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संजय चन्द्राकर, सत्येन्दु शर्मा
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संजय चन्द्राकर1 एव सत्येन्दु शर्मा2
1सहा. प्राध्यापक (समाजशास्त्र)ए शास. दू.ब. महिला स्नात. महाविद्यालय, रायपुर, (छ. ग.)
2विभागाध्यक्ष (संस्कृत)ए शास. दू.ब. महिला स्नात. महाविद्यालय, रायपुर, (छ. ग.)
*Corresponding Author:
Published In:
Volume - 1,
Issue - 2,
Year - 2010
ABSTRACT:
स्वामी विवेकानन्द का कथन है - ‘‘पुरूष और नारी एक पक्षी के दो डैने हैं। यह समाजरूपी पक्षी तब तक ठीक तरह से नहीं उड़ सकेगा, जब तक उसके दोनों डैने समान रूप से सबल और स्वस्थ न हों।’’ विवेकानन्द भावधारा के संन्यासी एवं विचारक स्वामी आत्मानन्दजी उक्त मत के प्रबल संपोषक थे। बस्तर (अबूझमाड़) के माड़िया निवासियों की दयनीय एवं दरिद्रतापूर्ण स्थिति को देखकर स्वामी आत्मानन्द जी अत्यन्त द्रवित हुए। तत्पश्चात् नारायणपुर में रामकृष्ण मिशन आश्रम की स्थापना-काल में ही उन्होंने यह निश्चय किया कि जनजातीय महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण के लिए एक अलग संस्था की स्थापना की जाये। चूंकि विवेकानन्द भावधारा में नारियों से संबंधित कार्यों को हाथ में लेने की अनुमति (बालिका शिक्षा को छोड़कर) नहीं है, अतः उस क्षेत्र में कार्य करने के लिए एक अलग गैर सरकारी संस्था की स्थापना की गई और नाम दिया गया ‘‘विश्वास’’। विश्वास के स्थापना-काल (सन् 1989) से ही उसके अंतर्गत समेकित बाल विकास सेवाएं (आई.सी.डी.एस.) कार्यक्रम का आरम्भ ओरछा (अबूझमाड़) से किया गया। ओरछा अत्यन्त दुर्गम क्षेत्र है । इस संपूर्ण क्षेत्र में यातायात का विकास लगभग नहीं के बराबर है। यहाँ की ऊंट की पीठनुमा पहाड़ियों में आदिम जनजाति अबूझमाड़िया निवास करती है। यहाँ के निवासियों के खानपान का स्तर अत्यन्त निम्न है तथा ये गम्भीर कुपोषण के शिकार हैं। यहाँ छः वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए शाला पूर्व अनौपचारिक शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी। इन समस्याओं के निदान में ‘‘विश्वास’ का कार्य यहाँ वरदान साबित हो रहा है ।
Cite this article:
संजय चन्द्राकर, सत्येन्दु शर्मा. महिला एवं बाल-विकास के क्षेत्र में स्वामी आत्मानन्द का अवदानः (अबुझमाड़ के संदर्भ में). Research J. of Humanities and Social Sciences. 1(2): July-September 2010, 51-53.
Cite(Electronic):
संजय चन्द्राकर, सत्येन्दु शर्मा. महिला एवं बाल-विकास के क्षेत्र में स्वामी आत्मानन्द का अवदानः (अबुझमाड़ के संदर्भ में). Research J. of Humanities and Social Sciences. 1(2): July-September 2010, 51-53. Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2010-1-2-1