मीडिया का खेलः बड़ा रोमांचक व इसका जादुई तकनीकी प्रभाव (ग्रामीण संदर्भ में)

 

Dr. Mrs. Vrinda Sengupta

Assistant Professor Sociology, Govt. T.C.L. P.G. College, Janjgir (C.G.)  

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      Janjgir (C.G.)

 

षोध सार-

मीडिया आज का मानवीय जीवन के बिना अधूरा है। मीडिया सिनेमा, केबल, कम्प्यूटर, टेलीफोन, मोबाईल, ई-मेल वे माध्यम है जिन्होंने दो स्थानों, दो व्यक्तियों के मध्य की दूरी को समाप्त कर भारत के उस उक्ति को चरितार्थ किया है, कि ‘‘सारा विष्व एक परिवार है’’

 

कुछ समय पहले मनुश्य की जो विलासी या आरामदायक आवष्यकताएं  मानी जाती थी। आज वे मानवीय जीवन का अनिवार्य अंग बन चुकी है। और इसमें मुख्यतः जन संचार के माध्यम ही है वर्तमान समय में मीडिया साधनों में सषक्त भूमिका निभाने वालों में मुख्य रूप से मोबाईल, टेलीफोन, टी.वी. इन्टरनेट, ई-मेल एवं कम्प्यूटर है जो धीरे- धीरे मानवीय जीवन के विकास का आधार बन रहें हैं। आज इन्टरनेट की मदद से हम विष्व के अनमोल साहित्य को अमरता प्रदान कर सकते हैं।

 

इस प्रकार हम देखते हैं कि मीडिया पर कहीं संविधान के प्रतिबंध लागू है तो कहीं गुण्डे बदमाषों का प्रतिबंध लागू है तथा कहीं पर सरकार के नाराज हो जाने का डर रूपी प्रतिबंध है पर इन बावजूद मीडिया ने लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सुचारू रूप से बनाए रखने का स्तुत्य प्रयास किया है।

 

मीडिया को चाहिए कि सभी प्रतिबन्धों एवं वर्जनाओं के बावजूद वे यथा सम्भव सत्य को जनता के सामने रखने का प्रयास करें और इस बात को ध्यान में रखें कि:-

‘‘तलवार की धार से केवल कुछ लोग घायल हो सकते हैं किन्तु लेखनी से निकली हुई षब्द रूपी गोली से लाखों लोगों को हलाक कर सकती हैं।’’

 

अर्थात मीडिया के लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे तथ्यों का प्रकाषन न करें जो अपराध उद्दीपन का कारण बनें। सूचना पाने का अधिकार विधेयक ; त्पहीज जव प्दवितउंजपवद ठपसस द्ध संसद द्वारा पारित हो गया इससे तो मीडिया के हाथ और मजबूत बनेंगे और वह लोकतंत्र का और सषक्त प्रहरी बनकर उभरेगा।

 

षब्द कुंजी:-

मीडिया,    संचार प्रौद्योगिकी, संचार माध्यमग्रामीण विकास (युवाओं के संदर्भ में)

 

प्रस्तावना:-

वर्तमान युग में विज्ञान और टेक्नालाॅजी का युग है और उसका गहरा प्रभाव हम आज के युग पर देख सकते है। विज्ञान ने इन्सान के सामने आने वाले कई किस्म की दिक्कतों को दूर करने के साधन जुटाए, पर विज्ञान और टेक्नालाॅजी के बीच का रास्ता जटिल है। द्वितीय विष्व युद्ध के परिणाम से हम अनभिज्ञ नहीं हैं। जापान के षहर ‘‘हीरोसीमा और नागासाकी’’ पर बम गिराएॅ गये एवं मानवीयता को आहत किया गया । इसके पीछे महाषक्तियों के इरादे और उनके शड़यत्रों को हम जानते है। साहित्य उन पूंजीवादी षक्तियों का खुलासा करता है। वर्तमान परिदृष्य में विज्ञान टेक्नालाॅजी का रिमोट कंट्रोल पंूजीवादी षक्तियों के हाथ में है और वह विज्ञान की टेक्नालाॅजी तय करती है। और सारे विष्व को अपने अधीन करना उनका उद्देष्य है। जिसे वह विष्वग्राम का नाम देती है। जिसे भूमण्डली के नाम से जाना जाता है।

