Author(s): कादम्बरी शर्मा

Email(s): kadambari6@rediffmail.com

DOI: Not Available

Address: कादम्बरी शर्मा
संस्कृत विभाग, शासकीय संस्कृत महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 3,      Issue - 3,     Year - 2012


ABSTRACT:
स्वामीजी कहते है जगत् के समस्त पदार्थों में प्रियतम वस्तु यही ‘आत्मा’ है। किसी स्थान से प्रिय वस्तुओं की गणना की जाय, पर्यवसान आत्मा में ही होता है। इस विशाल वृŸास्थानीय जगत् का केन्द्र यही आत्मा है। केन्द्र निश्चित है, परन्तु परिधि अनन्त, असीम है। महर्षि याज्ञवल्क्य ने इसी आत्मा के साक्षात्कार को मोक्ष का स्वरूप बतलाया है। जगत् का कोई भी पदार्थ नित्य नहीं है। आज की चीजें देखते कल नष्ट हो जाती हैं। यदि कोई टिकने वाला अनश्वर पदार्थ है, तो वह आत्मा ही है। इसी का साक्षात् अनुभव करना मानव जीवन का चरम लक्ष्य है। इसके अनुभव के निमिŸा पुत्रवत्सला माता की तरह भगवती श्रुति सुन्दर शब्दों में हमें शिक्षा देती हैं


Cite this article:
कादम्बरी शर्मा. वेदान्त दर्शन में कर्म और ज्ञान. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(3): July-September, 2012, 354-355.

Cite(Electronic):
कादम्बरी शर्मा. वेदान्त दर्शन में कर्म और ज्ञान. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(3): July-September, 2012, 354-355.   Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2012-3-3-9


संदर्भ:-
1.      वेदान्त दर्शन - स्वामी शंकराचार्य जी,
2.      भारतीय दर्शन - पं. बलदेव उपाध्याय
3.      धर्म तथा दर्शन - स्वामी विवेकानंद जी, अर्थसंग्रह (जैमिनिकृत) - लौगाक्षी भास्कर

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RNI: Not Available                     
DOI: 10.5958/2321-5828 


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