Author(s): सीमा चैबे, आभा तिवारी

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Address: सीमा चैबे1 एवं आभा तिवारी2
1शोध छात्रा, हिन्दी, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर
2प्राध्यापक, हिन्दी, शा.दू.ब.म.स्ना. महाविद्यालय, रायपुर
*Corresponding Author:

Published In:   Volume - 3,      Issue - 1,     Year - 2012


ABSTRACT:
‘कथा’ साहित्य की लोकप्रिय विधा है। कहानी कला की मूल सृजन शक्ति मनुष्य की जिज्ञासा और आत्माभिव्यंजना की नैसर्गिक प्रवृत्ति है। ”कहानी की शुरुआत ही इसलिए हुई कि अपने जीवन संघर्ष के दौरान मनुष्य को जो अनुभव-संवेदन हुआ, उसे वह दूसरों से कहना-सुनना चाहता रहा है। कहानी सिर्फ आत्म-अभिव्यक्ति का एक माध्यम नहीं है। वह उससे आगे बढ़कर मानवीय संबोधन और संवाद भी है।“1 अन्य कलाओं की तरह कहानी भी एक कला है। इसकी सार्थकता कथाकार की कुशलता पर निर्भर है। सार्थक अभिव्यक्ति की कलात्मक अभिव्यंजना ही शिल्प है। मुंशी प्रेमचंद के अनुसार - ‘आज का लेखक कोई ऐसी प्रेरणा चाहता है, जिसमें सौंदर्य की झलक हो और इसके द्वारा वह पाठक की सुंदर भावनाओं को स्पर्श कर सके’ (मानसरोवर प्रथम भाग)। कहानी मुख्यतः निम्न वस्तु तत्वों से मिलकर बनती है - (1) कथानक (2) पात्र एवं चरित्र चित्रण (3) देशकाल अथवा वातावरण (4) संवाद (5) उद्देश्य।


Cite this article:
सीमा चैबे, आभा तिवारी. छत्तीसगढ़ के कथाकारों की कहानियों में वस्तु-शिल्प. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(1): Jan- March, 2012, 81-86.

Cite(Electronic):
सीमा चैबे, आभा तिवारी. छत्तीसगढ़ के कथाकारों की कहानियों में वस्तु-शिल्प. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(1): Jan- March, 2012, 81-86.   Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2012-3-1-17


संदर्भ ग्रंथ
1     वर्मा धनंजय, आधुनिक कहानी, भोपाल, मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, संस्करण 1986, भूमिका से उद्घृत
2     मेंहदी रत्ता कांता (अरोड़ा), हिन्दी कहानी का मूल्यांकन, नई दिल्ली, राधा कृष्ण प्रकाशन, संस्करण 1984, पृ.सं. 20
3     वर्मा श्रीकांत, ठंड, नई दिल्ली, वाणी प्रकाशन, संस्करण प्रथम 1985, भूमिका से उद्घृत
4     वर्मा श्रीकांत, ठंड, नई दिल्ली, वाणी प्रकाशन, संस्करण प्रथम 1985, भूमिका से उद्घृत
5     डाॅ. सिंह बच्चन, हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास, नई दिल्ली, राधा कृष्ण प्रकाशन, संस्करण 2000, पृ.सं. 430

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RNI: Not Available                     
DOI: 10.5958/2321-5828 


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