परती के अतिरिक्त अन्य अकृषिगत भूमि में () स्थायी चारागाह एवं घास के क्षेत्र   () छोटी झाडियों के झुण्ड () कृषि योग्य बेकार भूमि शामिल है किन्तु प्रस्तुत शोध पत्र में कृषि योग्य बेकार भूमि को अलग वर्ग में रखा गया है   बस्तर प्रक्षेत्र में परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि 5.3 है किन्तु यह प्रतिशत कांकेर जिले के दुर्गकोडल (14.3), भानुप्रतापपुर (13.8) तथा सरोना विकासखण्ड (10.5) विकासखण्डों में 10.0 से अधिक है इसी तरह चारामा (8.8) तथा कांकेर (8.5) तथा बस्तर जिले के बस्तर विकासखण्ड (9.6) तथा दंतेवाडा जिले के कोण्टा (9.8) विकासखण्ड में परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि 8.0 से अधिक है इसके विपरीत दंतेवाडा जिले के कुंआकोडा (0.8), उसूर (0.7), भोपालपटट्नम (1.1), दंतेवाडा (1.2), गीदम (1.6), भैरमगढ (2.1) तथा बीजापुर (2.8) विकासखण्डों में यह प्रतिशत 3.0 से कम है इसी तरह कांकेर जिले के अंतागढ विकासखण्ड में परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि मात्र 2.1 है

 

कृषि योग्य बेकार भूमि ;ब्नसजनतंइसम ॅंेजम स्ंदकद्ध

कृषि योग्य बेकार भूमि वह भूमि है जो कृषि योग्य है परन्तु भौतिक, सामाजिक, आर्थिक बाधाओं के कारण उसे बेकार छोड़ दिया जाता है जो भूमि 5 वर्षो से अधिक समय के लिए परती छोड दी जाती है, कृषि योग्य बेकार भूमि में सम्मिलित कर ली जाती है इस भूमि उपयोग को निम्न तीन वर्ग में विभाजित किया गया है () तुरंत कृषि योग्य भूमि () कुछ सुधार के पश्चात कृषि योग्य भूमि () भूमि के ऐसे टुकडे जो उचित व्यय के बाद कृषि योग्य हो सकते है इस प्रकार की भूमि बस्तर प्रक्षेत्र में विभिन्न आकार के अनियमित छोटे-छोटे टुकडों में है जहाॅं छोटी-छोटी झाडियाॅं तथा घास आदि है इस वर्ग की भूमि को कृषि के अंतर्गत लाना तभी संभव है जब सिंचाई सुविधा का विकास हो बस्तर प्रक्षेत्र में कृषि योग्य बेकार भूमि 8.2 है कृषि योग्य बेकार भूमि बस्तर जिले के तोकापाल विकासखण्ड में सर्वाधिक 20.6  है इसी तरह दंतेवाडा जिला के गीदम (17.9) और सुकमा (15.5) विकासखण्डों में कृषि योग्य बेकार भूमि 15.0 से अधिक है यह प्रतिशत बस्तर जिले के जगदलपुर (10.8), लौहडीगुडा (12.2) तथा दरभा (12.0) एवं दंतेवाडा जिला के दंतेवाडा (13.1) और कोण्टा (14.0), छिन्दगढ (10.7), उसूर (10.3), और कुंआकोडा में (10.2) विकासखण्डों में कृषि योग्य बेकार भूमि 10.0 से अधिक है इसके विपरीत कांकेर जिले में कोयलीबेडा और अंतागढ विकासखण्ड को छोड़ शेष 5 विकासखण्ड में चारामा (2.1), कांकेर (2.2), सरोना (2.0), भानुप्रतापपुर (1.5), दुर्गकोण्डल (4.4) तथा बस्तर जिले के केशकाल (1.2), बड़ेराजपुर (1.8), कोण्डागांव (2.4), माकड़ी (4.1) और बस्तर (4.6) विकासखण्ड़ों में कृषि योग्य बेकार भूमि 5.0 से कम है

 

