जशपुर जिले में कृषि का स्थानिक वितरण प्रतिरूप

 

उमा गोले

एसोसिएट प्रोफेसर, भूगोल अध्ययन शाला, पं. रविश्ंाकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ

 

शोध संक्षेपिका

जशपुर जिला (22°17श्-23°15श् उ.अक्षांश एवं 83°24श्- 84°09श् पू.देशान्तर)छत्तीसगढ़ राज्य के सुदूर उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। जिले का कुल क्षेत्रफल 6,088 वर्ग किलोमीटर एवं कुल जनसंख्या 8.5 लाख (जनगणना 2011) है। जिले का अधिकांश भाग पहाड़ी एवं पठारी है। धरातल सामान्यतः सीढ़ीनुमा है। उत्तरी भाग ऊपर घाटकी औसत ऊंचाई समुद्र सतह से लगभग 1,000 मीटर है। कुछ पर्वतीय चोटियां 1,100-1,136 मीटर ऊंची हैं। दक्षिणी भाग निचला घाटहै जिसकी औसत ऊंचाई 600 मीटर है। भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से जिले में आद्यकल्प के अभिनव परत के शैल समूह पाये जाते हैं, जिनमें आर्केयन, प्लीस्टोसीन, धारवाड़ एवं दक्कनट्रैप प्रमुख है। धरातल का ढ़ाल सामान्यतः दक्षिण की ओर है। ईब एवं कन्हार प्रमुख नदियां है जो महानदी में प्रवाहित होती है। प्रस्तुत शोधपत्र द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन क्षेत्र मुख्यतः जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है। जिले में 2011 की जनगणनाके अनुसार जनजाति का प्रतिशत 62.3 है। जिले की मुख्य फसल धान है। जनजाति अपने पारम्परिक संस्कृति एवं सभ्यता के परिवेश में रहकर पारम्परिक कृषि उत्पादन द्वारा अपना जीवन निर्वहन करते हैं। सिंचित क्षेत्र की कमीकृषि की उन्नत तकनीकी की अज्ञानता, कमजोर आर्थिक स्तर एवं कृषि नवप्रवर्तन के उपकरणों के कम उपयोग के कारण जनजाति कृषक परिवारों की उपज दर अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम है। अतः इन्ही तथ्यों को ध्यान में रखकर जशपुर जिले में कृषि का स्थानिक वितरण प्रतिरूपअध्ययन करने का प्रयास किया गया है।

 

मुख्य शब्द-शस्य प्रतिरूप, कृषि गहनता एवं भू-वहन क्षमता।

 

प्रस्तावना

वर्तमान समय में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि को देखते हुए अध्ययन क्षेत्र में संतुलित विकास फसल प्रतिरूप में परिवर्तन एवं फसलों की उत्पादकता में समुचित विकास की आवश्यकता है।कृषि के प्राकृतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक-आर्थिक, तकनीकी और संस्थागत आधारों में स्थानिक अन्तर पाया जाता है, फलस्वरूप कृषि प्रतिरूपों में भी विभिन्नताएं देखी जाती है।

 

 

 

अध्ययन क्षेत्र मूलतः जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र है। 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या का 62.3 प्रतिशत जनजातीय के हैं, जिनका मुख्य आधार कृषि करना है । कृषि का यह प्रतिरूप कई तत्वों से मिलकर बनते हैं। अतः इसे समझने के लिए तंत्र सिद्धांत अति आवश्यक एवं उपयोगी है।  जिसमें सामाजिक पक्ष, कृषि निवेश, तकनीकी, उत्पादों का खपत एवं वितरण  मुख्य है।कृषि की संरचना बोए गए फसलों के आधार पर ही सुनिश्चित होती है। जिसके तहत ये एक दूसरे से प्रभावित होते हैं, से सब मिलकर कृषि प्रतिरूप का निर्धारण करते हैं। अस्तु कृषि के स्थानिक प्रतिरूप की समीक्षा करने के लिए इनके विभिन्न आयामों का विश्लेषणकियाजाना आवश्यक हो जाताहै।

 

इन्हीं उद्धेश्यों को ध्यान में रखते हुए जशपुर जिले का कृषि प्रतिरूप एवं उनके विभिन्न आयामों का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है।

 

