छत्तीसगढ. के रायगढ़ जिले क¢ धरमजयगढ. क्षे़त्र के गा्रमों में हाथियों के आक्रमण का धार्मिक विश्वास एवं क्रियाओं का प्रभाव
जितेन्द्र कुमार प्रेमी
वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक, मानवविज्ञान अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय,रायपुर (छ.ग) -492010
सार-संक्षेप
जंगलो की असमानता और जंगलों में अतिक्रमण और विकासात्मक गतिविधिया उद्योग उत्धनन,क्षेत्र, बांध इत्यादि के कारण हाथीयों के प्राकृतिक आवास का क्षरण एवं संकुचन होते जा रहा है ये सारी गतिविधिया हाथीयों के लम्बी क्षेत्र तक के आवाजाहि को निषेधित कर रहा है। पड़ोसि राज्यों के जंगलो में गंभीर क्षति होने के फलस्वरूप हार्थी अपना मौलिक रास्ता से भटकर छ.ग. की उन्मुक्त हो गये वर्तमान में पाॅच वन मंडल कोरबा, राजगढ़, धरमजयगढ़, जसपुर, सरगुजा जैसे पाॅच वन मंडल मानव और हाथीयों के बीच संघर्षो का सामना कर रहे है(सिंग 2002)। अध्ययन का उद्देश्य धरमजयगढ. क्षे़त्र के गा्रमों में हाथियों के आक्रमण से प्रभावित लोगो के धार्मीक विश्वासो एवं क्रियाओं पर हुए प्रभावो का आकलन करना। उददेश्यों की पूर्ति के लिए आॅंकडों के प्राप्ति हेतु संरचित साक्षात्कार अनुसूची का निर्माण किया जिसमें कुल 135 प्रश्न थे गहन साक्षात्कार संरचित अनुसूची के द्वारा तैयार किये गये संरचित अनुसूची के द्वारा चयनित परिवारों के मुखियों को पहली प्राथमिकता देते हुए उनसे साक्षात्कार के द्वारा उनसे आॅंकडे़ संग्रहित किए गए। हाथियों के आक्रमण से पूर्व तथा हाथियों के आक्रमण पश्चात टोटम चिन्ह में कोई परिर्वन नही हुआ है। आपदा के पश्चात उनकी देवी-देवता में कोई परिवर्तन नही हुआ है, इनके वर्तमान के देवी-देवता डिहारिन, गौरारानी, बेनियारानी, देवगुड़ी, आमली टिकली , कानेशबरिन, आदि है । परन्तु धार्मिक स्वच्छंदता में प्रभाव देखा गया है जिसके कारण पहले की आपेक्षा वर्तमान में कोई भी व्यक्ति अकेले पूजा पाठ करने के लिए ग्राम के बाहर स्थिति देवी देवता की पूजा पाठ करने अकेले नही जा सकता बल्कि वे समूह में जाते है।
कुंजी शब्द - छत्तीसगढ., रायगढ,़ धरमजयगढ., हाथि ,आक्रमण, धार्मिक विश्वास एवं क्रिया, प्रभाव
एशियाई हाथी (एलिफर्स मैक्सीमस ) का वितरण सम्पूर्ण भारतीय प्रायद्वीप मे पाया जाता है हालाकि जंगलो की असमानता और जंगलों में अतिक्रमण और विकासात्मक गतिविधिया उद्योग उत्धनन,क्षेत्र, बांध इत्यादि के कारण हाथीयों के प्राकृतिक आवास का क्षरण एवं संकुचन होते जा रहा है ये सारी गतिविधिया हाथीयों के लम्बी क्षेत्र तक के आवाजाहि को निषेधित कर रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप में भारत के चार क्षेत्रो में सिमट गये है। उत्तर के उत्तराचल और उत्तर प्रदेश के कुछ छोटा भाग दक्षिण के कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के कुछ छोटा भाग पूर्व में झारखंड और उड़िसा उत्तर पूर्व में असम और अरूणाचलप्रदेश, मिजोरम, मेघालय