परती भूमि ;थ्ंससवू स्ंदकद्ध

वह भूमि है जिस पर पहले कृषि की जाती थी लेकिन अब कृषि नही की जा रही है इस भूमि पर यदि लगातार कृषि की जाती है तो इसकी उपजाऊ कम हो जाती है अतः भूमि को खाली छोड़ दिया जाता है ताकि वह नमी ग्रहण कर सके परती भूमि के दो प्रकार है () चालु परती () पुरानी परती चालु परती को सामान्यतः फसल चक्र में केवल एक वर्ष के लिए परती छोडी जाती है जबकि पुरानी परती में दो से पाॅंच वर्षो तक खेती नही की जाती परती भूमि के क्षेत्र को सीमित करने के लिए सिंचाई सुविधाओं में विस्तार, उर्वरकों तथा खादों का उपयोग, फसल चक्र में वैज्ञानिक प्रणाली को अपनाना आवश्यक है 2004-07 के भूमि उपयोग के आंकड़ों के औसत के अनुसार बस्तर प्रक्षेत्र में परती भूमि का प्रतिशत 7.9 है किन्तु यह प्रतिशत कांकेर जिले के सभी सातों विकासखण्डों में 20.0 से अधिक है परती भूमि का प्रतिशत दुर्गकोण्डल (21.86), चारामा (21.7), कांकेर (21.5), अंतागढ़ (20.4), सरोना (20.6) और कोयलीबेडा (19.2) विकासखण्डों में 19.0 से अधिक है उल्लेखनीय है कि दंतेवाडा जिला में कुंआकोड़ा विकासखण्ड को छोड़ छह विकासखण्डों में परती भूमि का प्रतिशत 5.0 से कम और चार विकासखण्डों में 5.0 से 10.0 है  परती भूमि का प्रतिशत उसूर में 2.0, कोण्टा में 1.8, भैरमगढ़ में 1.7, भोपालपटनम में 2.2  तथा बीजापुर में 3.3  है बस्तर जिले के केवल नारायणपुर (8.2) में परती भूमि का प्रतिशत अधिक है इसके विपरीत बडेराजपुर एवं माकडी  (1.7), फरसगांव (2.0), कोण्डागांव (2.1) और बस्तर (2.9) विकासखण्डों में परती भूमि का प्रतिशत 3.2 से कम है

 

निरा फसली क्षेत्र ;छमज ैवूद ंतमंद्ध

फसलों तथा बागों के क्षेत्र का योग निराफसली क्षेत्र कहलाता है इस क्षेत्र में वर्ष में केवल एक ही फसल ली जाती है बस्तर प्रक्षेत्र में उपजाऊ कांप मिट्टी वाले इंद्रावती नदी बेसिन, कोटरी एवं महानदी के मैदानी क्षेत्र में निराफसली क्षेत्र सकेन्द्रित है इंद्रावती नदी के मैदानी क्षेत्र में नदी द्वारा अपरदन न्यूनतम होने के कारण बस्तानार विकासखण्ड में निरा बोया गया क्षेत्र सर्वाधिक है इसके विपरीत उसूर, भोपालपट्टनम एवं कोयलीबेड़ा क्षेत्र में भू-भाग वनों से तथा पहाड़ी भागों से घिरे होने के कारण निराफसली क्षेत्र कम है अतः निराफसली क्षेत्र का प्रतिशत भूमि की उर्वरता एवं उत्पादन क्षमता का सूचक है बस्तर प्रक्षेत्र में पृष्ठ के कुल क्षेत्रफल का 33.2 कृषि के अंर्तगत है लेकिन सभी विकासखण्डों में यह प्रतिशत भिन्न-भिन्न है निरा फसली क्षेत्र का प्रतिशत बस्तर प्रक्षेत्र में बस्तानार विकासखण्ड में 53.3 है इसी तरह तोकापाल विकासखण्ड (50.9) में यह प्रतिशत 50.0 से अधिक है कांकेर जिले के कांकेर (49.2) और चारामा (48.0) और बस्तर जिले के बकाबंद (48.6) और दरभा (47.2) एवं नारायणपुर (40.1), दंतेवाड़ा जिला के दंतेवाड़ा (49.0), छिन्दगढ़ (47.7) एवं कुंआकोण्डा (47.3) विकासखण्ड़ों में कृषि भूमि 45 से अधिक है बस्तर प्रक्षेत्र में निरा फसली क्षेत्र सबसे कम भोपालपटट्नम में 10.8 है इसी तरह भैरमगढ़ (16.3) और उसूर (12.5) विकासखण्ड में निरा फसली क्षेत्र 20.0 से कम है कोण्टा (24.8) एवं बीजापुर (27.1) विकासखण्डों में निरा फसली क्षेत्र 30 से कम है उल्लेखनीय है कि कांकेर जिले में कोयलीबेडा (27.8) विकासखण्ड को छोड़ शेष छह विकासखण्डों में निरा फसली क्षेत्र 38 से अधिक है इसी तरह बस्तर जिले में केशकाल (33.7) और कोण्डागांव (32.3) विकासखण्डों को छोड़कर शेष 13 विकासखण्डों में निरा फसली क्षेत्र 35 से अधिक है

