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सुधा राय
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सुधा राय
शोधार्थी, इतिहास अध्ययन शाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ.
*Corresponding Author:
Published In:
Volume - 5,
Issue - 3,
Year - 2014
ABSTRACT:
छत्तीसगढ़ में कल्चुरियों के शासन का स्वरूप केन्द्रीय था, किन्तु केन्द्र में योग्य एवं चरित्रवान नेतृत्व की अनुपस्थिति के कारण यह इस समय नियंत्रणहीन हो गया था । आरंभिक हैहय शासक योग्य थे, किन्तु 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ में इनका गौरव लुप्त हो चुका था । इस समय के शासक नाममात्र थे । इनमें न योग्यता थी, न दृढ़ आत्मबल । इस समय रतनपुर एवं रायपुर शाखा के तात्कालीन शासकों क्रमशः रघुनाथ सिंह व अमरसिंह नितांत शक्तिहीन थे एवं उनमें महत्वाकांक्षा का अभाव था । जिससे हैहय शासन की दशा अत्यन्त दयनीय हो चुकी थी और उसका संगठन दोशपूर्ण था । केन्द्र में दृढ़ सेना का अभाव था । हैहय सरकार आर्थिक दृश्टि से दिवालिया हो गई थी । जनता पर कर का भार अधिक था । कृशि की बिगड़ी दशा के कारण आय कम हो गई थी । आर्थिक विपन्नता सरकार के समक्ष गंभीर चुनौती थी। जेकिन्स के अनुसार राज्य के अधिकांश भागों का विभाजन राज परिवार के सदस्यों व अधिकारियों के बीच हो गया था । ऐसी स्थिति में ऐसा कोई योग्य नेतृत्व नहीं था जो राज्य में शक्ति का संचार करता एवं मराठा शक्ति का सामना करता । 1741 ई॰ छत्तीसगढ़ के राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण परिवर्तन का काल था । पतन के कगार पर पहुॅंच चुके हैहय शासन का लाभ उठाकर नागपुर के भोंसला सेनापति भास्कर पंत ने आक्रमण कर दिया । सेना पति भास्करपंत ने बिना युद्ध के ही 1741 में रतनपुर पर कब्जा कर लिया ।1
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सुधा राय. मराठाकालीन छत्तीसगढ़ में भूराजस्व व्यवस्था. Research J. Humanities and Social Sciences. 5(3): July-September, 2014, 350-352
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सुधा राय. मराठाकालीन छत्तीसगढ़ में भूराजस्व व्यवस्था. Research J. Humanities and Social Sciences. 5(3): July-September, 2014, 350-352 Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2014-5-3-18
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