एनन (2001) के अनुसार पूर्वी भारत के करीब 2500 हजार हार्थी मौंजूद है इनमें से इन हार्थी के कुछ समुह छ.ग. में प्रवाशित हो गये है और यही मानव और हाथीयों के बीच संघर्ष का वर्तमान में प्रमुख कारण है पिछले कुछ दर्शको के दौरान झारखंड और उड़िसा के हाथीयों के पर्यावास पर अवैधानिक कटाई अतिक्रमण औद्योगिकरण एवं खनिज उत्खनाने के कारण विचारणीय छती हुई है( चैधरी एवं सिंग 1999, सिंग 2000)।
हाथीयो के पर्यावास में इस तरह के गुणात्मक क्षरण का प्रभाव यह हुआ है कि ये उन छोटे और कम घने जंगलों को छोड़कर छ.ग. के घने जंगलों में प्रस्थान कर गये और यही छ.ग. में हाथी के अतिक्रमण का मुख्य कारण है। सिंग 2002 फोर्सीथ 1889 के अनुसार छ.ग. के उत्तरीय भाग हाथीयों का सामान्यतः एक घर माना जाता रहा है। हालाकिं 20वी शताब्दी में इस क्षेत्र में इसकी संख्या कम होने लगी (कृष्णन 1972 ) हाॅल में 1988 के समय झारखंड से हाथीयों का प्रवासन छ.ग. की ओर हुआ क्योकि झारखंड में उत्खनन के द्वारा जंगलों की वनस्पतियों का ज्यादातर नुकसान हुआ है इसी कारण से इनके प्रवासन में वास्तविक रास्ते से भटकर छ.ग. के घने वनों में आ गये है 1993 में म.प्र. सरकार ने 10 हार्थीयों को पकड़कर उन्हे वन में सुरक्षित छोड़ दिया था इस कार्य के दो वर्ष पश्चात हाथीयों के समूह छ.ग. में प्रवेश करने लगे यहा दो हजार आते जाते मानव और संघर्ष में बदल गये तब से यह समस्या दिनो दिन बढ़ती जा रही है।
छ.ग. का वर्तमान संख्या जो कि जंगलो की उन क्षेत्रों में जहा हाथीयों की समस्या है वहा सदियो से रहते आ रहे है किन्तु उन्होने कभी हाथीयों के आक्रमण का सामना नही किया था और दुर्धटना ग्रस्त कभी-कभी हाथीयो से सामना हो जाता था तो बिना किसी योजना के प्रभावी ढंग से उन्हे जंगलों में भेजने में सफल होते थे लेकिन पड़ोसि राज्यों के जंगलो में गंभीर क्षति होने के फलस्वरूप हार्थी अपना मौलिक रास्ता से भटकर छ.ग. की उन्मुक्त हो गये वर्तमान में पाॅच वन मंडल कोरबा, राजगढ़, धरमजयगढ़, जसपुर, सरगुजा जैसे पाॅच वन मंडल मानव और हाथीयों के बीच संघर्षो का सामना कर रहे है(सिंग 2002)
अध्ययन का उद्देश्य
धरमजयगढ.क्षे़त्र के गा्रमों में हाथियों के आक्रमण से प्रभावित लोगो के धार्मीक विश्वासो एवं क्रियाओं पर हुए प्रभावो का आकलन करना ।
प्रविधियां
अध्ययनीत समूह:-(अ) बिरहोर (ब) उराव(स) मांझी (द) कवर
वर्तमान अध्ययन के उददेश्य की पूर्ति हेतु छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ विकासखंड के निम्न गाॅंवों का चयन उददेश्य मूलक निदर्शन पद्धति के द्वारा किया गया तथापि उसके पश्चात चयनित ग्रामों के परिवारों का चयन सामान्य दैव निदर्शन प़द्धति के द्वारा किया गया है इस सामान्य दैव निदर्शन प़द्धति के द्वारा सौ परिवारों का चयन किया गया है। वर्तमान शोध के उददेश्यों की पूर्ति के लिए आॅंकडों के प्राप्ति हेतु संरचित साक्षात्कार अनुसूची का निर्माण किया जिसमें कुल 135 प्रश्न थे गहन साक्षात्कार संरचित अनुसूची के द्वारा तैयार किये गये संरचित अनुसूची के द्वारा चयनित परिवारों के मुखियों को पहली प्राथमिकता देते हुए उनसे साक्षात्कार के द्वारा उनसे आॅंकडे़ संग्रहित किए गए उनकी अनुपस्थिति में घर में उपलब्ध परिवार के व्यस्क सदस्य जैसे -मुखिया की पत्नी पुत्री पुत्र बहु इत्यादि से भी आॅंकड़े प्राप्त किए गये है।साक्षात्कार संरचित अनुसूची से प्राप्त आॅंकड़ो के सत्यापन के लिए प्रभावित अलग अलग परिवारों के सदस्यों को एक साथ बैठाकर साक्षात्कार निर्देशिका के द्वारा समूह वार्ता कर नये तथ्य एवं आॅंकड़ों की प्राप्ति की गई है।
