विशेष पिछड़ी (आदिम) जनजाति कमारः एक  नृजातिवृतांततात्मक परिदृश्य

 

जितेन्द्र कुमार प्रेमीए प्रवीण कुमार सोनीए बृजेश कुमार नागवंशीएं डिकेन्द्र खुॅंटे

मानवविज्ञान अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ 492010

 

 

संक्षेपिका

कमारों की उत्पत्ति बस्तर जिले में हुई है तथा बाद में वे रायपुर और धमतरी जिले में स्थानांतरित हुए हैं। कमारों की उत्पत्ति के संदर्भ में वर्तमान क्षेत्रकार्य से प्राप्त एक अन्य कथा के अनुसार- वे पांच भाई थे जो बस्तर क्षेत्र में निवास करते थे, इन भाईयों में दो भाईयों की आदत खराब हो गई तब इनमें बॅंटवारा हो गया। इनमें से एक भाई को नागर (हल) मिला जो कृषक हांे गया, जिसे गोड़ कहा जाने लगा, दूसरे को करघा मिला जो कोष्टी हो गया, तीसरे को चाक मिला जो कुम्हार हो गया, चैथे को बांस की बनी वस्तुएँ तथा कुदाल मिली जो कमार कहलाया तथा पांचवें को घट का नगाड़ा मिला जो गाड़ा जाति के रुप में जाना गया। जनगणना 2001 के अनुसार  छत्तीसगढ़ में कमार जनजाति की कुल जनसंख्या 23113 है जो कि छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या का 0.11 प्रतिशत तथा छत्तीसगढ़ की जनजातियों की कुल जनसंख्या का 0.35 प्रतिशत है। इनमें पुरूषों की कुल जनसंख्या 11413 (49.37ः) तथा महिलाओं की कुल जनसंख्या 11700 (50.63ः) है। आज 21 वीं सदी में वैश्वीकरण के युग में कमार जनजाति बहुत हद तक अपनी आदिमता (प्रीमीटिव नेस) को बनाए हुए इनके इन तथ्यों की पुष्टि इस बात से होती है कि आज भी इनमें शिक्षा जैसी एक न्यूनतम आधुनिक सामाजिक स्थिति बहुत निम्न हैं। फिर भी इनकी संस्कृति पर बाह्य गैर जनजातीय ग्रामीण एवं शहरी संस्कृति का प्रभाव दिनों-दिन बढ़ते जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अचानक, अव्यवस्थित एवं अनियोजित परिवर्तन किसी भी समाज में विघटन और असंतोष पैदा करता है, जब बात आदिम जनजाति की हो तब यह और भी घातक बन जाता है। यही कारण है कि संस्कृतिकरण के प्रभाव में कमार जनजाति बाह्य संस्कृति गैर जनजातीय संस्कृति की ओर आकृष्ट हो रहे हैं। और उसकी पूर्ति न होने की परिरिस्थिति में निराश होकर नक्सलवाद जैसे विनाशकारी कुचक्र में फँसते जा रहे हैं। अतः आवश्यकता है कि इनके विकास संबंधी सभी कार्यक्रमें में सतत् एवं तथस्ट निगरानी होती रहे और कार्यक्रमों को बहुत ही सावधानी पूर्वक से कई कार्यक्रमों को एक साथ लागू न कर चरणबद्ध तरीके से एक के बाद एक लागू करना चाहिए। ताकि इनमें असंतोष एवं निराशा के भाव जड़ न पकड़ पाये और वे नक्सलवाद जैसे संक्रामक रोग के प्रभाव से बच जाये।

 

प्रस्तावना:- भारतवर्ष अनेकता में एकता का देश हैं। यहां अनेक जाति, धर्म, सम्प्रदाय के लोग निवास करते हैं। इन विभिन्न जाति,धर्म और संप्रदाय के बीच जंगलों और पहाड़ों में रहने वाले समुदाय भी हैं जो शहरों की चकाचैंध से मीलों दूर व विकास की मुख्य धारा से कटे हुए हैं जिनके लिए यह तय कर पाना मुश्किल है कि आने वाले कल की भोजन सामाग्री कहां से और कैसे प्राप्त की जाए? ये वे अनुसूचित जनजाति के अशिक्षित लोग हैं जिन्हें आदिमकहा जाता है।

 

