ग्रामीण महिलाओं के बेरोजगारी उन्मूलन में मनरेगा योजना की भूमिका (छत्तीसगढ राज्य के झिरिया ग्राम पंचायत के सेदर्भ में)
जवाहर लाल तिवारी
वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक, समाजशास्त्र अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग) -492010
परम्परागत रूप से ग्रामीण महिलायें बेरोजगारी की सामना करती रही है। लम्बे समय तक उसका कार्य घर के इर्द-गीर्द ही रहा है जैसे- बच्चो का देख-भाल, रसोई का कार्य, घर का कार्य, कृषि में पति का सहयोग करना इत्यादि। चूंकि परिवार चलाने के लिए महिला का इस कार्य का होना भी आवश्यक है, किन्तु इन कार्याे से महिलायें पुरूषों को कार्य करने में एक तरह का केवल सहयोग ही किया है इससे इनको कभी आय प्राप्त नहीं हुआ बल्कि वह पति पर निर्भर हो कर रह गयी और चाहकर भी अपनी इच्छा के अनुरूप आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पायी है। ग्रामीण महिलाओं की यह स्थिति भारत में आज भी व्याप्त ळें
स्वाधीनता के पश्चात् ग्रामीण विकास हेतु प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रयास किया जाना प्रारम्भ हुआ और ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में राष्ट््रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 पारित हुआ तथा 2 फरवरी 2006 को अधिसूचना जारी किया गया और प्रारभिक चरण में यह योजना देश के 200 सर्वाधिक पिछडे जिलों में लागू किया गया । इसके पश्चात देश के संम्पूर्ण राज्यों में लागू किया गया है। इस योजना में ग्रामीण मजदूरों के परिवार को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने की गारंटी दी गई है। योजना में महिलाओं को विशेष प्राथमिकता दिया गया है । योजना में 33 प्रतिशत महिला मजदूरों द्वारा रोजगार की मांग पर ही योजना का क्रियानवयंन किया जायेगा । ग्रामीण महिलाओं में मनरेगा योजना के प्रति बडी जागरूकता देखी जा सकती है।
छत्तीसगढ राज्य में प्रथम चरण में राज्य के 11 जिलों में क्रियान्वित किया गया तथा योजना के प्रारंभिक वर्ष 2006-07 में ही 1,65,245 मजदूरों द्वारा रोजगार की मांग की गई जिसमें 1,62,480 मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करायी गयी जो अब तक बेरोजगार उपलब्ध करने की दिशा में एक अभूतपूर्व प्रयास कही जा सकती है। अध्ययनगत झिरिया ग्राम पंचायत में भी इसी चरण में यह योजना लागू किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन बेमेतरा जिले के बेमेतरा विकासखण्ड के ग्राम पंचायत झिरिया के महिला मजदूरों के बेरोजगारी उन्मूलन करने में मनरेगा योजना कहां तक सहायक हुई है इस पर शोधार्थी द्वारा अध्ययन करने का प्रयास किया गया है।
शोध अध्ययन का उद्वेश्य
गांव की बेरोजगारी दूर करने में तथा ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने में यह योजना महत्वपूर्ण साबित हुआ है। शोध अध्ययन में छत्तीसगढ राज्य के ग्राम पंचायत झिरिया के ग्रामीण मजदूरो के बेरोजगारी की समस्या को दूर करने में कहां तक सहायक हुई है तथा योजना में किये गये प्रावधानों का ग्रामीण मजदूर किस हद तक लाभ उठा पा रहे है और विशेष कर महिला मजदूरों के सामाजिक-आर्थिक स्तर को उठाने में कहां तक सफल हुई है इसे ज्ञात करने का प्रयास किया गया है ।
अध्ययन पद्वति
शोध अध्ययन छत्तीसगढ राज्य के बेमेतरा जिला के बेमेतरा विकासखण्ड के ग्राम पंचायत झिरिया पर आधारित है । बेमेतरा विकासखण्ड से 25 कि.मी. की दूरी पर ग्राम पंचायत झिरिया स्थित है। विकासखण्ड में कुल 103 ग्राम पंचायत है तथा ग्रामों की संख्या 186 है। ग्राम पंचायत की कुल अबादी 2250 है, जिसमें महिलाओं की आबादी 1110 है। अध्ययनगत झिरिया ग्राम की कुल जनसंख्या 1521 है।
ग्राम पंचायत में वर्ष 2013-14 में कुल 134 महिला मजदूर मनरेगा योजना में पंजीबद्व है , इनमें से अध्ययन हेतु 120 महिला मजदूरों का उद्वेश्पूर्ण निदर्शन द्वारा उत्तरदाता का चयन किया गया है।
चयनित उत्तरदाताओं से साक्षात्कार अनुसूची एवं अवलोकन प्रविधि के द्वारा तथ्यों का संकलन किया गया है।
उत्तरदाताओं का अजीविका के परम्परागत साधन