ऐथिकल मुद्दे
विषय से संबंधित समस्त सूचनादाताओ से सूचना प्राप्त करने से पूर्व उनसे लिखित में सहमति प्राप्त की गई है इसके अलावा सूचना एवं आकड़े प्राप्त करने के पूर्व अध्ययन के उद्देश्य के संबंध में तथा उनसे पुछे जाने वाले प्रश्नो के संबंध में मैने सुचनाए दी औीर इस बाबत् लिखित में शपथ भी प्रस्तुत किया।
हाथियों के आक्रमण का टोटम संबंधित विश्वास एवं क्रियाओं पर प्रभाव
टोटम संबंधित विश्वास एवं क्रियाओं पर कोई प्रभाव नही दिखा है आपदा के पूर्व टोटम संबंधित जो विश्वास एवं क्रियाए होती है वही क्रियाए आपदा के पश्चात भी होती है।
हाथियों के आक्रमण को टोटम संबंधित मान्यताओं की प्रभाव की स्थिति
टोटम संबंधित मान्यताओं पर किसी भी प्रकार का प्रभाव देखने को नही मिला है वर्तमान समय में टोटम संबंधित जो मान्यताए है वह हाथीयो के आक्र्रमण के पूर्व भी थे।
हाथियों के आक्रमण से टोटम संबंधित मान्यताओं पर हुए प्रभाव का स्वरूप
हाथीयो के आक्रमण के पूर्व और पश्चात टोटम चिन्ह वही है उनके टोटम चिन्ह पर कोई प्रभाव नही पड़ा है।
हाथियों के आक्रमण से पूर्व /पश्चात टोटम चिन्ह
तालिका क्रमांक 1 यह दर्शाता है कि हाथियों के आक्रमण से पूर्व तथा हाथियों के आक्रमण पश्चात टोटम चिन्ह में कोई परिर्वन नही हुआ है।
हाथियों के आक्रमण पूर्व देवी देवता
आपदा के पूर्व इनके प्रमुख देवी-देवताडिहारिन गौरारानी बेनियारानी देवगुड़ी आमली टिकली, कानेशबरिन, आदि है।
हाथियों के आक्रमण पश्चात देवी-देवता
आपदा के पश्चात उनकी देवी-देवता में कोई परिवर्तन नही हुआ है, इनके वर्तमान के देवी-देवता डिहारिन, गौरारानी, बेनियारानी, देवगुड़ी, आमली टिकली , कानेशबरिन, आदि है ।
(अ) डीहारिन:-
इनके अनुसार डीहारिन जो ग्राम देवी है वो तीन बहन है ,जिसमे से डीहारिन छोटे डीहारिन और कानेश्वबरीन ये तीनो बहने है जिसमे ये तीनो ग्राम की सबसे प्रमुख देवी है और जिसकी पूजा प्रत्येक त्यौहारो में किया जाता है इसकी पूजा के लिए आवश्यक रूप से सामाग्री नारियल, अगरबत्ती, गोरस (दुध), धुप, गुड़ सुपाड़ी और करिया (काला) मूर्गी आदि प्रमुख रूप् से सामाग्री का इसकी पूजा पाठ हेतु आवश्यक रूप से प्रयोग किया जाता है इस देवी की पूजा करने के लिए ज्यादातर पुरूष ही जाते है इनमे प्रमुख रूप से बैगा ही पूजा पाठ का कार्य करते है और ये पुजा पाठ पूरे मंत्रोच्चारणके साथ करते है और इस मंत्र को केवल बैंगा गुप्त रूप से उत्चारण करता है और जिसके पश्चात बाकि लोग पूजा पाठ प्रारंभ करते है और पूजईया करिया (काली) मूर्गी का बलि देते है उनका विश्वास है कि इस प्रकार से पूजा पाठ करने से उनकी रक्षा होती है
(ब) गौरा रानी
