महिला खिलाड़िय¨ं क¢ प्रति परिवार एवं समाज क¢ दृष्टिक¨ण का एक विशलेषण

 

कमलेश ग¨गिया1] हेमलता ब¨रकर2

1¨धार्थी, समाजशाó अध्ययनशाला, पं. रविशंकर  शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

2वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक, समाजशाó अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

 

प्रस्तावना

परिवार एक आधारभूत और सर्वव्यापी संस्था है। संस्कृति के सभी स्तरों में पारिवारिक संगठन पाया जाता है।1. विश्व के सभी समाजों में शिशु का जन्म और पालन पोषण का उत्तरदायित्व परिवार का ही होता है। शिशुओं को संस्कार देने और समाज के आचार, व्यवहार और नियमों में दीक्षित करने का दायित्व मुख्यतः परिवार का ही होता है। इसी परम्परा और नियम के द्वारा समाज की सांस्कृतिक विरासत और संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्वभाविक रूप से हस्तांतरित होती रहती है।2. किसी भी व्यक्ति के प्रति पारिवारिक और सामाजिक दृष्टिकोण उसकी जीवन शैली का निर्धारण करता है। पारिवारिक एवं सामाजिक दृष्किोण से उसकी समस्त गतिविधियां भी प्रभावित होती हैं। फिर वह पुरुष हो या महिला। जहां तक सवाल है महिलाओं का तो उनके प्रति पारिवारिक व सामाजिक दृष्टिकोण से उनकी पूरी जीवनशैली प्रभावित होती है। परिवार और समाज की महिलाओं के बारे में सोच, व्यवहार आदि से उनके भविष्य की दिशा भी तय होती है। भारतीय इतिहास के पन्ने इस बात के साक्षी हैं। वैदिक काल से लेकर मध्यकाल और आधुनिक काल तक महिलाओं की स्थिति एक सी नहीं रही है।

 

रमा सिंह (1988) के मुताबिक याज्ञवलक्य ने महिलाओं को अधिक सम्मान प्रदान किया है और स्त्री व पुरुष को क्षेत्र व बीज के समान कहा है। सोम देवता ने नारी को पवित्रता दी, गंधर्व ने मधुर वाणी और अग्नि से सब प्रकार से पवित्र होने की शक्ति दी। अतएव óियां सर्वत्र पवित्र होती हैं।3. श्रीमती स्कालास्तिका कुजूर ने वैदिक नारी के संबंध में अपने अध्ययन में लिखा है कि वैदिक काल में महिलाओं की असाधारण प्रतिष्ठा थी।4.  लेकिन इसके बाद मध्यकाल में हिंदू स्त्रियों की दशा प्राचीन भारत जैसी उच्च नहीं रही। आधुनिक काल में समय ने करवट बदली तो महिलाओं की स्थिति में भी परिवर्तन होने लगे। मौजूदा समय में महिलाएं पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्र से लेकर पुरुषों के दमखम वाले क्षेत्र खेल में भी अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं। यह पूरा विश्व जानता है कि एक समय ओलंपिक में महिलाओं का खेलना तो दूर खेल देखना भी वर्जित था।5.  समय के साथ-साथ कई बदलाव हुए और आज महिलाएं इस क्षेत्र में भारत का नाम राज्य से लेकर राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, एशिया, कॉमनवेल्थ और खेलों के महाकुंभ ओलंपिक तक में रोशन कर रही हैं। यह महिलाओं के प्रति परिवार और समाज की सोच में आए बदलाव का सुखद परिणाम है। 

 

अध्ययन का उद्देश्यः

महिला खिलाड़िय¨ं क¢ प्रति परिवार एवं समाज क¢ दृष्टिक¨ण का एक विशलेषण विषय पर अध्ययन का मूल उद्द्ेश्य खेल¨ं में हिस्सा लेने वाली महिला खिलाड़िय¨ं क¢ प्रति परिवार व समाज क¢ दृष्टिक¨ण का पता लगाना है।

