Author(s):
निवेदिता लाल
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श्रीमती) निवेदिता लाल
विभागाध्यक्ष - भूगोल विभाग शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव (छ.ग.)
*Corresponding Author:
Published In:
Volume - 3,
Issue - 2,
Year - 2012
ABSTRACT:
18वीं सदी के अन्त तक छत्तीसगढ़ कृशि की दृश्टि से अत्यन्त सम्पन्न क्षेत्र था। लेकिन आज धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान का औसत उत्पादन राश्ट्रीय औसत से लगभग आधा रह गया है। कपास की खेती लुप्तप्राय हो चुकी है, गन्ने की खेती करने की समझाइष आज छत्तीसगढ़िया किसानों को दी जा रही है। छत्तीसगढ़ में मानवश्रम की प्रचुरता तथा पर्याप्त कृशि योग्य भूमि के बाद भी समुचित एवं पर्याप्त कृशि निवेषों के अभाव में कृशि उत्पादकता में बहुत विकास नहीं हो पाया है। फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिये विभिन्न जैव तकनीकों से क्रांतिकारी परिवर्तन लाये जा रहे हैं जिनमें रासायनिक खाद की भूमिका मुख्य है, किंतु रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता में गिरावट आयी है अतः कृशि के टिकाऊपन के लिये जैविक खादों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। जैविक खादों की गुणवत्ता बढ़ायी जाने एवं उचित मात्रा में उपयोग पर अनुसंधान कार्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिये ऐसा होने से पौधे को संतुलित मात्रा में पोशक तत्व मिल सकेगा एवं पौधे में कीड़े एवं बीमारियों के प्रति सहनषीलता बढ़ेगी एवं फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होगी।
Cite this article:
निवेदिता लाल. छत्तीसगढ़ की कृशि उत्पादकता में रासायनिक उर्वरक की भूमिका. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(2): April-June, 2012, 220-222
Cite(Electronic):
निवेदिता लाल. छत्तीसगढ़ की कृशि उत्पादकता में रासायनिक उर्वरक की भूमिका. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(2): April-June, 2012, 220-222 Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2012-3-2-13