उद्धेश्य

1. जिले में कृषि के दशाओं का अध्ययन करना।

2. अध्ययन क्षेत्र में कृषि के स्थानिक प्रतिरूप आकलन करना।

3. कृषि के विभिन्न आयामों का विश्लेषण करना।

 

अध्ययन क्षेत्र

जशपुर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के सूदुर उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। जशपुर जिला  22°17श् से 23°15श् उत्तरी अक्षांश एवं 83°24श् से 84°09श् पूर्वी देशान्तर के मध्य विस्तृत  है। इसका कुल क्षेत्रफल 6088 वर्ग किलोमीटर है, जो छत्तीसगढ़ राज्य का 4.5 प्रतिशत है। जिले की समुद्र सतह से ऊंचाई 1033 मीटर है। जिले की उत्तर से दक्षिण की कुल लम्बाई 150 किलामीटर एवं पूर्व से पश्चिम चैडाई 85 किलोमीटर है। जिले के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिम में सरगुजा जिला, उत्तर-पूर्व में झारखण्ड का गुमला जिला , दक्षिण-पश्चिम में रायगढ़ जिला है, जबकि दक्षिण-पूर्वी सीमा उड़ीसा राज्य के सुन्दरवन के जिलों द्वारा निर्धारित होता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की कुल जनसंख्या 8,52,042 है, जो छ.ग. राज्य की कुल जनसंख्या का 3.33 प्रतिशत है। प्रशासनिक दृष्टि से जिले में चार तहसील एवं आठ विकासखण्ड जशपुर, मनोरा, दुलदुला, कुनकुरी, फरसाबहार, कांसाबेल,पत्थलगांव एवं बगीचा हैं।

 

आंकड़ों के स्रोत एवं विधितन्त्र

प्रस्तुत शोध पत्र पूर्णतः द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है। आंकड़ों की प्राप्ति हेतु जिला सांख्यिकीय पुस्तिका कार्यालय एवं  वर्ष 2013-14 के कृषि संबंधित आंकड़े उपसंचालक, कृषि विभाग, जिला जशपुर से संकलित किये गये हैं।अध्ययन हेतु जिले के सम्पूर्ण 08 विकासखण्ड को इकाई का आधार माना गया है।अतः अनेक भूगोलवेत्ताओं ने विकासशील देशों के संदर्भ में कृषि प्रतिरूप के विभिन्न आयामों हेतु अनेक विधियों सुझाई है। उन्हीं विधियों के आधार पर विभिन्न आयामों की गणना की गई है।विश्लेषित प्राप्त आंकड़ों को अध्ययन को सुगम एवंबोधगम्य बनाने हेतु सारणी एवं उपयुक्त मानचित्रों का भी उपयोग किया गया है।

 

शस्य प्रतिरूप

जिले में खाद्यान्न फसलों की प्रधानता है। अध्ययन क्षेत्र में कुल फसली क्षेत्र 2,61,264 हेक्टेयर में है।कुल अनाजों में 73.9 अर्थात् 1,93,140 हेेक्टेयर में है। खरीफ फसल में धान प्रमुख फसल के अंतर्गत है, जिले के 1,80,614 हेक्टेयर क्षेत्र में जो कुल फसल क्षेत्र का 69.1 प्रतिशत क्षेत्र में व्याप्त है, वहीं दलहनों में 9.7 प्रतिशत जिनमें उड़द 5.5 प्रतिशत मुख्य है,जबकि तिलहनों में 12.0 प्रतिशत जिनमें रामतिल 8.2 प्रतिशत मुख्य फसल है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक रामतिल का उत्पादन अध्ययन क्षेत्र दूसरे स्थान पर है।

 

कृषि गहनता प्रतिरूप

किसी भी क्षेत्र में शुद्ध बोये गये क्षेत्र की अपेक्षा कुल फसली क्षेत्र का अधिक होना शस्य गहनता की मात्रा को प्रदर्शित करता है। शस्य गहनता से तात्पर्य एक निश्चित क्षेत्र में एक वर्ष में ली जाने वाली फसलों की संख्या से है। यदि एक क्षेत्र में वर्ष में एक ही फसल उत्पन्न की जाती है, तो उसकी गहनता 100 प्रतिशत मानी जायेगी, यदि दो फसलें उत्पादित की जायेगी तो शस्य गहनता 200 प्रतिशत हो जायेगी सिंह, (1979)। शस्य गहनता की गणना उन भागों में आसान होती है, जहां वर्ष में एक ही फसलें उत्पन्न की जाती है। उल्लेखनीय है कि अध्ययन क्षेत्र की मुख्य फसल धान है। शस्य गहनता का सूचकांक एवं भूमि उपयोग का धनात्मक सहसंबंध रहता है। यद्यपि शस्य गहनता का अध्ययन अनेक विद्वानों ने किया है, लेकिन बी. एस. त्यागी (1972) ने शस्य गहनता के स्थान पर कृषि गहनता शब्द का प्रयोग किया है।