 

साथ ही खेल क¢ क्षेत्र में महिलाअ¨ं क¨ मिलने वाली अभिप्रेरणा व परिवार तथा समाज से मिलने वाले प्र¨्साहन व सहय¨ग का पता लगाना है।

1.  खेल¨ं में हिस्सा लेने वाली महिला खिलाड़िय¨ं क¢ प्रति परिवार व समाज क¢ दृष्टिक¨ण का पता लगाना

2.  खेल¨ं में हिस्सा लेने वाली महिला खिलाड़ि़य¨ं क¨ इस क्षेत्र में मिलने वाली अभिप्रेरणा का पता लगाना

3.  महिला खिलाड़िय¨ं क¨ परिवार व समाज से मिलने वाले प्र¨त्साहन, सहय¨ग का पता लगाना

 

परिकल्पना: उपर¨क्त विषय पर निम्न परिकल्पना अनुमानित है:

1.  परिवार क¢ सहय¨ग की वजह से ही महिलाएं खेल¨ं में हिस्सा ले पाती हैं

2.  महिला खिलाड़िय¨ं क¨ समाज सम्मान की दृष्टि से देखता है

 

अध्ययन पद्धतिः

प्रस्तुत अध्ययन प्राथमिक ó¨¨ं पर आधारित है। तथ्य¨ं का संकलन साक्षात्कार अनुसूची उपकरण क¢ माध्यम से किया गया है। अध्ययन में रायपुर नगर की उन 195 महिला खिलाड़िय¨ं का दैव निदर्शन प्रविधि की लाटरी प्रणाली से चयन किया गया जिन्ह¨ंने अधिकृत रूप से अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ से सम्बद्ध अंतर्राष्ट्रीय खेल महासंघों, भारत सरकार से मान्यता प्राप्त भारतीय खेल महासंघों, भारत सरकार के खेल एवं युवा कल्याण मंत्रालय, छत्तीसगढ़ सरकार के खेल एवं युवा कल्याण विभाग तथा राज्य खेल संघों द्वारा आयोजित होने वाली विभिन्न राज्य, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में अपने जिले, छत्तीसगढ़ राज्य तथा देश का प्रतिनिधित्व किया। इस अध्ययन में असहभागी अवल¨कन द्वारा भी तथ्य¨ं क¢ संकलन का प्रयास किया गया। तथ्य¨ं क¢ संकलन में पूर्ण निष्पक्षता बरती गई।

 

परिणाम एवं संग्रहण:

1.  उत्तरदाताअ¨ं क¨ अभिप्रेरणा देने वाले ó¨

दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या से लेकर विभिन्न क्षेत्र¨ं में अभिप्रेरणा का विशेष महत्व ह¨ता है। खेल के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी के पीछे भी अभिप्रेरणा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  अध्ययनगत खिलाड़ियों को मिलने वाली अभिप्रेरणा को निम्न तालिका में दर्शाया गया है:

 

अध्ययनगत महिला खिलाड़ियों को अभिप्रेरणा देने वाले स्रोत से संबंधित उपर¨क्त तालिका क¢ विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि महिला खिलाड़िय¨ं क¨ सबसे ज्यादा 42.5 प्रतिशत मित्रों से, 37.5 प्रतिशत परिवार से और 20 प्रतिशत अभिप्रेरणा शिक्षण संस्था से मिलती है। उपरोक्त तालिका से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि महिला खिलाड़ियों को सबसे ज्यादा प्रोत्साहन उनकी मित्र मंडली से मिलता है जिससे वे खेल के क्षेत्र में कदम रखती हैं। मित्रों के बाद परिवार से खेल के क्षेत्र में प्रवेश करने की अभिप्रेरणा मिलती है। जहां तक सवाल है शिक्षण संस्थाओं से मिलने वाले प्रोत्साहन का तो स्पष्ट है कि प्रतिस्पर्धा क¢ इस द©र में स्कूल-कॉलेजों में खेल¨ं की तुलना में पढ़ाई को ज्यादा महत्व दिया जाता है। यही वजह है कि शिक्षण संस्था से महिला खिलाड़ियों को कम प्रोत्साहन मिला है।