 

 

ज्ंइसम 2रू ठंेजंत त्महपवदए ठसवबाूपेम स्ंदकनेम च्ंजजमतद ;2004.07द्ध

ठसवबा     थ्वतमेज   स्ंदक दवज अंपसंइसम वित बनसजपअंजपवद         न्दबनसजपअंजमक संदक मगबसनकपदह मिससवूे               ब्नसजनतंइसम ूंेजमे         थ्ंससवू संदक           छमज ैवूद  ।तमं

ब्ींतंउं   7ण्7        11ण्6      8ण्8        2ण्1        21ण्7      48

ज्ञंदामत    4ण्9        13ण्6      8ण्5        2ण्2        21ण्5      49ण्2

ैंतवदं    12           11ण्3      10ण्5      2             20ण्6      43ण्6

ठींदनचतंजंचचनत   13ण्5      10ण्9      13ण्8      1ण्5        19ण्9      40ण्4

क्नतह ज्ञवदकंस       12ण्5      8ण्4        14ण्3      4ण्4        21ण्8      38ण्6

ज्ञवपसमइमकं         32           7ण्8        5ण्2        8             19ण्2      27ण्8

।दजंहंती   23           5ण्6        2ण्1        8ण्8        20ण्4      40ण्1

ज्ञंदामत कपेजतपबज              17ण्7      9ण्5        8ण्6        4ण्7        20ण्5      39

ज्ञमेीांस               48ण्7      9ण्8        4ण्8        1ण्2        1ण्8        33ण्7

ठंकमतंरचनत          46ण्8      2ण्4        3ण्6        1ण्8        1ण्7        43ण्7

छंतंलंदचनत            24ण्8      6ण्6        4ण्8        9ण्5        8ण्2        46ण्1

व्तबीं ;।इीनरउंतद्ध  छ।           .              .              .              .              .

ज्ञवदकंहंवद             47ण्5      10ण्7      4ण्7        2ण्7        2ण्1        32ण्3

थ्ंतंेहंवद 48           3ण्4        3ण्1        5             2             38ण्5

डंाकप     49ण्6      3ण्2        3ण्3        4ण्1        1ण्7        38ण्1

श्रंहकंसचनत            23ण्7      11ण्2      5ण्8        10ण्8      6ण्9        41ण्6

ठंेजंत     34ण्4      6ण्9        9ण्6        4ण्6        2ण्9        41ण्6

ठंांइंदक               22ण्8      5ण्8        6ण्7        10ण्8      5ण्3        48ण्6

स्वीदकपहनकं          16ण्9      19ण्9      5ण्8        12ण्2      4ण्3        40ण्9

ज्वांचंस    5ण्4        12ण्4      5ण्2        20ण्6      5ण्5        50ण्9

ठंेजंदंत   7             20ण्3      6ण्4        6ण्4        6ण्6        53ण्3

क्ंतइीं       20           8ण्8        5ण्6        12           6ण्4        47ण्2