 

त्यागी द्वारा प्रयुक्त श्रेणी गुणांक विधि के आधार पर जशपुर जिले की शस्य गहनता विकासखण्ड स्तर पर ज्ञात किया गया तथा उसे तीन वर्गों में विभाजित किया गया ह ै;सारणी क्र-1 एवं मानचित्र क्र-1द्ध।

परिकलनसूत्र निम्नानुसार है:-

ब्प्त्र ब्ध्छ  ग् 100

 

ब्प्त्र शस्य गहनता सूचकांक

ब्त्र  सकल बोया गया क्षेत्र

छत्र  शुद्ध बोया गया क्षेत्र

 

उच्च कृषि गहनता

जिले में अधिक कृषि गहनता सूचकांक  बगीचा विकासखण्ड़ में 108.9 एवं 108.5 पत्थलगांव विकासखण्ड में प्राप्त हुआ । शस्य गहनता का सीधा संबंध सिंचाई से होता है। बगीचा एवं पत्थलगांव विकासखण्ड में समस्त स्रोतों से शुद्ध सिंचित क्षेत्र क्रमशः 1807 एवं 1202 हेक्टेयर है, जो अन्य क्षेत्रों से अधिक है।

 

इसी प्रकार जिले का निराफसली क्षेत्र भी बगीचा 21.10 एवं पत्थलगांव में 20.6 प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक है। साथ ही मैनी नदी द्वारा लाई गयी उपजाऊ मिट्टी के प्रभाव के कारण इन दोनों विकासखण्डों में शस्य गहनता उच्च पाई गई।

 

मध्यम कृषि गहनता

अध्ययन क्षेत्र में चार विकासखण्ड़ जिले के उत्तर में मनोरा,(105.9) मध्य में कांसाबेल(103.7) एवं कुनकुरी (103.2) तथा दक्षिण में फरसाबहार(103.6)मध्यम गहनता सूचकांक विकासखण्ड़ सम्मिलित हैं। अध्ययन क्षेत्र में चावल खरीफ फसलों में महत्वपूर्ण फसल है, जो जिले के मैदानी क्षेत्र का विस्तार है वहां सिंचाई सुविधा की कमी जनसंख्या दबाव अधिक होने के कारण वहीं मनोरा ऊपरी पाट प्रदेश एवं फरसाबहार विकासखण्ड़ों में वन क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक होने के कारण मध्यम कृषि गहनता क्षेत्र के अंतर्गत है।

 

निम्न कृषि गहनता

इसके विपरीत दुलदुला विकासखण्ड़ में (101.9) एवं जशपुर विकासखण्ड में (102) शस्य गहनता सूचकांक निम्न प्राप्त हुआ। उल्लेखनीय है कि इन दोनों विकासखण्डों में निराफसल क्षेत्र का प्रतिशत कम है। दुलदुला विकासखण्ड़ में जहां एक ओर निराफसली क्षेत्र ।

 

 

अन्य विकासखण्ड़ों की तुलना में सबसे कम (6.73 प्रतिशत ) है,इसके अलावा कुल भौगोलिक क्षेत्र की कमी, सिंचाई का अभाव एवं लाल-पीली कम उपजाऊ मिट्टी की उपलब्धता है।वहीं जशपुर जिला मुख्यालय होने के कारण पड़त भूमि की अधिकता (25.5 प्रतिशत), इन सभी कारणों के सम्मिलित प्रभाव के कारण यहां शस्य गहनता सूचकांक निम्न प्रदर्शित हुआ(सारणी क्र.-1एवं मानचित्र क्र-1)। 

 