 

डाॅ0 अ.प्र.षुक्ल ने अपने आलेख में लिखा है कि ‘‘आजादी के बाद से भारतीय विज्ञान का बढ़ता पिछड़ापन जैसा कि अंतराश्ट्रीय मान- दण्डों से दिखता है विज्ञान की विष्वव्यापी संसर्ग की प्रक्रिया में प्रतिभा पलायन को और जोड़कर तीसरी दुनिया को हम विज्ञानी अपने यहां की गरीबी और व्यावसायिक पिछड़ेपन को भूलकर अमेरिका के कुलीन विज्ञानियों में अपनी पहचान ढ़ूढ़ने लगते हैं और इस तरह तीसरी दुनिया के वैज्ञानिकों में उनका पिछलग्गू बनने की भावना घर कर जाती है।

 

जनसंचार एवं पत्रकारिता का माध्यम:-

आज प्रिंट एवं इलेक्ट्राॅनिक मीडिया सभी प्रकार की सूचनाओं, खबरों, घटित घटनाओं, परिवर्तनों एवं दृष्य-श्रव्य माध्यम के आधार बने हुए हैं। इसलिए प्रेस, रेडियो, दूरदर्षन, समाचार पत्र, सिनेमा, टी.वी. चैनल्स की महत्ता में वृद्धि हुई है। सरकार के अधिकार क्षेत्र में समूचा जन संचार माध्यम आता है, वहीं औद्योगिक घरानों, व्यापारिक प्रतिश्ठानों, राजनीतिक पुराधाओं ने समाचार पत्रों और टी.वी. चैनल्स पर अधिकार स्थापित कर लिये हैं।

 

सूचना, समाचार, विचार, मंनारेजन और नई तकनीकी के स्वतंत्र संमवहक रूप में साइबर विकास के रूप में सूचना मीडिया क्षेत्र को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानव जीवन को वैष्विक स्तर पर प्रभावित किया है, और जीवन में नये आयाम प्रस्तुत किये है, पत्रकारिता और पत्रकार ब्यापक अर्थ में मीडिया तथा मीडियाकर्मी सूचना के स्वतंत्र प्रवाह के दौर में पहॅुच गयें हैं।

 

इन्टरनेट के एक माध्यम और सूचना स्त्रोत दोनों ही रूपों में विकास के परिणाम स्वरूप।

 

कृशि पर आधारित कुटीर उद्योग समाप्त होने के कारण ग्रामीण कारीगर बेरोजगार हो गये तथा एक वर्ग जो कि कृशि की सहायक गति - विधियोें में था , बेरोजगारी के कारण षहरों की ओर पलायन कर रहा है। वैसे भी जनसंख्या वृद्धि के कारण बेरोजगारी के साथ प्रति व्यक्ति कम आय के कारण गरीबी बढ़ रही ळें

 

ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना के अनेक साधन मौजूद है परन्तु अभी तक भी उनकी सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया है। ग्रामीण समुदाय में उपयोगी संचार माध्यम निम्न है।

0लोक संचार माध्यम      0                  कठपुतली

0लोक नाट्य     0                  लोक गीत और लोकनृत्य

0जनसंचार माध्यम       0                  रेडियो

0दूरदर्षन 0                  पोस्टर

0समाचार पत्र और नियतकालीन पत्र-पत्रिकाएॅ आती है।

 

महत्व:-

मीडिया के बदले स्वरूप ने पत्रकारिता को युवाओं के सामने एक सम्भावना के भरपूर कैरियर विकल्प के रूप में स्थापित किया है। जब पत्रकारिता केवल साहित्यकारों और पढ़ने - लिखने वालों का ही क्षेत्र नहीं  रह गया है। अब रिपोर्टर, पत्रकार, सम्पादक और एंकर घर-घर में पहुॅचाने जा रहे हैं। इनके कार्यो का इतना प्रभाव है कि अब पत्रकार और टीवी पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले भी एंकर भी युवाओं के रोल माॅडल बनने लगे है। पत्रकारिता के पेषे  में आज जितनी प्रतिश्ठा है,उतना पैसा भी है। इस क्षेत्र में सम्भावनाओं कोई सीमा नहीं है। चुनौतियों की भी कोई कमी नहीं है। रोमाॅंच और ग्लैमर से भरपूर है, आज की पत्रकारिता ।