भारत में अनेक प्रकार की अनुसूचित जनजातियां निवास करती हैं जिनमें प्रमुख हैं- संथाल, बैगा, गोंड, भील, कमार, मुरिया, मारिया इत्यादि। भारत के मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तर-प्रदेश, आदि प्रदेशों में जनजाति बहुतायत में निवास करती हैं। भारत के छत्तीसगढ़ प्रांत में निवास करने वाली कमार जनजाति विशेष पिछड़ी जनजाति (प्रिमिटिव ट्राइबल ग्रुप्स) में से एक हैं। यह मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के धमतरी तथा नवनिर्मित गरियाबंद जिले के बीहड़ों एवं वन क्षेत्रों में तथा कुछ मात्रा में कांकेर व नवनिर्मित बालोद जिलों में भी निवास करती हैं।तालिका क्रं 1 के अवलोकन से यह पता चल रहा है कि भारत सरकार, जनगणना 2001 के अनुसार  छत्तीसगढ़ में कमार जनजाति की कुल जनसंख्या 23113 है जो कि छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या का 0.11 प्रतिशत तथा छत्तीसगढ़ की जनजातियों की कुल जनसंख्या का 0.35 प्रतिशत है। इनमें पुरूषों की कुल जनसंख्या 11413 (49.37ः) तथा महिलाओं की कुल जनसंख्या 11700 (50.63ः) है। कमार जनजाति में कुल 25.64 प्रतिशत जनसंख्या साक्षर हैं, इनमें से साक्षर पुरूषों की संख्या 16.77 प्रतिशत तथा साक्षर महिलाओं की संख्या 8.83 प्रतिशत है। इस तालिका से यह भी प्रदर्शित हो रहा है कि इस जनजाति में स्त्री-पुरूष लिंगानुपात 1025/1000 है जो कि राष्ट्रीय (940/1000, जनगणना 2011), छत्तीसगढ़ (991/1000 जनगणना 2011), तथा छत्तीसगढ़ की जनजातियों (1013/1000, जनगणना 2001) की तुलना में अधिक है। इस तालिका अनुसार भारत सरकार, जनगणना 2001 की स्थिति में कमार जनजातियों की कार्यशील जनसंख्या 12836 थी जो कि इनकी कुल जनसंख्या का 55.53 प्रतिशत थी इनमें केवल 55.54 प्रतिशत कमार पुरूष तथा केवल 55.52 प्रतिशत कमार स्त्रियाँ विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में संलग्न थे। इन कार्यशील कमार स्त्री-पुरूषों में 43.14 प्रतिशत पुरूष तथा 33.50 प्रतिशत महिलायें दीर्घकालिन कार्यों में तथा 12.39 प्रतिशत पुरूष तथा 22.02 प्रतिशत महिलायें अल्पकालिन कार्यों में संलग्न थे।

 

वर्तमान क्षेत्रकार्य जो कि फरवरी-अप्रैल 2012 में सम्पन्न किया गया था से प्राप्त प्राथमिक सूचनाएँ प्रदर्शित की गई हैं। वर्तमान क्षेत्रकार्य के दौरान 100 परिवारों का अध्ययन किया गया था जिनकी कुल जनसंख्या 593 थी जिसमें 291 (49.07ः) पुरूष  तथा 302 (50.03ः) महिलाएँ थीं। इनमें से 154 (25.96ः) साक्षर थे जिनमें 87 (14.67ः) पुरूष तथा 67 (11.29ः) महिलाएँ थीं।

 

उत्पत्ति: इस जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में अनेक किद्वंतियाॅं प्रचलित हैं। कमार समुदायों में इनकी उत्पत्ति के संबंध में इन लोंगों में ऐसी धारणा हैं कि इनके पूर्वज गरियाबंद के नवगढ़ के पर्वत श्रृंखलाओं से मैदानी क्षेत्रों की ओर भोजन एवं मूलभूत आवष्कताओं की पूर्ति के लिये अग्रसर हुए।

   

कमार कीे उत्पत्ति के संबंध में अनेक विरोधाभास प्रारंभ से ही हैं जो निरंतर अध्ययन के फलस्वरुप बदलते गये हैं। कमारों की उत्पत्ति के संदर्भ में एक कथा का उल्लेख प्रो. श्यामाचरण दुबे(1951) ने द कमार ‘‘ में किया है। उनके अनुसार एक बार महादेव जी ने इस संसार को नये तौर पर बनाने के लिये सब कुछ विनाश करने का निश्चय किया। एक वृद्धा को इस बात का पता चला । वह भाग कर अपने पति के पास गयी और उसने उसको सब कुछ विस्तार से बताया। पति भाग कर जंगल गया और उसने एक विशाल नौका बनाया और इस नौका में उसने खाने-पीने का समान रख दिया। उन्होंनें अपने एक लड़का तथा एक लड़की को उस नौका के एक कमरे में बंद कर दिया। उसके पश्चात् बिजली, वर्षा और तूफान ने पृथ्वी को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। जब महादेव जी का यह विनाशकारी रुप शांत हुआ तब पृथ्वी का स्वरुप ही बदल चुका था। तब तक एक भी प्राणी जीवित नहीं बचा और चारों तरफ पानी ही पानी था। इस मंजर के बीच केवल वह भाई-बहन की नौका पर तैर रहे थे। उसके बाद महादेव ने अपने विष्वस्त सहचर ‘‘बालिया‘‘ को पुनः सृष्टि निर्माण के लिये पृथ्वी और मनुष्य का बीज ढूॅंढने के लिये भेजा। उन्हें नाव में ये भाई-बहन मिले। ‘‘बालिया‘‘ ने उस भाई-बहन को उनके सामने प्रस्तुत किया। महादेव ने केकडे़ को आज्ञा दी कि वह शीघ्र ही पृथ्वी का बीज खोज कर लाये। समुद्र तल में से वह एक केचुआ लाया जिसके दाढ़ी को दुह कर धरती का बीज निकाला तथा पृथ्वी का निर्माण किया। पृथ्वी तो बन गई पर अभी तक आकाश नहीं बना था। महादेव ने चार कोनों में चार विशाल खंभों का निर्माण किया और उन पर काली सुरही गाय का चमड़ा इस तरह लगाया कि वह पूरी तरह पृथ्वी को छा ले। यह चमड़ा फिर भी कुछ ढीला-ढाला सा लग रहा था इसे कसने और स्थायी बनाने के लिये उस¢ विभिन्न प्रकार की कीलों से जड़ दिया गया। वही काली गाय का चर्म आकाश है और कीले तारें हैं। इस प्रकार पृथ्वी आकाश एवं तारों का निर्माण हुआ।