भू-वहन क्षमता

भूमि की अनुकूलतमवहन क्षमता का अभिप्राय उस क्षेत्र में निवासरत् जनसंख्या से है जिनसे उस क्षेत्र विशेष में उत्पादित खाद्यान्न पदार्थों से मानव के शारीरिक, मानसिक विकास हेतु आवश्यक भोजन की पूर्ति होती है। वर्ष 1956 में एल.डी. स्टैम्प ने अन्र्तराष्ट््रीय भौगोलिक सम्मेलन रियोडिजेनेरो में भूमि की वहन क्षमता के संदर्भ में अपनी प्रस्तुती दी थी। इसमें कुल कृषित उत्पादन को कैलोरी में परिवर्तित किया जाता है,क्योंकि कैलोरी से ही व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य का मापन किया जाता है। ऊर्जा की मात्रा ही मानव शरीर के निर्धारण के लिए आवश्यक तत्व है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 2114 कलौरी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार एक स्वस्थ्य व्यक्ति को प्रति वर्ष 772138 कैलोरी की आवश्यकता होगी। स्टैम्प ने इसे पोषक इकाई मानक ;ैजंदकंतक छनजतपजपवद न्दपजद्धकहा है।

 

विश्व स्तर पर अनेक विद्वानों ने क्षेत्रीय अध्ययन हेतु भूमि की वहन क्षमता का मापन किया है। भारत में मो. शफी, जसबीर सिंह 1972, श्री कमल शर्मा 1980 उल्लेखनीय है। इन्हीं विधि को आधार मानकर जशपुर जिले के भूमि की वहन क्षमता ज्ञात किया गया है। क्योंकि अध्ययन क्षेत्र में खाद्यान्न फसलों की प्रधानता है।

 

सर्वप्रथम कृषित भूमि की (प्रति इकाई प्रति हेक्टयरध् प्रति वर्ग कि.मी.) में कितने जनसंख्या के भरण पोषण की क्षमता (वहन क्षमता) है। इसे ज्ञात करने के लिए पहले प्रत्येक खाद्य फसलों के उत्पादन को कैलोरीज में परिवर्तित किया जाता है। टन को कैलोरी में परिवर्तित करने हेतु उत्पादन की स्थान पर प्रति हेक्टयर उपजदर को लिया है। साथ ही समस्त विचाराधीन खाद्य फसलों के कुल क्षेत्रफल को 100 प्रतिशत मानकर उपयोग करते हैं। कुल कृषित क्षेत्र के प्रतिशत को प्रतिहेक्टर प्राप्त उपजदर से गुणा करके कुल उत्पादन ज्ञात करते हैं। पुनः प्रत्येक फसल के कुल उत्पादन (जो कि.ग्रा. में होगा, क्योंकि उपजदर कि.ग्रा. में है) को उस फसल के प्रति कि.ग्रा. कैलोरी से गुणा करके समस्त उत्पादित फसलों के कैलोरी योग प्राप्त कर उसमें 16.8 घटा दिया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि कुल उत्पादन का 16.8 प्रतिशत बीज, कीटों द्वारा नष्ट या व्यर्थ चला जाता है। अतः शेष 83.2 बचा हुआ भाग ही भरण पोषण के लिए उपलब्ध होते हैं। यही कैलोरी उत्पादन प्रति 100 हेक्टेयर अर्थात् प्रति वर्ग कि. मी. के लिए होता है।

 

अध्ययन क्षेत्र के  भूमि वहन क्षमता को ज्ञात करने के लिए जिले के सम्पूर्ण विकासखण्ड़ों को ईकाई का आधार माना गया है। उपर्युक्तानुसार विकासखण्ड़वार सम्पूर्ण उपलब्ध प्राप्त कैलोरी को मानक पोषण इकाई से विभाजित कर भूमि की वहन क्षमता निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया तथा सम्पूर्ण जिले को तीन भूमि की वहन क्षमता वर्गों में उच्च, मध्यम एवं निम्न वहन क्षमता में वर्गीकृत किया।

   ब्व

 ब्च् त्र .......