 

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी द्वारा गांवों में अषिक्षा को दूर किया जायेगा। सूचना एवं संचार प्रोद्यौगिकी के माध्यम से निरक्षर गा्रम - वासियों को षिक्षा के महत्व तथा उपयोगिता की जानकारी प्रदान की जायेगी तथा साक्षर बनने के पे्ररित किया जा सकेगा, ताकि गांवों के विकास मेें वे महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सके। गांवों में कई षिक्षित बेरोजगार भी होते है। उन्हें गांवों में विभिन्न रोजगार के अवसर से संबंधित जानकारियां उपलब्ध नहीं हो पाती है और वे रोजगार के अवसर से वंचित रह जाते है।

 

ऐसे में सूचना एवं संचार प्रोद्यौगिकी के माध्यम से उन्हें विभिन्न रोजगार के अवसरों की जानकारी मिल जायेगी तथा वे रोजगार के अवसर का लाभ उठा पायेंगे।

 

गांवों में एक बड़ी समस्या है- जन स्वास्थ्य के प्रति चेतना का अभाव। आज भी गांवों में कई जानलेवा रोगों को दैविक प्रकोप समझा- जाता है तथा उसके इलाज में लापरवाही बरती जाती है। सूचना एवं संचार प्रोद्यौगिकी के द्वारा इन जानलेवा रोगों के लक्षण, सावधानियां एवं उपचार से संबंधित जानकारी ग्रामवासियों को उपलब्ध कराई जायेगी ताकि जानलेवा रोगों पर काबू पाया जा सके। सूचना एवं संचार प्रोद्योगिकी के माध्यम से जानलेवा रोगों के रोकथाम के लिए संचालित षासकीय कार्यक्रमों को भी ग्रामवासियों तक पहुॅचा कर जन स्वास्थ्य के प्रति चेतना जागृत की जायेगी, साथ ही साथ सरकार द्वारा संचालित विभिन्न स्वास्थ्य केन्द्रों की जानकारी उपलब्ध कराई जायेगी।

 

उद्देष्य:-

1.                 संचार से जुड़े व्यक्तियों की स्थिति एवं कार्यदषाओं का अध्ययन करना।

2.                 संचार का छ.ग. के युवाओं पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों का अध्ययन करना।

3.                 संचार का छ.ग. के युवाओं पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का       अध्ययन करना।

4.                 युवाओं के लिए आयोजित विभिन्न षासकीय योजनाओं सके प्रचार-प्रसार मे संचार की भूमिका का अध्ययन करना।

5.                 संचार का युवाओं के सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर प्रभाव का अध्ययन कराना।

 

 

परिकल्पनाएॅ:-

1.                 संचार का प्रभाव षहरी युवाओं की अपेक्षा ग्रामीण युवाओं पर कम/अधिक प्रभाव पड़ता है।

2.                 छ.ग. में संचार का प्रभाव युवाओं की अपेक्षा युवतियों पर कम पड़ता है।

3.                 जाॅजगीर-चाम्पा जिला के दूर दराज के ग्रामों तक जन संचार की पहुॅच हो चुकी है।

4.                 गांव-गांव के युवा जनसंचार का लाभ ले रहे है।

5.                 षासकीय योजनाओं को विषेश कर युवाओं के संबंधित योजनाओं को जन संचार युवाओं तक पहुॅचाने में सफल रहा है।

 

अध्ययन पद्धति:-

प्रस्तुत षोध पत्र मंे अन्वेशणात्मक पद्धति का प्रयोग किया गया है। अध्ययन हेतु जिला-जाॅजगीर के ग्राम-खोखरा के पचास युवाओं से साक्षात्कार के माध्यम से आंकड़ों का संकलन किया गया है।

 

मीडिया को समाज के लिए सकारात्मक एवं उपयोगी बनाने हेतु सुझाव:

1.                 जन संचार माघ्यमों की सफलता बहुत कुछ उचित प्रकार से नेतृत्व के विकास पर निर्भर करता है।

2.                 ग्रामीण क्षेत्रों व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी और अषिक्षा को दूर किया  जाए, ताकि ग्रामीण लोग जनसंचार माध्यम के महत्वों को समझें एवं साक्षरता का प्रचार-प्रसार किया जाए एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जनचेतना उत्पन्न की जाए।