 

इसके पश्चात् मनुष्य को बनाने के लिए नाव वाले भाई-बहन को यौन संबंध स्थापित करवाने के लिए कई चालें चलीं गई। अंत में इनके बीच यौन संबंध स्थापित कराने में वे सफल हुए। प्रातःकाल उस कन्या ने अपने आप को गर्भवती पाया, गर्भ में बच्चा बनने की जिस क्रिया को सामान्यतः 9 माह का समय लगता है वह 9 कदम चलने से ही पूरी हो गई। कन्या थोड़े ही समय में सहस्त्र पुत्र-पुत्रियों को जन्म देकर मर गई। महादेव और पार्वती के आश्रम में शिशु पलने लगें। इसके पश्चात् महादेव नें नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र यंत्र उपकरण आदि बनाये फिर उन्हें नदी में बहा दिया। जिन्हें हल मिले वे खेती करने वाले गोड़ या दूसरी जनजाति के हो गये, करघा पाने वाले कोष्टी, उस्तरा पाने वाले नाई बना। इस प्रकार प्रत्येक जनजाति को जीवन यापन के लिए आवश्यक उपकरण मिल गये। एक व्यक्ति को केवल बांस की टोकरी मिली उसने महादेव जी से पूछा कि वह इसका क्या करेगा तब महादेव ने तीर-धनुष व कुल्हाड़ी देकर कहा तुम जंगल में जाकर स्थानांतरित कृषि करो तथा शिकार करो, तुम्हारी स्त्रियां बांस बर्तन बना सकती हैं। इस प्रकार कमारों की उत्पत्ति हुई है। 

 

कमारों की उत्पत्ति बस्तर जिले में हुई है तथा बाद में वे रायपुर और धमतरी जिले में स्थानांतरित हुए हैं। कमारों की उत्पत्ति के संदर्भ में वर्तमान क्षेत्रकार्य से प्राप्त एक अन्य कथा के अनुसार- वे पांच भाई थे जो बस्तर क्षेत्र में निवास करते थे, इन भाईयों में दो भाईयों की आदत खराब हो गई तब इनमें बॅंटवारा हो गया। इनमें से एक भाई को नागर (हल) मिला जो कृषक हांे गया, जिसे गोड़ कहा जाने लगा, दूसरे को करघा मिला जो कोष्टी हो गया, तीसरे को चाक मिला जो कुम्हार हो गया, चैथे को बांस की बनी वस्तुएँ तथा कुदाल मिली जो कमार कहलाया तथा पांचवें को घट का नगाड़ा मिला जो गाड़ा जाति के रुप में जाना गया।

 

इस बॅंटवारें के पश्चात् कमार बस्तर से स्थानांतरित होकर भाटीगढ़ आए, वहां कुछ समय रहने के पश्चात् वे जिडार चले आए, जिसे पुरेनतराई कहा जाता था। चॅंूकि इस क्षेत्र में बच्चे जन्म लेने के बाद मर जाते थे इस लिए कमार घूम-घूम कर अलग-अलग क्षेत्रों में निवास करने लगे।        

भाषा/बोली: कमारी- कमारी बोली आदर्श द्रविड़ीयन तथा आर्यन भाषाओं के सम्मिश्रण के फलस्वरुप बनी है। द्रविड़ियन भाषा के समान कमारी बोली, बोली जाती है । कुछ शब्दों में कमारी, आर्यन से मेल खाती है एवं यह हल्बी, छत्तीसगढ़ी, मराठी एवं उड़िया भाषा का मिश्रण है। ग्रिगर्सन (1905) के भाषा सर्वेक्षण के अनुसार इसे हल्बी से मिलता-जुलता पाया। रसेल एवं हीरालाल (1916) ने इसे छत्तीसगढ़ी की एक उप बोली कहा। जनगणना सर्वेक्षण 1961 एवं 1971 के अनुसार कमारी, मराठी का एक प्रकार है। एक कमारी बोली, जो बिहार में प्रचलित है को, कमारी संथाली कहा जाता है। यह संथाल जनजाति द्वारा बोली जाने वाली आस्ट्रिक भाषा परिवार खेरवाड़ी शाखा से संबंधित है। 