ठंेजंत कपेजतपबज 33           9ण्2        5ण्4        6ण्9        4             41ण्5

ठपरंचनत 54ण्4      2ण्9        2ण्8        9ण्5        3ण्3        27ण्1

ठींपतंउहंती              64ण्6      6             2ण्1        8ण्3        2ण्7        16ण्3

क्ंदजमूंकं 9ण्1        17ण्9      1ण्2        13ण्1      9ण्7        49

ळममकंउ 22ण्7      10ण्6      1ण्6        17ण्9      6ण्4        40ण्8

ज्ञनंदावदकं              13ण्8      16ण्2      0ण्8        10ण्2      11ण्7      47ण्3

ज्ञंामांसलंद            11ण्8      26ण्6      0ण्7        6ण्2        9ण्9        44ण्8

ठीवचंसचंजदंउ         72ण्9      6ण्9        1ण्1        5ण्4        2ण्9        10ण्8

न्ेववत   72ण्4      2ण्2        0ण्6        10ण्3      2             12ण्5

ज्ञवदजं     43ण्3      6ण्3        9ण्8        14           1ण्8        24ण्8

ैनाउं       29ण्4      7ण्9        4ण्4        15ण्5      3ण्7        39ण्1

ब्ीपदकहंती            23ण्4      7ण्1        4ण्9        10ण्7      6ण्1        47ण्7

क्ंदजमूंकं कपेजतपबज            45ण्8      7ण्1        3ण्5        11ण्2      4ण्4        28

ठंेजंत त्महपवद      35           8ण्4        5ण्3        8ण्2        7ण्9        35ण्2

 

 

सारांश में बस्तर प्रक्षेत्र के उत्तरी एवं पूर्वी भाग में कोटरी-महानदी मैदानी क्षेत्र तथा उत्तरी-पूर्वी पठार के अंतर्गत इंद्रावती का मैदानी क्षेत्र तथा दक्षिणी पठार के अंतर्गत दंतेवाड़ा मैदानी क्षेत्र में निरा फसली क्षेत्र 40 से अधिक है इसके विपरीत प्रक्षेत्र के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग जिसमें उसूर पहाड़ी तथा गोपापल्ली पहाड़ी शामिल है, निरा फसली क्षेत्र 30 से भी कम है

 

भूमि उपयोग में परिवर्तन (1984-87 से 2004-07)

बस्तर प्रक्षेत्र में 1984-87 से 2004-07 के मध्य 20 वर्षो में ग्रामीण वनों के क्षेत्र में 4.7 की कमी हुई है 1984-87 में बस्तर प्रक्षेत्र में ग्रामीण वनों का प्रतिशत 39.7 जो 2004-07 में घटकर 35.0 हो गया है इसी तरह कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि के प्रतिशत में भी 0.3 की कमी हुई है कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि 1984-87 में 8.7 था जो 2004-07 में घटकर 8.4 है बस्तर प्रक्षेत्र में परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि के प्रतिशत में 0.5 की कमी हुई तथा कृषि योग्य बेकार भूमि के प्रतिशत में 1.0 एवं परती भूमि के प्रतिशत में 4.0 की वृद्धि हुई है इसी तरह निरा फसली क्षेत्र में भी वृद्धि हुई है यद्यपि यह प्रतिशत कम (0.5) है निरा फसली क्षेत्र 1984-87 में 34.7 था जो

 

2004-07 में बढ़कर 35.2 है इन 20 वर्षो में परती भूमि के प्रतिशत में अधिक वृद्धि हुई है 1984-87 में यह  3.9 से बढ़कर यह 2004-07 में 7.9 हो गया है इसी तरह कृषि योग्य बेकार भूमि 1984-87 में 7.2 था जो 2004-07 में बढ़कर 8.2 हो गया परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि 1984-87 में 7.2 था जो 2004-07 में घटकर 5.3 हो गया

 

