ABSTRACT:
अमृता प्रीतम मूल रूप से हिंदी की रचनाकार नही थी तथापि उन्होंने मुल रूप से हिंदी रचना में प्रयुक्त होने वाले द्विरूक्तियों का बेहतर प्रयोग किया है। द्विरूक्तियां, रचना की निरंतरता एवं लय को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और उपन्यासकार की लेखन क्षमता को प्रदर्शित करती हंै। सामान्यतया शब्द या रूप-विशेष की दो या अधिक बार आवृŸिा द्विरुक्ति कहलाती है। यथा- काला-काला, घर-घर, जहाँ-जहाँ, बच्चा-बच्चा, हँसते-हँसते आदि। इसके लिए पुनरूक्त् िशब्द भी प्रचलन में है। पुनरूक्ति से क्रमशः ‘‘बार-बार कथन’ और ‘‘बार-बार पूर्ण रूप से दोहराना’’ का बोध होता है। द्विरूक्ति के मूल में संदर्भानुसार प्रत्येकता, के साथ-साथ द्वित्व, बहुत्व आदि का भाव निहित होता है। इस दृष्टि से एक ही व्यक्ति/ स्थान/ वस्तु/ गुण/ घटना के अर्थगत वैशिष्ट्य की अभिव्यक्ति के लिए द्विरूक्ति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। (जगन्नाथन, 1981, 204)
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दुर्गावती शर्मा. अमृता प्रीतम के हिंदी उपन्यासों में द्विरूक्ति शब्दों का प्रयोग - एक विश्लेषणात्मक अध्ययन. Research J. Humanities and Social Sciences. 6(1): January-March, 2015, 18-22. doi: 10.5958/2321-5828.2015.00004.2
Cite(Electronic):
दुर्गावती शर्मा. अमृता प्रीतम के हिंदी उपन्यासों में द्विरूक्ति शब्दों का प्रयोग - एक विश्लेषणात्मक अध्ययन. Research J. Humanities and Social Sciences. 6(1): January-March, 2015, 18-22. doi: 10.5958/2321-5828.2015.00004.2 Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2015-6-1-4
संदर्भ ग्रंथ सूची
1. जगन्नाथन, वी.रा.दिल्ली. प्रयोग और प्रयोग, आॅक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी प्रेस,1981.
2. तिवारी, भोलानाथ, दिल्ली. शैलीविज्ञान, शब्दकार, 159, गुरू अंगद नगर (वैस्ट) 1997