 

सामाजिक-सांस्कृतिक जीवनः-

जीवन चक्र:- मनुष्य द्वारा जन्म से लेकर मृत्यु तक किये जाने वाले समस्त संस्कार जीवन-चक्र के अंतर्गत आते हैं । इनमें जन्म संस्कार, विवाह संस्कार तथा मृत्यु संस्कार मुख्य हैं ।

 

जन्म संस्कार - जीवन संसार के समस्त जीव जंतुओं को प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है। जन्म शब्द का अर्थ किसी स्त्री या उनके समूह द्वारा किसी समय में जीवित जन्में बच्चों की वास्तविक संख्या से है । मानव समाज में बच्चे का जन्म मात्र एक जैविक घटना नहीं होती है बल्कि यह कई सामाजिक-सांस्कृतिक प्रस्थितियों, मूल्य-मान्यताओं एवं लोकाचारों के एक संकुल की एक शुरूवात होती है। इसके उस विशिष्ट समाज के सामाजिक संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक पक्ष¨ं पर विशिष्ट प्रभाव होते हैं। यही कारण है कि प्रत्येक मानव समाज में जन्म संस्कार काफी महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट होते हैं जिससे कभी-कभी उनकी नृजातीयता का प्रतिबिम्ब उभर आता है।

 

कमार जनजाति में सामान्यतः एक ही प्रकार से जन्म संस्कार ’’छठी कार्यक्रम‘‘ के रूप में मनाया जाता है। यह कार्यक्रम जन्म के 1 माह बाद मनाया जाता हैं, इस दिन यहाॅं के लोग अपने कुलदेवता का पूजा पाठ करने के पश्चात् मद्य(शराब), नारियल तथा गुड़ का भोग चढ़ाते हैं और इस भोग को सभी लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। बच्चे का नामकरण समाज के सभी सम्मानित सदस्यों द्वारा तय किया जाता है।

विवाहः विवाह एक या अधिक पुरूषों का एक या अधिक स्त्रियों के साथ होने वाला संबंध है जिसे प्रथा या कानून स्वीकार करता है और जिसमें विवाह करने वाले व्यक्तियों के और उससे पैदा हुए संभावित बच्चों के एक-दूसरे के प्रति होने वाले अधिकारों एवं कत्र्तव्यों का समावेश होता है (वेस्टर्नमार्क, ़़़़़़़़ )

 

विवाह स्त्री-पुरूष का ऐसा योग है जिससे स्त्री से जन्मी संतान माता-पिता की वैध संतान मानी जावें । (लूसी मेयर)

 

कमार समाज में विवाह अपने ही जाति समुदायों में किया जाता है, इस प्रकार ये एक अन्तःविवाही समुदाय है किन्तु इनमें एक गोत्र या समगोत्र में विवाह नहीं किया जाता है इस तरह ये एक अन्तःविवाही समुदाय एवं गोत्र बर्हिविवाही जनजाति है। अध्ययनित ग्राम में विवाह पूर्व फलदान की रस्में होती है, जिसमें लड़की पक्ष के यहाँ लड़के पक्ष विवाह संबंध स्थापित करने के उद्ेश्य से लड़के का रिश्ता लेकर  आते हैं। इस अवसर पर लड़का पक्ष की ओर से लड़की पक्ष के लिये वधू मूल्य के रुप में श्रृंगार सामान, 5 काठा चाॅंवल, दाल, 5 किलो गुड, 5 कट्टा बीड़ी, 5 नारियल़ तथा 5 बाॅटल मद्य लाया जाता हैं। इस दिन वर-वधू को पीढ़वा में एक साथ खड़े कराकर जंगली लौकी (तुमा अथवाओंका) में पानी लेकर दोनों के ऊपर डालतें हैं। फलदान के  6 माह के पश्चात् विवाह किया जाता है।

 

अध्ययनित कमार जनजाति में  विवाह कार्यक्रम ’’तीन दिवसीय‘‘ होती है जो निम्नानुसार है:- 1.तेल

2.मायन      3.बारात 4.टिकावन । अध्ययनित कमार जनजाति में विवाह सामान्य प्रकार के तथा माता-पिता की सहमति से किये जाते हैं। माता-पिता अपने पुत्र व पुत्री के लिये जीवन साथी चुनते हैं ।

 

कमार जनजाति की विवाह पद्धति बड़ी ही आश्चर्यजनक होती है। विवाह के प्रथम दिन वर-वधू को  तेल चढ़ाया जाता हैं, दूसरे दिन मायन होता है। इस समुदाय की मान्यता है कि बारात में वर अपने साथ धनुष-बाण लेकर जाता है, तथा इसे अत्यंत ही शुभ माना जाता है। विवाह के समय टिकावन में एक हास्य अभिनय वर पक्ष के सदस्यों द्वारा किया जाता है। इस अभिनय में भाग लेने वाले एक-एक अभिनय करते हैं जिसमें एक कोटवार, एक पुलिस, एक रेंजर, एक वनभैंसा तथा  वर शिकारी बनता है। अभिनय में शिकारी वनभैंसा का शिकार करता है जिसे रेंजर व पुलिस पकड़ लेते हैं और दंडित करते हैं और जुर्माने के रूप में टिकावन का पैसा देते हैंै। अंतिम में इस पैसे का मद्य लाकर सभी लोंगों में वितरित किया जाता है।