ज्ंइसम 3रू ठंेजंत त्महपवदए ब्ींदहमे प्द स्ंदक न्ेमण्

स्ंदक न्ेम              1984.87  2004.07  ब्ींदहम

थ्वतमेज   39ण्07    35           .4ण्7

स्ंदक दवज ंअंपसंइसम वित बनसजपअंजपवद      8ण्7        8ण्4        .0ण्3

व्जीमत नदबनसजपअंजमक संदक मगबसनकपदह थ्ंससवूे   3ण्5        5ण्3        1ण्8

ब्नसजनतंइसम ूंेजम संदक               5ण्2        8ण्2        3

थ्मससवू संदक         3ण्9        7ण्9        4

छमज ेवूद ंतमं     34ण्7      35ण्2      0ण्5

 

 

 

 

ग्रामीण वनों में परिवर्तन

बस्तर प्रक्षेत्र में 1984-87 से 2004-07 के मध्य 20 वर्षो में ग्रामीण वनों के प्रतिशत में 4.7 की कमी हुई है किन्तु दंतेवाड़ा जिला के उसूर (3.2), कोआकोण्डा (1.0) एवं कटेकल्याण (0.8) तीन विकासखण्डों में ग्रामीण वनों के क्षेत्र में वृद्धि हुई है शेष 29 विकासखण्डों में ग्रामीण वनों के प्रतिशत में कमी हुई है उल्लेखनीय है कि कोयलीबेडा विकासखण्ड में 35.2 और नारायणपुर में 20.1 वनों के प्रतिशत में कमी आयी है एवं अंतागढ़ विकासखण्ड में 19.7 कमी हुई है इसी तरह बस्तर विकासखण्ड में 8.6,   दुर्गकोण्डल में 7.9, और सरोना में 5.1 और कोण्टा में 4.7, जगदलपुर और बकाबंद में 3.7, उसूर में 3.2 और चारामा में 2.8, वनों के प्रतिशम में कमी हुई है

 

कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि

बस्तर प्रक्षेत्र में 1984-87 से 2004-07 में कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि के प्रतिशत में 0.3 कमी हुई यह प्रतिशत 1984-87 में 8.7 था जो 2004-07 में घटकर 8.4 हो गया उल्लेखनीय है कि कृषि के लिए उपलब्ध भूमि कांकेर जिले के कांकेर विकासखण्ड (-10.3) में सबसे अधिक कमी हुई 1984-87 में मध्य कांकेर विकासखण्ड में कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि 23.9 था जो 2004-07 में घटकर 13.6 हो गया इसी तरह दुर्गकोण्डल (-8.4), सरोना (-6.3) और भानुप्रतापपुर (-5.9) विकासखण्ड में कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि के प्रतिशत में 5 की कमी हुई उल्लेखनीय है कि बस्तर जिला में लौहण्डीगुड़ा (-2.0) विकासखण्ड को छोड़कर शेष 13 विकासखण्डों में कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि के प्रतिशत में वृद्धि हुई है दंतेवाड़ा जिला के उसूर (-3.7) विकासखण्ड में कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि के प्रतिशत में कमी हुई जबकि भोपालपटट्नम (2.3), दंतेवाड़ा  (1.6) एवं गीदम (1.3) विकासखण्डों में कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि के प्रतिशत में वृद्धि हुई है

 

परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि में परिवर्तन

सरगुजा प्रक्षेत्र में परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि के प्रतिशत में 0.5 की कमी हुई किन्तु कांकेर जिले के दुर्गकोण्डल (11.3) और भानुप्रतापपुर (10.3) विकासखण्डों में परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि के प्रतिशत में 10.0 से अधिक वृद्धि हुई बस्तर जिले के जगदलपुर विकासखण्ड (-2.5) को छोड़ शेष 13 विकासखण्डों में अकृषि भूमि में वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है बस्तर विकासखण्ड में अन्य अकृषि भूमि के प्रतिशत में 6.7 की वृद्धि हुई उल्लेखनीय है कि बस्तर जिले में छिन्दगढ़ (1.1), सुकमा (0.5) और बीजापुर (0.3) विकासखण्ड को छोड़ शेष 8 विकासखण्ड़ो में अकृषि भूमि के प्रतिशत में कमी हुई है इनमें से कोण्टा विकासखण्ड में 6.4 और भानुप्रतापपुर विकासखण्ड में 5.2 प्रतिशत की कमी हुई है