सामान्यतः गांव के लोगों की आजीविका का साधन कृषि होती है जिनके पास कृषि भूमि पर्याप्त होती है वे वर्ष भर इसी कार्य में लगे होते है तथा जिनके पास खेती भूमि कम या बिल्कुल नहीं होती है वे बड़े किसानो के खेत में मजदूरी करके और समय मिलने पर अन्य कार्य करके आजीविका चलाते है। शोध अध्ययन में अध्ययनगत उत्तरदाताओं के जीविका के साधन को ज्ञात करने का प्रयास किया गया है जो निम्न है -
उत्तरदाताओं के अजीविका के परम्परागम साधन संबंधी उपरोक्त तालिका से ज्ञात होता है कि अधिकतम 86.7 प्रतिशत उत्तरदाता कृषि मजदूर, 10.8 प्रतिशत कृषि तथा शेष 2.5 प्रतिशत उत्तादाता दस्तकारी इत्यादि आजीविका के परम्परागत साधन से अपनी जीविका चलाते है ।
कृषि कार्य से वर्ष भर रोजगार मिलना:-
अध्ययन में अध्ययनगत उन उत्तरदाताओं से जो कृषि कार्य करते है उनसे यह भी ज्ञात करने का प्रयास किया गया कि उन्हें कृषि कार्य से वर्ष भर रोजगार मिलता है अथवा नहीं ? इससे संबंधित जानकारी तालिका क्रमांक 1.2 पर दर्शाया गया है
कृषि कार्य से वर्ष भर रोजगार मिलने संबंधी उपरोक्त तालिका से ज्ञात होता है कि 91.5 प्रतिशत उत्तरदाताओं को कृषि कार्य से वर्ष भर रोजगार नहीं मिलता है जबकि केवल 8.5 प्रतिशत उत्तरदाता को रोजगार मिलता है।
उपरोक्त तालिका के संदर्भ में अध्ययन में यह पाया गया कि जिन उत्तरदाताओं के पास पर्याप्त कृषि भूमि नहीं है तथा जिनके पास कृषि भूमि बिल्कुल नही है उन्हें बेरोजगारी की समस्या का सामना करना पडता है और उन्हें वर्ष भर आजीविका के लिए दुसरों पर निर्भर रहना पडता है। इन परिवारों के द्वारा जीवन के मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरों की खेतों पर मजदूर करते थे या शहरों की ओर पलायन करते थे ? मनरेगा योजना क्रियान्वयन से इनकी इस प्रवृत्ति पर कमी आई है।
सौ दिन का रोजगार मिलना:-
ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांस महिलायें खेती कार्य से जुडे होते है इन्हें खेती कार्य में 5-7 माह की रोजगार मिलती है शेष माह बेरोजगार रहते है। मनरेगा योजना कार्ड धारी परिवार को 100 दिन का रोजगार मिलने की गारंटी प्रदान करता है । उत्तरदाताओं से यह जानने का प्रयास किया गया कि उन्हें सौ दिन का रोजगार मिला अथवा नहीं ? इस संबंध में जानने का प्रयास किया गया है।
उपरोक्त तालिका से ज्ञात होता है सर्वाधिक 74.9 प्रतिशत उत्तरदाताओं को सौ दिन का रोजगार मिला जबकि 25.1 प्रतिशत उत्तरदाताओं को सौ दिन का रोजगार नहीं मिला है ।
बेरोजगारी भत्ता मिलना
मनरेगा योजना में सौ दिन का रोजगार मिलने की गारंटी का प्रावधान है उत्तरदाताओं को 100 दिन का रोजगार मिला अथवा नहीं यह ज्ञात करने का प्रयास किया गया है कि जितने दिन का उन्हें रोजगार नहीं मिला उतने दिन का बेरोजगारी भत्ता मिला अथवा नही ? संकलित तथ्य से ज्ञात हुआ कि शतप्रतिशत उततरदाता को बेरोजगारी भत्ता नहीं मिला है ।
अध्ययन से ज्ञात हुआ कि शतप्रतिशत उत्तरदाताओं द्वारा बेरोजगारी भत्ता हेतु आवेदन नहीं किया गया है, इसका कारण यह देखा गया कि मजदूरो में योजना के प्रति जानकारी का अभाव और प्रक्रिया का जटील होना तथा इनमें व्याप्त अशिक्षा का होना है।
योजना से सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होना
अध्ययन में उन उत्तरदाताओं से जिन्हें 100 दिन का रोजगार रोजगार मिला है उनसे यह भी जानने का प्रयास किया गया कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है या नहीं ? प्राप्त तथ्यों से ज्ञात हुआ कि शतप्रतिशत उत्तरदाताओं के सामाजिक- आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के संबंध में अध्ययन में यह देखा गया कि सुधार उन परिवारों में अधिक दिखलायी पड़ता है जो आकार में छोटे और एकाकी परिवार है । एैसे परिवार में पति-पत्नी और 2 या 4 बच्चे है इन परिवारों में पति-पत्नी दोनो के रोजगार कार्ड होने तथा दोनों के काम पर जाने से इन्हें अच्छी आय हो जाती है और प्राप्त आय से परिवार और बाल-बच्चों के आवश्यकताओं को सहज पूरा कर लिया जाता है। एैसे परिवार के लिये 100 दिन का रोजगार कारगर सिद्व हो रही है।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होने का स्वरूप