 

मृत्यु संस्कार: ’’संसार का अंतिम सत्य मृत्यु है‘‘ कोई प्राणी जन्म लेता है तो उसकी मृत्यु भी निश्चित होती है। मृत्यु संस्कार धर्म व जाति में अलग-अलग पाया जाता है ।

अध्ययनित कमार जनजाति में मृत्यु को स्वीकार किया जाता है तथा किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी शवयात्रा परिवार, रिश्तेदार तथा ग्रामवासियों द्वारा ’’राम नाम सत्य है कहते हुए निकाली जाती है, इनमें मृतक को दफनाने की प्रथा है । शवयात्रा में शव को ले जाने के पूर्व स्त्रियों के द्वारा शव के मस्तक पर हल्दी का लेप लगाया जाता है। मृत्यु पश्चात् मृत शरीर से उनके पहने कपड़े को निकालकर उन्हें नये कफन में लपेट कर शव को पेट के बल लिटाकर दफनाते हैं तथा शव के साथ धनुष-बाण को रखना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। दफनाने के पश्चात् सभी शवयात्रा में उपस्थित कमारजन तालाब में जाकर स्नान करते हैं। पहने हुए सभी कपड़ों को भिगाया जाता है, पुरूष के स्नान घाट से आने के पश्चात् ग्रामीण स्त्रियाँ तालाब में स्नान करती हैं। महिलाओं के जाने के पश्चात् ही पुरूष तालाब से घर जाते हैं तथा अपने अपने घर से  कुछ मात्रा में दाल, चावल, नमक, मिर्च आदि सहयोग के रूप में एक थाली में मृत व्यक्ति के परिवार को भेंट करते हैं ।

 

मृत्यु संस्कार के तीसरे दिन घर की लिपाई-पुताई करते हैं तथा ग्राम व घर के शुद्धिकरण के रूप में परिवार के सदस्यों का मुुंडन किया जाता है ।

 

ग्राम में अंतिम शुद्धिकरण पंच नहावन, सप्त नहावन था दसगात्र होता है। दसगात्र के दिन मृतक परिवार के सदस्य अपनी आर्थिक सम्पन्नतानुसार सामूहिक भोज जिसे वे ‘‘ बिसर भात ‘‘ कहते हैं सम्पन्न किया जाता है।

 

सामाजिक जीवनः

परिवार: धमतरी जिले के नगरी विकासखंड के अंतर्गत अध्ययन के लिए चयनित किये गए ग्रामों के कमार परिवार का परिवारिक स्वरूप पितृवंशीय तथा पितृस्थानीय है । यहाँ पितृसत्तात्मक परिवार हैं ,अर्थात् परिवार में पुरूषों का आधिपत्य है । अध्ययनित परिवार में घर का मुखिया प्रमुख व्यक्ति होता है । संपत्ति का बंटवारा लड़कों (भाईयो)ं में बराबर-बराबर होता है। पुत्रियों को कमार समाज में संपत्ति के अधिकार से वंचित रखा जाता है।

विवाह के आधार पर ग्राम में दो प्रकार के परिवार पाये जाते हैं:-

 

एक विवाही परिवारः इस जाति में प्रायःप्रायः एक विवाही परिवारों की संख्या अधिक पायी गयी है।

 

बहुविवाही परिवार: अध्ययनित ग्रामों में अध्ययन के दौरान एक भी बहुपत्नि विवाही परिवार नहीं पाये गये हैं ।

 

संख्या के आधार पर ग्राम में निम्न प्रकार के परिवार पाये गयेे हैं: 1.केन्द्रीय परिवार 2.संयुक्त परिवार 3.मिश्रित परिवार

गोत्र: गोत्र की उत्पत्ति एक गणचिन्ह (टोटम) से मानी जाती है । एक गोत्र अधिकांश रूप से कुछ वंशों का योग होता है जिसकी उत्पत्ति एक काल्पनिक पूर्वज से मानी जाती है । यह पूर्वज मानव के समान काल्पनिक सत्य, पशु, पेड़ पौधा या निर्जीव वस्तु तक हो सकती है । (मजूमदार तथा मदान,)

 

अध्ययनित ग्राम में क्षेत्रकार्य के दौरान कमार  जनजाति में 12 प्रकार के गोत्र पाये गये जिसमें केवल 10 गोत्र के बारे में ही हमें जानकारी मिल पायी, जो कि निम्नानुसार है:- कुंजाम   2.शोरी 3. नेताम    4. मरकाम     5. मरई   6. सुंदराम  7. करियाम  8. गाव 9. वट्टे  10. कोडोप्पी आदि।