 

कृषि योग्य भूमि

सम्पूर्ण बस्तर प्रक्षेत्र में 1984-87 से 2004-07 की अवधि में कृषि योग्य बेकार भूमि के प्रतिशत में 1.0 की वृद्धि हुई है बस्तर प्रक्षेत्र में बस्तर जिले के तोकापाल विकासखण्ड (17.1) में कृषि योग्य बेकार भूमि के प्रतिशत में सर्वाधिक वृद्धि हुई है   इसी तरह दंतेवाड़ा जिले के गीदम (13.9), सुकमा (12.1) और कोण्टा (11.1) विकासखण्ड़ों कृषि में योग्य बेकार भूमि के प्रतिशत में 10 से अधिक वृद्धि हुई किन्तु कटेकल्याण विकासखण्ड में (.19.8) सर्वाधिक कमी हुई है दंतेवाड़ा जिला में कटेकल्याण और कोण्डागांव (-5.0) में को छोड़ और कांकेर जिले में लौहण्डीगुड़ा (4.5) एवं बस्तानार (-8.1) विकासखण्ड को छोड़ शेष विकासखण्डों में कृषि योग्य बेकार भूमि में वृद्धि हुई है किन्तु इनमें से बस्तर जिले के बकाबंद (10.7) में कृषि योग्य बेकार भूमि के प्रतिशत में 10.0 से अधिक की वृद्धि हुई है इसके विपरीत कांकेर जिले में कोयलीबेड़ा (7.4) विकासखण्ड को छोड़ शेष विकासखण्ड में कृषि योग्य बेकार भूमि के प्रतिशत में कमी हुई है इनमें से कांकेर (-16.2) और भानुप्रतापपुर (-11.7) विकासखण्ड में कृषि योग्य बेकार भूमि के प्रतिशत में 10.0 से अधिक की वृद्धि हुई

 

परती भूमि

1984-87 से 2004-07 के मध्य 20 वर्षो में बस्तर प्रक्षेत्र मे ंपरती भूमि के प्रतिशत में 4 की वृद्धि हुई है कांकेर जिले के सभी तहसीलों में परती भूमि के प्रतिशत में 14.0 से अधिक की वृद्धि हुई कोयलीबेडा (16.8), कांकेर एवं सरोना (16.1), चारामा (16.0), अंतागढ़ (15.8), भानुप्रतापपुर (14.1) और दुर्गकोण्डल (14.0) विकासखण्डों में परती भूमि के प्रतिशत में 14.0 से अधिक वृद्धि हुई उल्लेखनीय है कि कांकेर जिले में केशकाल, विश्रामपुर, कोण्डागांव, फरसाबहार एवं दंतेवाडा जिला के उसूर, कोण्टा, सुकमा और छिन्दगढ विकासखण्डों में परती भूमि के प्रतिशम में कमी इन दोनों जिलों के शेष विकाखझडों में परती भूमि के प्रतिशत में वृद्धि हुई है

 

 

निरा फसली क्षेत्र

बस्तर प्रक्षेत्र में 20 वर्षो की अवधि में निरा फसली क्षेत्र के प्रतिशत में मात्र 0.5 की वृद्धि हुई  बस्तर प्रक्षेत्र में बस्तर जिले के अंर्तगत नरायणपुर विकासखण्ड (15.5), में निरा फसली क्षेत्र के प्रतिशत में सर्वाधिक वृद्धि हुई इस जिले के जगदलपुर (.14.7), बकाबंद (.1.9), तोकापाल (.2.3), बस्तानार (.3.3), और दरभा (.0.6) इन छह विकासखण्ड को छोड़ शेष 8 विकासखण्ड़ो में निरा फसली क्षेत्र के प्रतिशत में वृद्धि हुई है दंतेवाड़ा जिला के केवल बीजापुर (0.9) और उसूर (2.2) विकासखण्ड में निरा फसली क्षेत्र के प्रतिशत में वृद्धि हुई है शेष सभी विकासखण्डों में निरा फसली क्षेत्र में कमी हुई है इनमें से कटेकल्याण (.5.5), सुकमा (.4.0), गीदम (.2.9), और छिन्दगढ़ (.2.0) के विकासखण्डों में कृषि योग्य बेकार भूमि के प्रतिशत में 2 से अधिक की वृद्धि हुई इसी तरह कांकेर जिले के कोयलीबेडा और अंतागढ़ विकासखण्ड को छोड शेष विकासखण्ड में कृषि भूमि में कमी हुई है कृषि योग्य भूमि में वृद्धि कोयलीबेडा में (9.1), अंतागढ़ में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई बस्तर प्रक्षेत्र में निरा फसली क्षेत्र के प्रतिशत में सर्वाधिक कमी कांकेर जिले के चारामा विकासखण्ड (.6.4) विकासखझड मे हुई है