योजना जब हितग्राहियों के आवश्यकता के अनुरूप होती है तो इसका प्रभाव हितग्राहियों पर अवश्य पडता है और उसका परिणाम परिवार, समाज, गांव में स्पष्ट दिखायी देने लगते है। मनरेगा योजना से गांव, परिवार और महिला मजदूरों में सामाजिक-आर्थिक खुसहाली को देखा जा सकता है। उत्तरदाताओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के स्वरूप को जानने का प्रयास किया गया है।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार संबंधी उपरोक्त तालिका से ज्ञात होता है कि अधिकतम 48.2 प्रतिशत उत्तरदाता के खान-पान व रहन-सहन में, 25.9 प्रतिशत के वस्त्राभूषण में, 14.8 प्रतिशत के शिक्षा दिलाने में तथा 11.1 प्रतिशत उत्तदाताओं आय की बचत करने से सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
इस संदर्भ में अध्ययन से यह पाया गया कि अध्ययनगत परिवार में शहरों की ओर पलायन करना बन्द हो गया है तथा मनरेगा योजना से खाली होने पर घर का कार्य करते है इस प्रकार इनका जीवन एक प्रकार की स्थिरता और उद्वेश्य-परक हो गई है।
निष्कर्ष
अध्ययन के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ग्रामीण महिओं के बेरोजगारी दूर करने में महात्मा गांधी राष्ट््रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को एक सफल योजना कही जा सकती है । इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि गांव की अधिकांश महिलायंे निरक्षर होती है तथा सरकार के अन्य किसी योजना जिसमें शिक्षा की आवश्वयकता हो एैसी योजनाओं से लाभा नहीं ले पाते थे जिन्हें मनरेगा योजना रोजगार से जोड़ा है। मनरेगा योजना इन्हें स्थानीय स्तर पर ही रोजगार उपलब्ध करा रही है जिससे रोजगार से प्राप्त धन परिवहन, मकान किराया, बिजली बिल इत्यादि पर खर्च न होकर सीधें इनके रहन-सहन, खान-पान, पहनावे, आर्थिक बचत करने, शिक्षा और आवश्यकतों की पूर्ति करने में अर्जित धन व्यय कर रहे है जिससे इनके जीवन जीने के तरीकों में बदलाव प्रत्यक्ष परिलक्षित हो रहे है।
योजना से गांव के पलायन करने वाले परिवार में बूजुर्गो की स्थिति अत्यन्त खराब हो जाती थी क्योंकि उसे देखने वाले परिवार के सभी सदस्य शहरों में मजदूरी करने चले जाते थे, इससे बूजुर्गो की देख-भाल नहीं हो पाती थी और कई बार वह रोगग्रस्त हो जाते थे जिससे मजदूर को बीच में काम छौडकर गांव वापस आना पड़ता था तथा वृद्वों का देखभाल समय पर नहीं हो पाती थी और परिवार के वृद्व असहाय हो जाते थे, इस स्थिति में सुधार हुआ है।
महिलाये पूर्व में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पति पर निर्भर रहती थी। परम्परागत इस मान्यता में परिवर्तन आये है और वर्तमान में महिला मजदूर का अपना पृथक खाता से मजदूरी भूगतान की व्यवस्था होने से उसके हाथ में भी रूपये आने लगे है वह अपनी और बच्चों की आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिये आज स्वंय खरीदी करने की क्षमता प्राप्त करके वस्तुओं का क्रय कर रही है । यह इस बात का सूचक है कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में परिवर्तन आया है।
सुझाव
मनरेगा योजना में कुछ कमियां है इसकों दूर करने के लिए अध्ययनकर्ता द्वारा निम्नांकित सुझाव प्रस्तुत किया गया है-
1. बेरोजगारी भत्ता के भूगतान में सरकारी या संस्था के कर्मचारियों की जवाबदेही सुनिश्चित हो । 2. मनरेगा योजना को राजनीतिक दायरे से उपर रखकर क्रियान्वित करना होगा ताकि गांव के सभी जरूरतमंद लोगों को रोजगार मिल सके । इन सुझाव को ध्यान में रखकर योजना को क्रियान्वित किया जाये तो निश्चित ही महात्मा गांधी राष्ट््रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा एवं उनमें आत्मनिर्भरता की भावना विकसीत होगा।
संदर्भ
1. जी.आर.मदन, परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र, विवेक प्रकाशन, जवाहर नगर, दिल्ली, 2010.
2. सचदेव डी.आर., भारत में समाज कल्याण प्रशासन, किताब महल इल्हाबाद, 2003.
3. शर्मा, मनीष कुमार, महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता, सिविल सर्विस स्पेशल, रिसर्च ड््राइजेष्ट, वेल्यूम ईशूज, जुलाई 2007.
4. लवानियां वासुदेव, राष्टृ्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम, कुरूक्षेत्र, वर्ष 52,अंकः7, मई 2006.
Received on 12.04.2015
Revised on 08.05.2015
Accepted on 17.06.2015
© A&V Publication all right reserved
Research J. Humanities and Social Sciences. 6(2): April-June, 2015, 97-100