ABSTRACT:
मानव समाज के विविध पक्षों पर प्रकाश डालने के निमित्त पुरुष पात्र की अपेक्षा नारी पात्र का माध्यम अधिक उपयुक्त ठहरता है, क्योंकि मानव समाज के मूल में नारी विद्यमान है। नारी से समाज सृष्टि, प्रेरणा, शक्ति, तुष्टि, प्रेम आदि सब कुछ पाता है। उसके विकास का इतिहास मानव सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास है। मानव समाज के बदलने वाले सामाजिक मूल्यों को आंकने के जितने भी साधन हैं नारी उन सबमें प्रधान है।1 इसलिए हिन्दी साहित्य में नारी जीवन के विविध रूप अंकित हुए। स्वातंत्र्योतर कालखंड के हिन्दी उपन्यासों में नारी अस्तित्व के सूक्ष्म मूल्य बोधों, भावबोधों और आधुनिक चेतना को व्यक्तिगत एवं सामाजिक धरातल पर सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की गई है।
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आभा तिवारी. स्वातंत्र्योतर उपन्यास साहित्य में चित्रित नारी जीवन. Research J. of Humanities and Social Sciences. 1(3): Oct.-Dec. 2010, 77- 79.
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आभा तिवारी. स्वातंत्र्योतर उपन्यास साहित्य में चित्रित नारी जीवन. Research J. of Humanities and Social Sciences. 1(3): Oct.-Dec. 2010, 77- 79. Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2010-1-3-1
संदर्भ -
1ण् सिंह डाॅ. त्रिभुवन, हिन्दी उपन्यास और यथार्थवाद, पृ. 394
2ण् कालिया, ममता, बेघर, पृ. 80
3ण् शिवानी, भैरवी, पृ. 98
4ण् नागर, अमृतलाल, नाच्यो बहुत गोपाल, पृ. 126
5ण् आलोक डाॅ. अशोक कुमार, फणीश्वरनाथ रेणु: सृजन और संदर्भ, पृ. 371
6ण् भट्ट, उदयशंकर, सागर, लहरें और मनुष्य, पृ. 11
7ण् कमलेश्वर, कितने पाकिस्तानी, पृ. 300
8ण् भट्ट, उदयशंकर, सागर, लहरें और मनुष्य, पृ. 180
9ण् मिश्र, रामदरश, पानी के प्राचीर, पृ. 107
10ण् मिश्र, रामदरश, पानी के प्राचीर, पृ. 214
11ण् सिंह, शिवप्रसाद, अलग-अलग वैतरणी, पृ. 275
12ण् मटियानी, शैलेश, चैथी मुट्ठी, पृ. 75
13ण् राघव, रांगेय, घरौंदा, पृ. 177
14ण् कालिया, ममता, बेघर, पृ. 58
15ण् अग्रवाल, बिन्दु, हिन्दी उपन्यास में नारी चित्रण, पृ. 143
16ण् वर्मा, भगवती चरण, त्रिपथगा, पु. 74