 

 

ज्ंइसम 4 ब्ींदहमे पद ब्तवचचपदह चंजजमतदे

ब्तवच      1984.87  2004.07  ब्ींदहमे

ज्ञींतप ि  95ण्3      97ण्5      2ण्2

त्ंइप        4ण्7        2ण्5        .2ण्2

क्वनइसम ब्तवच     3ण्8        3ण्4        .0ण्4

प्ततपहंजमक ब्तवच               2ण्1        3ण्5        1ण्4

थ्ववक बतवच          94ण्5      96ण्6      2ण्1

च्ंककल    63ण्7      72ण्4      8ण्7

डपससमजे               21ण्9      15ण्6      .6ण्2

च्नसेमे     6ण्2        6ण्4        0ण्2

ळतंउ       0ण्31      0ण्2        .0ण्11

ज्मवतं     0ण्3        0ण्2        .10

न्तंक        1ण्3        2ण्2        1ण्07

व्पस ेममक            4ण्2        3ण्3        .1ण्6

ज्पस        0ण्19      0ण्4        0ण्21

स्पदेममक               0ण्52      0ण्07      .0ण्45

डनेजनतमक            1ण्81      0ण्7        .1ण्11

 

 

फसल प्रतिरुप में परिवर्तन

बस्तर प्रक्षेत्र में 2004-07 में कुल फसली क्षेत्र का 96.6 क्षेत्र खाद्यान्न फसलों के अंतर्गत है इस प्रतिशत में से 88.8 प्रतिशत अनाज के अंतर्गत है उल्लेखनीय है कि बस्तर प्रक्षेत्र में कुल फसली क्षेत्र का 72.4 क्षेत्र केवल धान के अंतर्गत है बस्तर प्रक्षेत्र में अनाजों में मक्का (3.0) का द्वितीय स्थान है इस प्रक्षेत्र में गेंहू का प्रतिशत 0.3 , ज्वार 0.5 है बस्तर प्रक्षेत्र में अन्य अनाजों का प्रतिशत 12.3 है जो कि महत्वपूर्ण है यह मोटे अनाजों के अंतर्गत है बस्तर प्रक्षेत्र में कुल फसली क्षेत्र का 6.5 दालों के अंतर्गत है बस्तर प्रक्षेत्र में कुल फसली क्षेत्र में तिलहन का प्रतिशत 3.4 है तिलहनों में महत्वपूर्ण सरसो 0.7 है ं। बस्तर प्रक्षेत्र में शीशमम 0.4 महत्वपूर्ण है   1984-87 से 2004-07 के मध्य 20 वर्षो में खाद्यान्य फसलों में धान 8.7, और दालों में 0.2 वृद्धि हुई है किन्तु मोटे अनाजों के प्रतिशत (-6.2) में महत्वपूर्ण कमी हुई है दालों में उडद के अंतर्गत ़़1.1 की वृद्धि हुई है किन्तु चना (-0.11) और तुअर (-0.1) के प्रतिशत में कमी हुई है खाद्यान्य फसलों के विपरीत तिलहनों के प्रतिशत (1.6) में कमी हुई इनमें से सरसों में (1.1) और अलसी में (0.5) की कमी हुई इसके विपरीत तिल के प्रतिशत (0.2) में वृद्धि हुई