उपजाति: कमार जनजाति 8 प्रकार के उपजातियों में विभक्त हैं जिसका प्रमुख आधार उनके निवास स्थान की भू-आकृति है। इस अनुसार कमार जनजाति पर्वत श्रृंखलाओं के आधार पर उपजातियों में बँटे हुए हैं। उदाहरण के लिये उपजाति तथा उसके उत्पत्ति से संबंधित अवधारणा नीचे तालिका में दर्शाया गया हैं-

 

तालिका क्रं.3:- कमार जनजाति की उपजातियाँ

क्रं    उपजाति के नाम     उत्पत्ति संबंधित अवधारणा

1        गोबोरिया     इनकी उत्पत्ति नवगढ़ पर्वत के गोबरा नामक स्थान से मानी जाती है।

2        पांडरिया      इनकी उत्पत्ति नवगढ़ पर्वत के पेंड्रा नामक स्थान से मानी जाती है।

3        ढोलिया इनकी उत्पत्ति नवगढ़ पर्वत के रावनडीह नामक स्थान से मानी जाती है।

4        माविया इनकी उत्पत्ति नवगढ़ पर्वत के मलार नामक स्थान से मानी जाती है।

5        आमझरिया   इनकी उत्पत्ति मालवा पठार के भीमडीह नामक स्थान से मानी जाती है।

6        ब्राम्हणदेविया  इनकी उत्पत्ति नवगढ़ पर्वत के ब्राम्हणदेविया नामक स्थान से मानी जाती है।

7        कोटोनिया    इनकी उत्पत्ति नवगढ़ पर्वत के कोटोन नामक स्थान से मानी जाती है।

8        भातसेविया    इनकी उत्पत्ति कमार सेवक जाति के रूप मे गिने जाते हैं।

 

नातेदारी:कमार जनजाति नातेदारी की वर्णात्मक पद्धति का पालन करतें हैं जो  नातेदारी व्यवस्था के अंतर्गत समाज द्वारा मान्यता प्राप्त वे संबंध आते हैं जो विवाह तथा रक्त संबंधों पर आधारित हो ।  जो कि निम्न प्रकार है:-

 

रक्त संबंधी नातेदारी: यह प्रजनन के आधार पर उत्पन्न होने वाले सामाजिक संबंध¨ं में से एक प्रकार है जो रक्त के आधार पर बनता है । उदाहरणार्थ:- स्थानीय बोली के अनुसार दाई-ददा (माता-पिता), भाई-बहिनी (भाई-बहन), बबा-बड़का दाई(दादा-दादी), नाना-नानी आदि ।

 

विवाह संबंधी नातेदारी: इसके अंतर्गत पति-पत्नी तथा दोनों के परिवारों के अनेक संबंधी आते हैं । इन सभी संबंधियों के बीच संबंध का आधार रक्त न होकर विवाह होता है। उदा.ः- सास-बहू, ससुर-बहू, डउका-डउकी (पति-पत्नी), भाँटों-सारी (जीजा-साली), सारा (साला), खुरा ससुर(जेठ), देरानी (देवरानी)  देवर-भाभी, ननद-भौजाई ।

 

1.नातेदारी की रीतियाँ:

कमार जनजाति में नातेदारी व्यवस्था के अंतर्गत दो प्रकार के संबंध पाए जाते हैं:-

1.       परिहार संबंध:- जब किसी के साथ दूरियाँ रखी जाती है तब वहाँ पर परिहार संबंध होता है । यह संबंध स्थानीय बोली जेठ-बहू, ससुर-बहू या ग्राम के बड़े बुजुर्गों के बीच पाया जाता है । ससुर तथा जेठ को सम्मान देने के लिये उनके सामने आने पर बालों का जूड़ा बना लेती हैं।

 

2.       परिहास संबंधी:- जब किसी के साथ हंसी-मजाक किया जाता है या नजदीकियाँ रखी जाती है, तब उसे परिहास संबंध कहते हैं:- स्थानीय बोली देवर-भाभी, भाँटों-सारी (जीजा-साली), दादी-पोता, इत्यादि।

 

राजनैतिक संगठनः-      

कमार जनजाति में जाति-पंचायत का स्वरूपः-

कमार जनजाति में अपनी एक अलग जाति पंचायत की व्यवस्था होती हैं,जो कमार समुदायों से संबंधित कार्यों जैसे- जन्म-संस्कार,विवाह-संस्कार एवं मृत्यु-संस्कार एवं विवादों का समाधान तथा कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करती हैं।

 

प्रशासनिक-व्यवस्थाः-

कमार जनजाति के जाति पंचायत में निम्नलिखित पदव्यवस्था पायी जाती हैं-

1. मुखिया   2. पटेल  3. कोतवाल या चपरासी(सिपाही)  

 