 

2.  उत्तरदाताओं को परिवार से प्रोत्साहनः

किसी भी क्षेत्र में प्रगति के लिए परिवार के प्रोत्साहन की जरूरत सभी को होती है। फिर वह खेल का क्षेत्र ही क्यों न हो जिसमें महिलाएं बिना परिवार के प्रोत्साहन के बेहतर भागीदारी नहीं निभा सकतीं। अध्ययनगत महिला खिलाड़ियों में सभी ने एक स्वर से परिवार से मिलने वाले प्रोत्साहन को स्वीकार किया है। स्पष्ट है कि परिवार के पूर्ण सहयोग और उत्साहवर्धन की वजह से महिलाएं खेलों में भागीदारी कर रही हैं।

 

3.  उत्तदाताअ¨ं क¨ समाज से मिलने वाला प्र¨त्साहनः

प्रोत्साहन एक प्रकार से अभिप्रेरणा है जिससे प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार प्रभावित होता है। समाज अपने सदस्यों को प्रशंसनीय कार्य करने पर पुरस्कार देकर प्रोत्साहित करता है। प्रोत्साहन से व्यक्ति के आगे बढ़ने की क्षमता में वृद्धि होती है। खेल के क्षेत्र में भी महिला खिलाड़ियों को समाज से मिलने वाले प्रोत्साहन की जरूरत होती है जिससे वे इस क्षेत्र में आने वाली हर चुनौतियों को स्वीकार कर सकें और आगे बढ़ सकें। अध्ययनगत उत्तरदाताओं को समाज से मिलने वाले प्रोत्साहन को निम्न तालिका में दर्शाया गया है:

 

अध्ययनगत महिला खिलाड़ियों को समाज से मिलने वाले प्रोत्साहन से स्पष्ट है कि  75 प्रतिशत उत्तरदाताओं को समाज से खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। 25 प्रतिशत उत्तरदाताओं को प्रोत्साहन नहीं मिलता। स्पष्ट है कि समाज महिला खिलाड़ियों की भागीदारी को तवज्जो देता है। खेल के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को लेकर मौजूदा परिवेश में परिवार के साथ-साथ समाज की भो सोच में बदलाव आया है। यही वजह है कि महिलाओं की खेलों में भागीदारी बढ़ाने के लिए ही समाज महिला खिलाड़ियों की खेल उपलब्धियों की प्रशंसा करता है जिससे महिलाओं को प्रोत्साहन मिल सके और वे इस क्षेत्र में नाम रोशन कर सकें।

 

4.  उत्तरदाताओं को समाज से मिलने वाले प्रोत्साहन का स्वरूपः

वह खेल का क्षेत्र हो या अन्य कोई, समाज से प्रोत्साहन मिलने पर उस क्षेत्र में व्यक्ति और भी ज्यादा बेहतर परिणाम देने के प्रयास करता है। समाज से मिलने वाले प्रोत्साहन का काफी महत्व है। अध्ययनगत महिला खिलाड़िय़ों को समाज से मिलने वाले प्रोत्साहन के स्वरूप को निम्न तालिका में दर्शाया गया हैः

 

अध्ययनगत महिला खिलाड़िय़ों को समाज से मिलने वाले प्रोत्साहन के स्वरूप का उपरोक्त तालिका से विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है कि महिला खिलाडिय़ों को सर्वाधिक 66.6 प्रतिशत खेल¨ं में उनकी भागीदारी पर प्रशंसा करके समाज प्रोत्साहित करता है। पुरस्कार के स्वरूप का प्रतिशत 30.7 और खेल मैदान की व्यवस्था का प्रतिशत सबसे कम 2.7 है। खेल मैदान का अभाव सामान्य है अ©र खेल क¢ मैदान की व्यवस्था समाज द्वारा संभव प्रतीत नहीं ह¨ती।