ठनके उनुसार गौरा रानी को डीहारिन के बाद दूसरी सबसे प्रमुख देवी मानते है इनकी पूजा पाठ मुख्यतः छेर-छेरा त्यौहार के अवसर पर पूरे विधि विधान से किया जाता है इनकी पूजा पाठ के लिए आवश्यक सामाग्री नारियल अगरबत्ती गोरस (दुध) सुपाड़ी , शराब , धूप आदि का प्रयोग करते है तथा बैंगा के पूरे मंत्रो उत्चारण से साथ पूरे विधि विधान के साथ पूजा किया जाता है तथा उस दिन रात भर ढोल निशान , झांन्झ , और मंजिरा के साथ गीत गाकर पूजा पाठ करते है।
उनके द्वारा गाये जाने वाले गीत:-
मखना के झांझ बनाये तुमा के मंजिरा
भाजी भाटा के तार मिलायेव
नाचे बालम चिरा
तरकारी लेलव वो जुना ओ तोरई के तरकारी
हो रे तरकारी लेलव वो जुना ओ तोरई के तरकारी लेलव ओ
केवट घर के बेवट लईका घन के गाथे जाल
दरिया के मछरी थरथर कापे चिंगरा टोरे जाल
जी खवईहो हमला पर्रा के मुर्रा ला खवईहो हमला
हो रे खवईहो हमला पर्रा के मुर्रा ला खवईहो हमला
काकर सिरजे कोट कमुरा काकर सिरजे राग
ब्रम्हा सिरजे माटी के चोला कलपे दिन अउ रात
जी हमर दुआ दासा अन्ते हे कबीर चोला दुआ दासा रे
हो रे हमर दुआ दासा रे
ओह रे हमन देखेल जाबो कोरबा के टींग टाॅग ला देखेल जाबो
हा रे कोरबा के टींग टांग ला देखे ला जाबो जी
(स) देवगुड़ी देवता
ये भी गांव की प्रमुख देवता में से एक है जो गाॅंव के मध्य में स्थित है इनकी पूजा पाठ समस्त ग्राम वासियो द्वारा कुछ विशेष त्यौहारो में ही किया जाता है इसकी सर्वप्रथम पूजा गाॅव के बैंगा द्वारा किया जाता है फिर इसके बाद इसकी पूजा समस्त ग्राम वासियो द्वारा किया जाता है इसकी पूजा पाठ के लिए आवश्यक सामाग्री नारियल अगरबत्ती दुध धुप सुपाड़ी आदि का उपयोग करते है
(द) बेनिया रानी
बेनिया रानी नामक देवी गाॅव के अंदर में निवास करती है इनकी पूजा गाॅव में कुछ विशेष त्यौहारो में किया जाता है जैसे कि होली दीवाली में विशेषकर इसकी पूजा पाठ के लिए आवश्यक सामाग्री नारियल अगरबत्ती दुध सुपाड़ी एक लोटा पानी आदि का उपयोग किया जाता है
(य) आमली टिकली
आमली टिकली नामक देवी की पूजा समस्त ग्राम वासियो द्वारा विशेषकर दीवाली होली नवाखई त्यौहार के अवसर पर इसकी पूजा पाठ पूरे विधि विधान से किया जाता है इनकी पूजा पाठ के लिए आवश्यक सामाग्री नारियल अगरबत्ती सुपाड़ी दुध धुप आग एक लोटा पानी इत्यादि सामाग्री का प्रयोग किया जाता है इनके धार्मिक विशेषज्ञ प्रायः बैंगा होते है हाथीयो के आक्रमण के पश्चात धार्मिक विशेषज्ञ और उनसे संबंधित विश्वास एवं क्रिया कलापो में कोई परिवर्तन नही आया है इनका चुनाव प्रायः ग्राम वासियों के द्वारा किया जाता है हाथी के आक्रमण के पूर्व भी उनका चयन भी इसी प्रकार किया जाता था
हाथियों के आक्रमण से देवी-देवताओं के प्रति विश्वास में कमी आने की स्थिति
हाथीयो के आक्रमण के पश्चात उनकी देवी देवताओं के प्रति विश्वास में कोई कमी नही आयी है वो देवी देवताओ के प्रति जैसा विश्वास आपदा के पूर्व करते थे वे आपदा के बाद भी वैसा विश्वास करते है
हाथियों के आक्रमण से पुजा पाठ की निरंतरता में कमी आने की स्थिति