3.                 ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात एवं तीव्रगामी संचार व्यवस्था, समाचार पत्र, नवीन तकनीकी ज्ञान, नवीन कौषल से संबंधित विशयों से उन्हें अवगत कराया जाए।

 

निश्कर्श:-

वर्तमान मं मीडिया एक सजग प्रहरी के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन कर रही है। वह अपने दायित्वों एवं अधिकारों को समझ रही है। देष समाज को ऊॅचा उठाने में अपना सक्रिय योगदान दे रही है, इसलिए देष की जनता का विष्वास जीत पा रही है। वह दिन दूर नहीं, जब मीडिया देष की गरीबी, षोशितों, पीड़ितों की समस्या को ईमानदारी से सामने लायेंगें एवं उनके अधिकारों के लिए संघर्श करेगी अच्छे गुणों से युक्त होकर साहस के साथ सच्चाई का चित्रण करते हुए सोने की चिड़िया भारत को हीरों का हार पहनायेगी। संक्षेप में कहा जा सकता है कि मीडिया का क्षेत्र, विशयवस्तु, अधिकार एवं कर्तव्य आज पहले से बहुत बढ़

चुकी है। भारतीय मीडिया वर्तमान में उस ऊॅचाई की ओर आरूढ़ हो रही है, जो विष्व के किसी भी देष की मीडिया से खबर ले सके ।

 

संचार माध्यमों के द्वारा पड़ने वाले उभय पक्ष के प्रभावों से हमें सीख लेना होगा, यदि हम अपनी भावी पीढी़ को सुख, समृद्ध, वैभवषाली, तकनीकि ज्ञान से परिपूर्ण एवं मानवता से परिपूर्ण बनाना चाहते है। तो हमें संचार माध्यमों की सहायता से नये क्षेत्रों जैसे खनिज -संसाधन, प्रजाति विकास, आधारभूत संरचना को भी महत्व प्रदान करना होगा, इसके माध्यम से 21वीें सदी में हम बेहतर समाज का गठन कर पायेंगे। इसके लिए संचार माध्यमों के दुरूपयोग को रोका जाना आवष्यक होगा।

 

कम्प्यूटर की खोज और सूचना प्रोद्योगिक का विकास 20 वीं षताब्दी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है प्रगति और विकास के साधन के रूप में सूचना प्रोद्योगिकी की भूमिका व्यापक रूप से स्वीकार की गई है। उम्मीद है कि प्रयोग से मानत्व को बड़े सामाजिक और आर्थिक लाभ होगे तथा विकास की प्रक्रिया में तेजी आयेगी।

 

REFERENCES:

1.       Agrawal, Hema, Society, Culture and mass Communication,     Sociology  of Journalist, new Delhi and Jaipur, Rajwat Pub.                1995.

2.       Abraham, Abu. Mediam is the mess mainstream. August 1985.

3ण् अवस्थी, डाॅ. षिवकुमार, रचना (पत्रिका) अंक 51,नवम्बर-    दिसम्बर, 2004, पृ. 38

4.     Barker, L. Larry, Communication Vibration, United State of         America  Prentice Hall, 1974.

5.  Caps,Many, Communication or Confliet, New Yark: Association Press 1960.6ण्    चतुर्वेदी, डाॅ. जगदीष्वर, दूरदर्षन और सा. विकास

7.     जैन, प्रो. रमेष, जनसंचार विष्वकोश (2007) नेषनल   पब्लिसिंग हाउस, जयपुर

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9.     राय, षषांक, कम्प्यूटर संचार सूचना, जनवरी- 2006

10. Rose, A.B. , The News paper Reader in India, Sociological          Vol.14 1966

11ण्    सोनी, डाॅ. सुधीर, इलेक्ट्राॅनिक मीडिया (2000) युनिवर्सिटी       पब्लिकेषन रायपुर।

12.  त्रिवेदी, डाॅ.सुषील एवं षुक्ल, षषिकांत, जनसंम्पर्क सिद्धांत और       व्यवहार पृ. 104

13.  Yas pal, A new Role for mass media, Communicator, Vol, XXI,   no. 3rd and 4th July, Oct 1986       

 

Received on 22.06.2013

Modified on 28.07.2013

Accepted on 25.10.2013

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Research J. Humanities and Social Sciences. 4(4): October-December,  2013, 599-602