            ैद

 

ब्च् त्र वहन क्षमता सूचकांक

ब्व त्र फसल क्षेत्र में प्रति इकाई उपलब्ध कैलोरी

ैद त्र  प्रति व्यक्ति मानक पोषण आवश्यकता

 

उच्च भू-वहन क्षमता (425ढ)

जिले के उच्च भू-वहन क्षमता वाले क्षेत्र के अंतर्गत फरसाबहार (456 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.), कांसाबेल(436) एवं कुनकुरी(426 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.) विकासखण्ड़ सम्मिलित हैं। ये वे क्षेत्र है, जो जिले के 300 से 450 मीटर ऊंचाई वाले निचले पाट प्रदेश के अंतर्गत हैं।

 

सारणी क्रमांक-3

जिला जशपुर: भूमि की वहन क्षमता,

जिले के दक्षिण की ओर उत्तर उच्च पाट प्रदेश 1136 मीटर की तुलना में ढाल कम है। उपरोक्त सभी विकासखण्ड़ निचला घाट, कृषि योग्य भूमि से युक्त समतल मैदानी भाग है, जो ईब एवं उसकी सहायक मैनी नदियों द्वारा सिंचाई सुविधा एवं बहाकर लाई गई मिट्टियों से निर्मित उपजाऊ क्षेत्र है। इसलिए ये तीनों विकासखण्ड़ उच्च भू-वहन क्षमता के अंतर्गत हैं(सारणी क्रमांक-3)

 

मध्यम भू-वहन क्षमता (425-400)

जिले में मध्यम स्तर के भू-वहन क्षमता के अंतर्गत दो जशपुर (413) एवं पत्थलगांव (400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर)  विकासखण्ड़ हैं। इन दोनों विकासखण्डों कृषि हेतु सभी भौगोलिक अनुकूल दशाएं हैं, परन्तु लैटेराइट मिट्टी का विस्तार इन दोनों क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक एवं सामान्य ंिसंचाई सुविधाएं एवं लोगों में द्विफसली लेने में जागरूकता में कमी का होने के कारण उपरोक्त दोनों क्षेत्र मध्यम भू-वहन क्षमता के अंतर्गत हैं(मानचित्र क्रमांक-3)

 

सारणी क्रमांक-4

विश्लेषण के आधार पर जिले के तीन विकासखण्ड़ दुलदुला, मनोरा एवं बगीचा क्रमशः 373, 359 एवं 343 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर प्राप्त हुए। इन तीनों विकासखण्डों में जहां विरल जनसंख्या (60-82 व्यक्ति प्रति वर्ग जनसंख्या घनत्व), धरातल सीढ़ीनुमा, उच्च पाट प्रदेश में (750-1136 मीटर) स्थित तथा कृषि भूमि नगण्य, इन सभी दशाओं की स्थिति के कारण उपरोक्त तीनों विकासखण्ड़ निम्न भू-वहन क्षमता के अंतर्गत हैं।

 

निष्कर्ष

जिले का अधिकांश भाग ऊंची-निची पाट क्षेत्रांे में विस्तृत है। अध्ययन क्षेत्र में कुल क्षेत्रफल का 52.5 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। जिले में सिंचाई सुविधा की कमी तथा पड़ती भूमि का प्रतिशत 10.4, वहीं 12.0 प्रतिशत वनाच्छादित होने के कारण कृषि क्षेत्र कम है। अन्य अकृष्य भूमि जिनमें पड़तीशामिल नहीं है, 8.8 प्रतिशत क्षेत्र में व्याप्त है, जिसे सामाजिक वानिकी या कृषि विकास हेतु परिवर्तितकर जिले को उन्नयन किया जा सकता है, साथ ही निवासरत् जनों को उच्चशिक्षा एवं कृषि के प्रति जागरूक करना आवश्यक है, अपितु उन्हें कृषि के नवाचार को सस्ते एवं समयावधि में उपलब्ध कराना भी शासन का प्रमुख कर्तव्य है। जिले के संतुलित विकास हेतु सिंचाई की कमी को दूर करने के लिए जलाशयों का निर्माण योजनाबद्ध ढंग से किया जाना तथाआधुनिक कृषि उपकरणों को कृषि कार्य में उपयोग करने के लिए उत्पेरित करनामहत्वपूर्ण कारक साबित होगा, क्योंकि अध्ययन क्षेत्र जनजाति बाहुल्य कृषि निर्वहन भाग है।

 

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Received on 15.05.2015

Modified on 20.06.2015

Accepted on 06.07.2015

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Research J. Humanities and Social Sciences. 6(3):July- September, 2015, 178-184