 

5.  उत्तरदाताओं के खेल उपलब्धियों की पड़ोसियों द्वारा प्रशंसाः

किसी भी बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में परिवार, शिक्षण संस्थाओं और मित्रों के अलावा पड़ोस की भी अहम भूमिका रहती है। पड़ोसियों की प्रशंसा से किसी भी क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए उत्साह का संचार होता है। व्यक्तित्व के विकास में पड़ोस की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। इस अध्ययन में महिला खिलाड़िय¨ं को पड़ोसियों से मिलने वाली प्रशंसा की जानकारी हासिल करने का भी प्रयास किया गया है। अध्ययनगत महिला खिलाड़िय¨ं को पड़ोसियों से मिलने वाली प्रशंसा को निम्न तालिका के माध्यम से स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है:

 

उपरोक्त तालिका के आधार पर स्पष्ट है कि 92 प्रतिशत पड़ोसी महिला खिलाडिय़ों की खेल उपलब्धियों की प्रशंसा करते हैं जबकि 8 प्रतिशत पड़ोसी महिला खिलाडिय़ों के खेल उपलब्धियों की प्रशंसा नहीं करते। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि समाजीकरण का अहम अभिकरण पड़ोस खेल के क्षेत्र में महिला खिलाडिय़ों की भागीदारी को प्रशंसा के माध्यम से बढ़ावा देकर प्रोत्साहित कर रहा है। यहां यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मौजूदा परिवेश में खेल में भी महिलाएं बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं जिसे समाज में भी प्रशंसनीय माना जा रहा है।

 

6.  उत्तरदाताओं के खेल उपलब्धियों की प्रशंसा न करने का कारणः

अध्ययनगत उत्तरदाताओं की पड़ोसियों द्वारा प्रशंसा न करने का एकमात्र कारण सभी ने लिंग-भेद बताया है। हालांकि अध्ययन के दौरान इन उत्तरदाताओं ने इस बात को सिरे से नकार दिया था कि उनके परिवार में किसी तरह का भेद-भाव किया जाता है लेकिन जब वे खेल मैदान के लिए घर से बाहर निकलते हैं तो उन्हें पड़ोसियों द्वारा कमेंट्स भी सुनने को मिलते हैं। कुछ ने यह बताया कि जिन पड़ोसियों द्वारा प्रशंसा नहीं की जाती उनके परिवार का कोई भी सदस्य खिलाड़ी नहीं है। जाहिर है कि ऐसे पड़¨सी अथवा परिवार जहां खेल¨ं क¨ तवज्ज¨ नहीं मिलती वे दूसरे परिवार या पड¨़स क¢ नागरिक¨ं की महिलाअ¨ं क¨ खेल क¢ क्षेत्र में देखना पसंद नहीं करते। कहा जा सकता है कि समाज में लिंग-भेद की भावना मौजूदा परिवेश में भी जीवित है जबकि इसे विज्ञान की प्रगति का चरम युग माना जा रहा है।         

निष्कर्ष एवं सुझाव   ः

महिला खिलाड़िय¨ं क¢ प्रति परिवार एवं समाज क¢ दृष्टिक¨ण का एक विषलेषणविषय पर किए गए अध्ययन क¢ ©रान प्राप्त प्राथमिक तथ्य¨ं एवं आंकड़¨ं क¢ संकलन क¢ पश्चात किए गए विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्ष एवं सुझाव¨ं क¨ निम्न बिंदुअ¨ं में दर्शाया गया है:

1.  अध्ययनगत महिला खिलाड़िय¨ं क¨ खेल के प्रति अभिप्रेरित करने वाले सर्वाधिक मित्र हैं। मित्र¨ ंक¢ पश्चात परिवार अ©र फिर शिक्षण संस्था का स्थान आता है। खेल क¢ माध्यम से लैंगिंक समानता क¨ बढ़ावा देने क¢ मामले में शिक्षण संस्थाएं मित्र¨ं व परिवार की तुलना में पीछे हैं जबकि शिक्षण संस्थाअ¨ं की भूमिका अहम ह¨नी चाहिए। शिक्षण संस्थाअ¨ं क¨ इस दिशा में विशेष पहल करने की जरूरत है।

 

2.  अध्ययनगत सभी उत्तरदाताओं ने खेल के लिए परिवार का पूर्ण सहयोग मिलने तथा खेल स्पर्धाओं में हिस्सा लेने के लिए ग्राम से बाहर जाने की अनुमति देने की बात स्वीकार की है। जाहिर है कि खेलों में महिलाओं की भागीदारी को परिवार से पूर्ण सहयोग मिल रहा है जो उनकी अच्चे स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता को भी दर्शाते हैं।

 

परिवार के अलावा समाज से मिलने वाले प्रोत्साहन की जानकारी लेने का प्रयास किया गया जिसके तहत सर्वाधिक 75 प्रतिशत उत्तरदाताओं को समाज से प्रोत्साहन मिला और 25 प्रतिशत को समाज से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। खेलों में महिलाओं की भागीदारी को परिवार के साथ-साथ समाज से भी प्रोत्साहन मिल रहा है। खेल¨ं क¢ माध्यम से लैंगिक समानता क¨ बढ़ावा देने क¢ लिए परिवार व समाज विशेष क¨ सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जाना चाहिए।

 

3.  खेल¨ं में महिलाअ¨ं की भागीदारी क¨ लेकर समाज की स¨च में बदलाव जरूर आया है। महिला खिलाड़िय¨ं की खेल उपलब्धिय¨ं क¨ लेकर पड़¨सिय¨ं द्वारा की गई प्रशंसा का ग्राफ काफी ऊंचा है। जिन पड़¨सिय¨ं ने प्रशंसा नहीं की उनकी संख्या नगण्य है अ©र इसकी वजह लिंग-भेद है। मसलन समाज में आंशिक रूप से ही सही, ऐसे ल¨ग भी है ज¨ पुरुष¨ं क¢ दमखम वाले खेल क¢ क्षेत्र में महिलाअ¨ं की भागीदारी क¨ उचित नहीं मानते। लैंगिक समानता क¢ संबंध में खेल काफी बेहतर माध्यम बन सकते हैं अ©र इसक¢ लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

संदर्भः

1.  दुबे, श्यामाचारण, मानव अ©र संस्कृति, राजकमल प्रकाशन प्रा. लि., नई दिल्ली, 1993, पृष्ठ-101.

2   वेबसाइट- भारतडिस्कवरीडाॅटअ¨रजी, भारतक¨श.

3.  सिंह, रमा., ”शक्षित हिंदू महिलाएं एवं धर्म”, बी.आर. पब्लिशिंग कार्पाेरेशन, नई दिल्ली, 1998, पृष्ठ-51.

4.  कुजूर, स्कालास्तिका., ”वैदिक एवं धर्मशाóीय साहित्य में नारी”, बनारस, 1982, पृष्ठ-334.

5.  भल्ला, अजय., ¨लंपिक (776-1938).  

6.  वेबसाइट-वीकिपीडिया.

7.  दीक्षित, सुरेश., ”खेल मनोविज्ञान”, स्पोट्र्स पब्लिकेशन, नई दिल्ली, 2006, पृष्ठ-107.

8.  वार्षिक-प्रशासकीय प्रतिवेदन-2010-11, छत्तीसगढ़ शासन, खेल एवं युवा कल्याण विभाग, 2010, पृष्ठ-29

Received on 31.01.2015

Modified on 16.02.2015

Accepted on 26.02.2015

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Research J. Humanities and Social Sciences. 6(1): January-March, 2015, 29-32