इनके देवी देवताओं के पूजा पाठ के निरंतरता में कोई कमी नही आया है वे जिस समय अवसर पर उनकी पूजा पाठ पहले करते थे वे वर्तंमान समय मेें भी उसी अवसर पर पूजा पाठ करते है
हाथियों के आक्रमण से पुजा पाठ की सामाग्रीयों में परिवर्तन की स्थिति
पूजा पाठ के लिए इनकी आवश्यक सामाग्री नारियल, अगरबत्ती, हूम, गुड़
आग, सुपाड़ी, दुध, इत्यादि सामाग्रीयो का प्रयोग आपदा के पूर्व करते थे और इन्ही सामाग्री का प्रयोग आपदा के बाद भी करते है।
हाथीयों के आक्रमण से दिये जाने वाले बलि में कमी की स्थिति
पूजा पाठ के समय जो बलि आपदा के पूर्व में दिया जाता था वर्तमान समय में भी हाथीयो के आपदा के पश्चात भी दिया जाता है हाथीयो के आक्रमण का इनके दिये जाने वाले बलि में कोई कमी नही आयी है
हाथियों के आक्रमण से दिये जाने वाले बलि के स्वरूप में परिवर्तन
बलि के स्वरूप में कोई परिवर्तन नही हुआ है पूर्व में जिनकी बलि पूजा पाठ के समय दी जाती थी वर्तमान समय में भी उसी का बलि दिया जाता है
निष्कर्ष
हाथीयो के आक्रमण के पश्चात उनके धार्मिक विश्वासो में कोई कमी नही आयी है परन्तु धार्मिक स्वच्छंदता में प्रभाव देखा गया है जिसके कारण पहले की आपेक्षा वर्तमान में कोई भी व्यक्ति अकेले पूजा पाठ करने के लिए ग्राम के बाहर स्थिति देवी देवता की पूजा पाठ करने अकेले नही जा सकता बल्कि वे समूह में जाते है। पारस्परिक गीतो के आयोजन पर प्रभाव पड़ा है जैसे छेरछेरा त्यौहार में मुख्य रूप से गौरा रानी नामक देवी की पूजा पाठ किया जाता है तथा पारंपरिक गीतो का आयोजन किया जाता है परन्तु वर्तमान में ये गीत केवल गाॅव के मुखिया बैंगा तथा उसकी पत्नी को याद है। और यह गीत विलूप्ति के कगार पर है परन्तु हाथीयो के आक्रमण को इनका कारण नही मानते है बल्कि इनका कारण भावी पीड़ी में इनकी रूचि को मानते है।
संदर्भ-गं्रथ सूची
Anon (2001). Nature's Masterpiece: The Elephant, a report published by the Karnataka Government.
Forsyth, J. (1889). The Highlands of Central India: Notes on the forest and wild tribes, natural history and sports. Chapman and Hall, London.
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Singh, K Rakesh, (2002), An Occasional Report of a Rapid Action Project conducted by the Wildlife Trust of India as part of the Elephant Conservation Project, Occasional Report No. 5 Elephants in Exile.
Singh, R.K. (2000). Effect of iron ore mining on the elephant habitat of Singhbum Forest, Bihar. A Ph.D. thesis submitted to Saurashtra University. Wildlife Institute of India, Dehradun.
Singh, R.K. and Chowdhury, S. (1999). Effect of mine discharge on the pattern Of riverine habitat use of elephants Elephusmaximus and other mammals in Singhbum forests, Bihar, India. J. Env. Mgt., 57, 177-192.
Received on 28.05.2015
Modified on 07.06.2015
Accepted on 27.06.2015
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Research J. Humanities and Social Sciences. 6(2): April-June, 2015, 101-105