कृषि एवं ग्रामीण विकास
(भारत में पंचवर्शीय योजना के संदर्भ में)
डाॅं बी. एल सोनेकर1 , डाॅं भूमिराज पटेल2
1सहायक प्राध्यापक अर्थशास्त्र पं. रवि. शुक्ल वि., रायपुर
2शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय , मानपुर
प्रस्तावना -
मूलतः ग्रामीण शब्द एक व्यापक शब्द है। आजादी के बाद से ही सरकार के समक्ष ग्रामीण क्षेत्रों का विकास एक महत्वपूर्ण चुनौती रहा है। आज भी भारत की करीब 70 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गाॅवों में निवास करती है। जहां शिक्षा,स्वास्थ्य,स्वच्छता, बिजली, पानी का अभाव देखा जाता है वहीं गरीबी एवं बेरोजगारी की अधिकता देखने को मिलती है। यह सच है कि छः दशक बाद भारत के गाॅवों की तस्वीर काफी हद तक बदली है जिसमे पंचवर्षीय योजना का महत्वपूर्ण भूमिका रहा है अभितक ग्यारह पंचवर्षीय योजना पूर्ण हो चुकी है और बारहवीं पंचवर्षीय योजना अस्तिस्त्व में है जिसमे ग्रामीण विकास की व्यापक रुपरेखा खिंची गई है। विशेष कर ग्रामीण विकास के अन्र्तगत कृ़षि, शिक्षा, स्वास्थ, बिजली, सड़क, पानी, सिंचाई, उर्जा, रोजगार, गरीबों का विकास प्रमुखता से आता है किन्तु यह भी सच है भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृ़षि पर आधारित अर्थव्यवस्था है अतः सरकार को विभिन्न पंचवर्षीय योजना के माध्यम से कृ़षि से संबंधित लघु एवं कुटीर उघोगांे को बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि लोगांे को रोजगाार उपलब्ध हो सके।
ग्रामीण विकास में कृषि का महत्व -
कृषि को राज्य का सबसे बड़ा रोजगार दिलाने वाला नियोक्ता कहा जा सकता है जिसकी सकल घरेलू उत्पाद ;ळक्च्द्ध में हिस्सेदारी 4 प्रतिशत है जो देश में समावेशी विकास का एक सशक्त माध्यम है। किन्तु दूर्भाग्य कहा जा सकता है ग्यारहवी पंचवर्षी योजना में कृषि के वर्ग में 4 प्रतिशत विकास का लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका। लेकिन इसे बारवी योजना के दौरान प्राप्त करना बहुत जरूरी है क्यांेकि ऐसा करना समावेशी विकास के लिए महत्वपूर्ण होगा इसके लिए आधुनिक कृषि तकनीको के साथ -साथ इसके लिए कई मोर्चाें पर काम करना होगा। कृषि के लिए महत्वपूर्ण है सिचाई के लिए पानी, इसके प्रबंधन में पानी के इस्तेमाल के समय और गुणवक्ता में सुधार लाना होगा साथ ही उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल करना होगा। इसके अलावा मिट्टी के परीक्षण और मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ाने के उपायों पर भी ध्यान देना होगा ताकि लाखों ग्रामीण गरीब कृषकों के लिए आय और रोजगार के अवसर का सृजन हो सके। कृषि विकास करना समावेशी विकास नीति एक प्रमुख घटक है तथा इस संबंध मंे कुछ प्रगति हुई है।
कृषि एक राज्य विषय है इसलिए केन्द्र को नीतियों और कार्यनीतियांे में तालमेल लाने के लिए राज्यों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर कार्य करना होगा। कृषि में समग्र रूप से निवेश जो वर्ष 2002-03 में कम होकर कृषि में जीडीपी की का 10 प्रतिशत से भी कम हो गया था, इसमें पर्याप्त रूप से की गई है और आजकल यह निवेश कृषि में जीडीपी का से भी अधिक है।