 

बस्तर प्रक्षेत्र में खरीफ फसलों (2.2) में वृद्धि हुई और रबी फसलों (-2.2) में कमी हुई यही कारण है कि बस्तर प्रक्षेत्र में द्विफसली क्षेत्र (0.4) में प्रतिशत की कमी हुई यद्यपि प्रक्षेत्र में सिंचित फसलों में केवल 1.4 वृद्धि हुई जो कि खरीफ फसलों के अंतर्गत है

निष्कर्ष

बस्तर प्रक्षेत्र में मात्र एक-तिहाई प्रतिशत क्षेत्र निराफसली क्षेत्र है क्योंकि एक-तिहाई क्षेत्र वनों के अंतर्गत है बस्तर प्रक्षेत्र के अंतर्गत बस्तर और दंतेवाड़ा जिला में ग्रामीण वनों का प्रतिशत अधिक है इसके विपरीत कांकेर जिले में ग्रामीण वन कम है कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि दंतेवाड़ा विकासखण्ड में सर्वाधिक पाया गया है परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि कांकेर जिले में अपेक्षाकृत अधिक है इसका कारण कांकेर जिले में नगरीय विकास का अधिक होना है जबकि बस्तर और दंतेवाड़ा जिले में अकृषि भूमि कम होने का कारण नगरीकरण की प्रक्रिया का मन्द होना है कृषि योग्य बेकार भूमि बस्तर जिले के तोकापाल विकासखण्ड में सर्वाधिक पाया गया इसी तरह कृषि योग्य बेकार भूमि दंतेवाड़ा जिले में अधिक होने का मुख्य कारण इस क्षेत्र का सघन वनों से आच्छादित, विषम धरातल एवं पहाड़ी क्षेत्र होना है अतः इन क्षेत्रों में कृषि भूमि एवं परती भूमि कम और कृषि योग्य बेकार भूमि अधिक है परती भूमि कांकेर जिले में अधिक पाया गया इसका कारण यह क्षेत्र अपेक्षाकृत समतल धरातल का क्षेत्र है कृषि भूमि का विस्तार भी अधिक है किन्तु भूमि अधिक उपजाऊ नहीं होने के कारण कृषि भूमि को परती के रुप में छोड़ दिया जाता है निराफसली क्षेत्र परती भूमि के समान कांकेर जिले में अधिक है जबकि दंतेवाड़ा और बस्तर जिले में निराफसली क्षेत्र कम है

               उल्लेखनीय है कि कांकेर, बस्तर और दंतेवाड़ा तीनों जिलों के सभी विकासखण्डों में ग्रामीण वनों के प्रतिशत में कमी आयी है परती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि में कांकेर और बस्तर जिले में वृद्धि हुई है जो यहाॅं नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की ओर इंगित करता है दंतेवाड़ा जिला में कृषि भूमि में कमी हुई है जबकि कृषि योग्य बेकार भूमि और परती भूमि में वृद्धि हुई है लेकिन कांकेर जिले में कृषि भूमि और कृषि योग्य बेकार भूमि में कमी तथा परती भूमि में वृद्धि है

REFRENCES:

1.      Agarwal, P. C. (1968):Human Geography of Bastar District,Garga Brothers, Allahabad.

2.      Agricultural Statistics:Agricultural Statistics of Kanker, Bastar and Dantewara Districts,  2004-05, 2005-06, 2006-07.

3.      Dhurandhar, K. P.(1956):Agricultural and Industrial Geography of Area around kondagaon, Narayanpur and Jagdalpur. (Bastar District)

4.      Gazetteer of India:Gazetteer of India, Bastar District: Government of India.

5.      Stamp, L.D. (1958): “The Measurement of Land Resources, Geographical Review, Vol. 48 Newyork.

 

Received on 19.09.2011

Revised on   24.09.2011

Accepted on 20.10.2011                                               

© A&V Publication all right reserved

Research J.  Humanities and Social Sciences. 3(1): Jan- March, 2012, 23-29