Author(s): मधुलता बारा

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Address: डाॅ. (श्रीमती) मधुलता बारा
व्याख्याता हिंदी साहित्य एवं भाषा-अध्ययनशाला पं. रविशंकर शुक्ल वि.वि., रायपुर
*Corresponding Author:

Published In:   Volume - 2,      Issue - 3,     Year - 2011


ABSTRACT:
मुक्तिबोध मानवीय संवेदना के धनी थे। उन्होंने समाज के सभी तबकों के व्यक्तियों की भावनाओं, आशाओं, अभिलाषाओं, गतिविधियों को गहराई से देखा और परखा है। वे आम-से-आम आदमी के आंतरिक एवं बाह्य भावों को, मर्म को, पीड़ा को, घुटन को, कुण्ठा को बारीकी से समझने, महसूस करने वाले कवि थे। दरअसल आम आदमी अर्थात् श्रमिक, मज़दूर, किसान, निम्नवर्ग की आम जनता एवं नारियों के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित थे। इस बात की साक्षी उनकी अनेक कविताएँ है। वे निम्नवर्गीय समाज के आम आदमियों के दुःख-दर्द, पीड़ओं को नज़दीक से देखा है, जिया है, भोगा है। खास तौर पर नारी की दयनीय दशा का जो चित्रण किया है, उससे महसूस होता है कि वे नारियों के पक्षधर थे। चन्द्रकांत देवताले के शब्दों में- ‘‘युग की विभीषिकाओं का चित्रण करते हुए उन्होंने युग की पस्ती और निराशा के अतिरिक्त जन-संघर्ष को भी अपने काव्य में रूपायित करने की चेष्टा की। मुक्तिबोध का काव्य युग के जटिल संघर्ष को सरलीकृत नहीं करता, लेकिन संघर्ष के पीछे मौजूद उम्मीद की भावना उनकी आँखें से कभी ओझल नहीं होती।’’1 आगे शंकर वसंत मुद्गल मुक्तिबोध की कविताओं की नारियों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहते हैं- ‘‘मुक्तिबोध के काव्य में शोषित मानवों और उनके जीवन के प्रति सहानुभूति, शिशुओं के प्रति वात्सल्य-दृष्टि, पूँजीपतियों की हवश का शिकार बनी नारी के प्रति स्नेहिल एवं सजल दृष्टि मिलती है। उन्होंने शोषक-वृत्ति और उसका शिकार बने समाज का शब्दांकन भर नहीं किया है, अपितु उन्हें अपने आर्द्र संवेदना भी अर्पित की है।’’2 नारी की शोषित अवस्था का चित्रण उनके अनेक कविताओं में देखा जा सकता है। कहीं वह वासना का शिकार बन बलत्कार का दंश एवं अपमान सह रही है, कहीं आर्थिक अभाव के कारण गर्भावस्था में भी श्रम करते हुए दिखाई देती है। कवि ने कविता में विद्रोह के बावजूद खूबसूरत कमरों में, अपने आँखें में सामने, भोली-भाली, मासूम चेहरे वाली, हिरण-सी आँखों वाली नारी का शोषण दैत्यों द्वारा किया जाता है।


Cite this article:
मधुलता बारा. मुक्तिबोध के काव्य में नारी के प्रति संवेदना. Research J. Humanities and Social Sciences. 2(3): July-Sept., 2011, 154-157.

Cite(Electronic):
मधुलता बारा. मुक्तिबोध के काव्य में नारी के प्रति संवेदना. Research J. Humanities and Social Sciences. 2(3): July-Sept., 2011, 154-157.   Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2011-2-3-17


संदर्भ-ग्रंथ
1.            चंद्रकांत देवताले: मुक्तिबोध कविता और जीवन-विवेक; 275.
2.            शंकर वसंत मुद्गल: मुक्तिबोध का काव्य सौष्ठव; 44.
3.            चंद्रकांत देवताले: मुक्तिबोध कविता और जीवन-विवेक; 274.
4.            सुरेश ऋतुपर्ण: मुक्तिबोध की काव्य-दृष्टि; 48.
5.            मुक्तिबोध: एक साहित्यिक डायरी; 49.
6.            सुरेश ऋतुपर्ण: मुक्तिबोध की काव्य-दृष्टि; 65.
7.            वही; 65.

 

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RNI: Not Available                     
DOI: 10.5958/2321-5828 


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