कृषि में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र में निवेश के ऊंचे स्तर के बेहतर परिणाम हो सके है जरूरत है तो किसानों के लिए प्रोत्साहन प्रणाली की चुस्त बनानेकी साथ की संस्थागत फ्रेम एंजेसिया कार्य करती है। कृषि के विकास में तेजी लाने किी जरूरत है। इस क्षेत्र में लक्ष्य से कम वृद्धि के कारण पिछले दो वर्षाें में खाद्य की कीमतों ने वृद्धि हुई है। विश्व विकास अनुभव से विशेष रूप से उभरती हुई अर्थव्यवस्था दक्षिण एशियाई देशों से संबंधित है। जिसे ठत्प्ब् नाम दिया गया है जैसे (ब्राजील, रसीया, इण्डिया, चाड़ता इन देशों से यह पता चारना है कि यदि कृषि में एक प्रतिशत की गरीबी को कम करने में, गैर-कृषि क्षेत्र में होने वाली इतनी ही की तुलना कम से कम दो से तीन गुना अधिक प्रभावशाली होता है) (इसका कारण यह है कि इन देशों में जो विकास हुआ है पर प्दकनेजतपंस ैमबजवत और ैमतअपबम ैमबजवत अधिक हुआ है न कि ।हतपबनसजनतम ैमबजवत से)।
विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि की स्थिति:
प्रथम योजना काल में हेक्टेयर भूमि को कृषि योग्य बनाया गया। साथ ही प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने की दृष्टि से चांवल की खेती के लिए जापानी कृषि पद्धति को अपनाया गया। योजना के अन्तिम वर्ष में लगभग 8 हेक्टेयर भूमि पर जापानी ढंग से खेती की गई। योजना के प्रारंभ में भारतीय अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त थी क्योंकि इस समय देश का विभाजन के साथ-साथ महायुद्ध का सामना करना पड़ा था। योजना के अन्तर्गत कृषि को प्राथमिकता दी गई यही कारण है कि कुल विनियोग में 1960 करोड़ रूपये के थे। जहां से 60 करोड़ रूपये के विनियोग कृषि क्षेत्र में लिया गया था। जो कुल विनियोग का 31 प्रतिशत था।
द्वितीय योजना में कृषि की अपेक्षा आधारभूत उद्योगों की अधिक महत्व दिया गया क्योंकि योजना आयेाग का मत था प्रथम योजना में कृषि को काफी विकसित किया गया था इसलिए प्राथमिकता को बदल दिया गया लेकिन द्वितीय योजना के प्रथम योजना की तुलना में कृषि पर कुल परिव्यय अधिक था। द्वितीय योजना के कुल व्यय 46000 करोड़ रूपये था जिसमें 950 करोड़ रूपये कृषि पर व्यय किये थे जो कुल व्यय का 20 प्रतिशत था।
योजना आयेाग के अनुसार तृतीय योजना में अनुभव किया कि दो योजनाओं में (विशेषकर द्वितीय योजना में ) नीची कृषि का विकास दर देश के आर्थिक विकास में बाधक रही, अतः तृतीय योजना में कृषि को पुनः प्राथमिकता दी गई।
चतुर्थ योजना में प्रमुख दो उद्देश्य थे - प्रथम अगले 10 वर्षों में 5 प्रतिशत उत्पादन को बढ़ाना दूसरा ग्रामीण जनसंख्या को अधिक से अधिक भाग को विकास कार्यों में लगाना, उसे लाभान्वित करना। इस प्रकार उत्पादन के साथ-साथ सामाजिक न्याय दिलाना।
पंाचवी योजना में कृषि का प्रतिशत अब तक की सभी योजनाओं में सर्वाधिक था कुल व्यय का 8528 करोड़ रूपये व्यय किया गया जो कुल व्यय का 20.5 प्रतिशत था। इस योजना का मुख्य उद्देश्य अनुसन्धान को बढ़ाना एव वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन में वृद्धि जल प्रबंधन करना था।