चुनाव-प्रक्रियाः-

मुखिया:- कमार जनजाति बाहुल्य ग्रामों में से 12 ग्रामों जिसे स्थानीय स्थानीय भाषा में 12 पाली कहा जाता है में से एक सदस्य का जनजाति पंचायत के सदस्यों द्वारा मुखिया के रूप में चुनाव किया जाता हैं। इस जनजाति के अनुसार एक ग्राम को स्थानीय बोली में ‘‘पाली‘‘ शब्द से संबोधित किया जाता है।

 

पटेल:- हर एक ग्राम या पाली में एक पटेल की नियुक्ति की जाती हैं।

 

सिपाही:- यह एक संदेशवाहक का कार्य करता हैं जो जनजाति पंचायत से संबंधित बैठकों के बारे में सूचना देता हैं। सूचना या संदेश को स्थानीय नाम में ‘‘डोरीगाँठ‘‘ कहा जाता हैं।

 

दंड का प्रावधानः- अध्यनित कमार समुदाय में चोरी करने पर समाज के द्वारा अपराधी को दंड के रूप में पूरे समुदाय को भोजन कराना पड़ता हैं एवं अपराधी के सिर को मुंडवा दिया जाता हैं।

विवाह के पश्चात् पुरूष के द्वारा स्त्री को छोड़ दिये जाने पर दंड के रूप में विवाह के समय एक-दूसरे पक्ष को दिये जाने वाले भेंट को वापस करना पड़ता हैं। इस लिये इस समाज में चोरी व विवाह विच्छेद जैसी अपराधें बहुत ही कम होती हैं।

 

आर्थिक-संगठनः- कमार जनजाति आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक पिछड़ी हुई है। यह परंपरागत प्रणाली से कृषि कार्य में संलग्न हैं, जिससे इन्हें खाद्य संकलन व आखेट जैसी गतिविधियों से भी संलग्न रहना होता है। समस्त आर्थिक गतिविधियाँ परिवारिक स्तर पर एवं आपसी सहयोग पर आधारित होती है। महिलायें भी आर्थिक गतिविधियों में सहभागिता दर्शाती हैं। परिवार को समस्त सदस्य क्षमता पूर्वक आर्थिक कार्यों में संलग्न रहते हैं, एवं मिलजुल कर परिवार का भरण पोशण पूर्ण करते हैं। कमार जनजाति कृषि, पशुपालन, खाद्य संकलन व आखेट के अतिरिक्त टोकरियों के निर्माण में भी संलग्न रहते हैं। टोकरी बनाने में उन्हें असारों (संगठित हरिजन) से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती हैं। शासन द्वारा उन्हें कम दामों में बांस उपलब्ध करवाया जा रहा हैं। जिसका उपयोग भी चटाई व टोकरियों के निर्माण हेतु करतें हैं। कमार वर्ष भर जी तोड़ परिश्रम करते हैं। इनकी मासिक आर्थिक गतिविधियाॅं निम्नवत् हैं-

 

मई जून में मत्स्य आखेट, वनोपज का संकलन एवं वृक्षों आदि का कटाई इत्यादि। जून-जुलाई माह में धान, मक्का व कद्दू जैसे अनाज एवं सब्जियों की बुआई तथा वनों से कंद-मूल एकत्रित करना एवं टोकरियों का निर्माण इत्यादि शामिल हैं। जुलाई-अगस्त माह में फसलों की देख-रेख, खेतों से खरपतवार निकालना, वनों से वनस्पतियाॅं एकत्रित करना व टोकरियाॅं बनाना महत्वपूर्ण हैं। अगस्त से सितम्बर माह में फसल की देखरेख, वनों से संबंधित श्रमिक कार्य में संलग्न होना। सितम्बर-नवम्बर में फसल काटकर साफ करना और टोकरियों का निर्माण। नवम्बर-दिसम्बर माह में श्रमिक कार्य व खाद्य संकलन। दिसम्बर-जनवरी माह में आखेट व वनों से खाद्य संकलन संपन्न करना। फरवरी-मार्च माह में टोकरी निर्माण व आखेट कार्य संपन्न करते हैं। मार्च-अप्रेल माह में आखेट जैसी गतिविधियों में प्रमुखतया संलग्न रहना एवं अप्रैल-मई में कृषि भूमि की तैयारी व खाद्य संकलन, आखेट आदि करना महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकार कमार संपूर्ण वर्ष किसी न किसी आर्थिक गतिविधि से संलग्न हो जीविकोपार्जन पूर्ण करते हैं।

 

उपसंहार:- आज 21 वीं सदी में वैश्वीकरण के युग में कमार जनजाति बहुत हद तक अपनी आदिमता (प्रीमीटिव नेस) को बनाए हुए इनके इन तथ्यों की पुष्टि इस बात से होती है कि आज भी इनमें शिक्षा जैसी एक न्यूनतम आधुनिक सामाजिक स्थिति बहुत निम्न हैं। फिर भी इनकी संस्कृति पर बाह्य गैर जनजातीय ग्रामीण एवं शहरी संस्कृति का प्रभाव दिनों-दिन बढ़ते जा रहा है। इनके जीवन-यापन के मूलभूत साधनों में इनकी झलक अवश्य मिल जाती है। अभौतिक रूप से भी वे बाह्य संस्कृतियों से प्रभावित हो रहे हैं। इस बात का उदाहरण इस बात से पता चलता है कि इनके विवाह जैसे महत्तपूर्ण अवसर पर कभी इनके साथ हुई सरकारी ज्यादती की याद एक ‘‘स्वांग‘‘ द्वारा किया जाता है जिसका वर्णन इस शोधपत्र में किया गया है।

