ABSTRACT:
पृथ्वी की दो तिहाई भूमि भाग जल से परिपूरित है और शेष एक चैथाई भूमि भाग का 40 प्रतिशत भूमि वनों से आच्छादित है। वन और मानव का संबंध मानव के उस काल से जुड़ा है, जब मानव बानर के रूप में जीवन व्यतीत करते थे। इन्हीं वनों में मानव ने बानर से मानव तक के सभ्यता की यात्रा की। पाषाण युग से वैदिक काल तक मानव वनों पर आश्रित हुआ करता था। वैदिक काल में मानव ने वनों के लाभदायी गुणों से परिचय प्राप्त किया और दवाइयों के रूप में उपयोग करने के लिए जड़ी-बुटियों को प्रयोग में लाना प्रारंभ किया। वन-सम्पदा से आय प्राप्त करने की दिशा में पहला वर्णन कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है। यह चन्द्रगुप्त मौर्य का शासनकाल था, जो 273 ई.पू. वर्षों में स्थापित था। मौर्य के शासनकाल के बाद के शासकों ने वन-सम्पदाओं से प्राप्ति का लेखा-जोखा रखना प्रारंभ किया। वनों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने का कार्य मौर्य के शासनकाल में ही हो गया था, जब मौर्यकाल में वनों की सुरक्षा के लिए वनपालों की नियुक्ति की गई। मानव-सभ्यता के चरणों में वनों का निरंतर ह्नास भी हुआ, जिस पर मुगलकाल में बादशाह अकबर ने रोक लगाने और वनों के महत्व को बनाए रखने वृक्षारोपण को महत्व दिया, किंतु मुगलकाल में वनों के स्थान पर वृक्षारोपण राज्य की सड़कों एवं नहरों के किनारे पर लगाने को ज्यादा महत्व दिया गया।
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हेमंत शर्मा. बेरोजगारी उन्मुलन में राष्ट्रीयकृत लघुवनोपजों का योगदान (छŸाीसगढ़ राज्य के संदर्भ में). Research J. Humanities and Social Sciences. 3(1): Jan- March, 2012, 68-72
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हेमंत शर्मा. बेरोजगारी उन्मुलन में राष्ट्रीयकृत लघुवनोपजों का योगदान (छŸाीसगढ़ राज्य के संदर्भ में). Research J. Humanities and Social Sciences. 3(1): Jan- March, 2012, 68-72 Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2012-3-1-15
स्रोत
1. www.cgforest.com,www.forest.com पर उपलब्ध आंकड़े.
2. वन-वानिकी और मानव - कामता प्रसाद सागरीय.