छठवीं योजना में भूमि सुधार कार्यक्रमों को तीव्र गति से लागू करना, नवीन तकनीक का लाभ अधिकम किसानों तक पहुॅंचाना तथा कृषि विज्ञान को ग्रामीण क्षेत्रों में आय तथा रोजगार में वृद्धि का साधन बनाना।
सातवीं योजना में कृषि विकास में तीव्र गति लाना साथ ही कृषि विकास के कार्यक्रमों को गाॅंवों में गरीब निवारण कार्यक्रमों के साथ जोड़ना, कम विकसित क्षेत्रों पर अधिक बल देना, चकबंदी लाना, सिंचार्द का तेजी से विस्तार करना।
आठवीं योजना की कृषि विकास रणनीति का उद्देश्य खाद्यान्नों में केवल आत्मनिर्भरता ही नहीं करना बल्कि निर्यात के लिए भी उत्पादन के वृद्धि करना था यही कारण है कि सिंचाई, भूमि सुधार जैसे कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी गई।
नवमीं योेजना में कृषि विकास को प्राथमिकता दी गई साथ ही कृषि सुधार के विभिन्न आयामों की ओर ध्यान दिया गया जैसे भूमि सुधार, कृषि शोध, नई तकनीक, कृषि साख एवं विनियोग, कृषि विपणन एवं कृषि मूल्य में विशेष ध्यान दिया गया ताकि उत्पादन को बढ़ाया जा सके।
दसवीं योजना में कृषि विकास पर पुनः बल दिया गया जिसमें 58933 करोड़ रूपये व्यय किया गया।
ग्यारहवीं योजना में कृषि क्षेत्र को विकसित करने के लिए उच्च प्राथमिकता दी गई यही कारण है कि कृषि की विकास दर का लक्ष्य 4 प्रतिशत रखा गया यह अलग बात है कि इस दर को प्राप्त नहीं किया जा सका।
बारहवीं योजना में समावेशी विकास के साथ कृषि का विकास करना है।
सुझाव -
1. कृषि मंे सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्र में निवेश करने की है।
2. किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन एजेंसीया बनाना चाहिए।
3. सिंचाई के विस्तार में वृद्धि करने की जरूरत है।
4. नई तकनीकों का प्रयोग करना होगा।
5. उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल करना होगा।
6. केन्द्र और राज्य सरकार दोनों को मिलकर काम करना होगा।
7. बाजार की सुविधाये होनी चाहिए।
8. किसानों को सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध होनी चाहिए।
9. चकबंदी खेती को अपनाने की जरूरत है।
10. कृषि से सबंधित, बिजली,पानी एवं खाद्य तकनीकीयों पर लम्बी अवधि के लिए सब्सिडी देना चाहिए।
उपरोक्त चुनौती रूपी सुझाव को यदि सरकार इमानदारी से पूरा करता है तो निश्चित ही न केवल न्छक्च् का सपना पूरा होगा बल्कि बारहवी की पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य समावेशी विकास के रूप में कृषि क्षेत्र में देखा है वह की पूरा होगा जरूरत है वो निम्न चुनौतियों को इमानदारी के साथ स्वीकार करने की और यदि एसा हम नही कर पाये तो शायद 13 पंचवर्षीय योजना में की नहीं हमारा उद्देश्य होगा।
सन्दर्भ गं्रथ
1. छत्तीसगढ़ आर्थिक सर्वेक्षण 2011-12
2. आर्थिक सर्वेक्षण 2011-12 वित्त मंत्रालय भारत सरकार
3. सुंदरम् एवं रूद्र दत्त, भारतीय अर्थव्यवस्था 2012.
Received on 01.02.2013
Modified on 20.02.2013
Accepted on 25.02.2013
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Research J. Humanities and Social Sciences. 4(1): January-March, 2013, 98-100