 

गैर जनजातीय समाजों की तुलना में कमार जनजाति में लैंगिक असमानता कम पायी जाती है। यही कारण है कि इनका लिंगानुपात भारत, छत्तीसगढ़ एवं छत्तीसगढ़ की जनजातियों की अपेक्षा अधिक अच्छी है। आवश्यकता है कि ऐसे समाज जो अपनी संस्कृति को तथाकथित रूप से उन्नत मानते हैं और बेटी जन्म न लें इसलिए उन्हें भ्रूणावस्था में ही खत्म कर देते हैं, ऐसे लोग इनसे (कमार से) कुछ सीख सकते हैं। जहाँ एक ओर ग्रामीण एवं शहरी संस्कृतियों में विवाह कार्यक्रमों के आयोजन संबंधी जटिलताएँ बढ़ती जा रही हैं, लोग अपनी सामाजिक हैसियत के भौड़ा प्रदर्शन के लिए करोड़ों खर्च कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कमार जनजाति में वधूुमूल्य  का पहले की तुलना में कम होना भी हमें कुछ सिखाना चाहता है।

 

इसमें कोई संदेह नहीं कि अचानक, अव्यवस्थित एवं अनियोजित परिवर्तन किसी भी समाज में विघटन और असंतोष पैदा करता है, जब बात आदिम जनजाति की हो तब यह और भी घातक बन जाता है। यही कारण है कि संस्कृतिकरण के प्रभाव में कमार जनजाति बाह्य संस्कृति गैर जनजातीय संस्कृति की ओर आकृष्ट हो रहे हैं। और उसकी पूर्ति न होने की परिरिस्थिति में निराश होकर नक्सलवाद जैसे विनाशकारी कुचक्र में फँसते जा रहे हैं। अतः आवश्यकता है कि इनके विकास संबंधी सभी कार्यक्रमें में सतत् एवं तथस्ट निगरानी होती रहे और कार्यक्रमों को बहुत ही सावधानी पूर्वक से कई कार्यक्रमों को एक साथ लागू न कर चरणबद्ध तरीके से एक के बाद एक लागू करना चाहिए। ताकि इनमें असंतोष एवं निराशा के भाव जड़ न पकड़ पाये और वे नक्सलवाद जैसे संक्रामक रोग के प्रभाव से बच जाये।  

 

संदर्भ ग्रंथ-सूची

1.       मेयर, लूसी (1975): इंटरोडक्शन आॅफ सोशल एन्थ्रोपोलोजी, लंदन

2.       मजूमदार, डी.एन. एवं मदान, टी.एन. (1956): एन इंटरोडक्शन ट सोशल एन्थ्रोपोलोजी, न्यू दिल्ली

3.       विद्यार्थी, एल. पी. (1976): ट्राइबल कल्चर इन इंडिया, कान्सेप्ट पब्लिशर, नई दिल्ली 

4.       तिवारी एस. और श्रीकमल शर्मा (2009): मध्यप्रदेश की जनजातियाॅ: समाज एवं व्यवस्था, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी भोपाल

5.       ग्रिगर्सन डब्ल्यु ई (1905): मध्य प्रांत और बरार में अदिवासी समस्याएॅ राजकमल प्रकाशन 2008

6.       भारत जनगणना (1961)1981 और 1991 एव 2001 अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष सारणी प्रकाशन विभाग, भारत सरकार नई दिल्ली

7.       भारत जनगणना (1971): अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष सारणी प्रकाशन विभाग, भारत सरकार नई दिल्ली

8.       भारत जनगणना (2001)ः अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष सारणी प्रकाशन विभाग, भारत सरकार नई दिल्ली

9.       रसेल एवं हीरालाल (1916): द ट्राइब्स एण्ड कास्ट् आफ द सेन्ट्रल प्रोवाइन्स आफ इण्डिया पब्लिशड बाय जे.जे टि ई हर एजुकेशनल सर्विस सी -2/15 एस. डी. ए न्यू दिल्ली 110016

10.     दुबे, एस.सी. (1951)ः द कमार. द इथनोग्राफिक एंड फोक कल्चर सोसाइटी, यूनिवर्सल पब्लिकेशन एलटीडी लखनऊ.

11.     वेस्टरमार्क, (1922): द हिस्ट्री आफ ह्यमन  मेरिज, वाल्युम: प् , पेज 2-6 न्यूयार्क एलरटोन बुक 1922 

 

Received on 11.07.2012

Revised on 05.08.2012

Accepted on 12.08.2012     

© A&V Publication all right reserved

Research J. Humanities and Social Sciences. 4(1): January-March, 2013, 179-184