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सुशांत चक्रवर्ती, आभा तिवारी
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सुशांत चक्रवर्ती1 एवं आभा तिवारी2
1सहायक प्राध्यापक, हिन्दी, विवेकानंद महाविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
2प्राध्यापक, हिन्दी, शा.दू.ब.म.स्ना. महाविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
*Corresponding Author:
Published In:
Volume - 2,
Issue - 3,
Year - 2011
ABSTRACT:
प्रत्येक रचनाकार अपने युग की उपज होता है। समय और समाज ही प्रत्येक रचनाकार की प्रेरणा का स्रोत होता है। प्रेमचंद हिन्दी के पहले उपन्यासकार हैं जिन्होंने अपने रचना कर्म को समय और समाज से सीधे जोड़ा है। उन्होंने उपन्यास को जादुई तिलिस्म से मुक्ति दिलाकर मानव जीवन की यथार्थता का मजबूत आधार दिया। वैसे इस परम्परा की शुरूआत भरतेन्दु युग के निबन्धों और उपन्यासों से हो चुकी थी। इस संदर्भ में श्रीनिवास दास का ‘परीक्षा-गुरु’ उल्लेखनीय है। लेकिन भारतेन्दु युग में सामाजिक उपन्यासों के पढ़ने वाले बहुत थोड़ी संख्या में थे। ‘चन्द्रकांता संतति’ जैसे तिलस्मी उपन्यासों के पढ़ने वाले लाखों थे। प्रेमचंद ने इन लाखों पाठकों को ‘सेवा- सदन’ का पाठक बनाया यह उनका युगान्तकारी काम था।1 सेवा-सदन के बाद प्रेमचंद का हर एक उपन्यास उनकी मौलिक प्रतिभा का सार्थक बयान बनकर आया और क्रमशः उनकी दृष्टि सामाजिक विसंगतियों को उभारने में अधिक प्रखर होती गयी।
Cite this article:
सुशांत चक्रवर्ती, आभा तिवारी. प्रेमचंद का औपन्यासिक लेखन, विकासात्मक सर्वेक्षण. Research J. Humanities and Social Sciences. 2(3): July-Sept., 2011, 132-136.
Cite(Electronic):
सुशांत चक्रवर्ती, आभा तिवारी. प्रेमचंद का औपन्यासिक लेखन, विकासात्मक सर्वेक्षण. Research J. Humanities and Social Sciences. 2(3): July-Sept., 2011, 132-136. Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2011-2-3-12
संदर्भ ग्रंथ
1 शर्मा राम विलास, प्रेमचंद और उनका युग, पृ. 31
2 प्रेमचंद, कुछ विचार, पृ. 47
3 प्रेमचंद, कुछ विचार, पृ. 24-25
4 प्रेमचंद, साहित्य का उद्देश्य, पृ. 20
5 डाॅ. सत्येन्द्र (सं.), प्रेमचंद, पृ. 105
6 प्रेमचंद, प्रतिज्ञा, पृ. 51, 62
7 राय अमृत, कलम का सिपाही, पृ. 170
8 प्रेमचंद, प्रेमाश्रम, पृ. 53
9 शर्मा रामविलास, प्रेमचंद और उनका युग, पृ. 84
10 पांडे श्रीनारायण, प्रेमचंद का संघर्ष, पृ. 26
11 भटनागर रामरतन, कलाकार प्रेमचंद, पृ. 175
12 गोपाल मदन, कलम का मजदूर, पृ. 182
13 राय अमृत, कलम का सिपाही, पृ. 455
14 गुरु राजेश्वर, कलम का मजदूर: प्रेमचंद, पृ. 297
15 सत्येन्द्र (सं.), प्रेमचंद में संकलित डाॅ. त्रिभुवन सिंह का निबंध ‘आदर्शोन्मुख यथार्थवाद’, पृ. 110
16 शर्मा रामविलास, प्रेमचंद और उनका युग, पृ. 101
17 हिन्दी भाषा और साहित्य इतिहास, पृ. 284