Author(s): कंचन बाला रामटेके, आभा तिवारी

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Address: कंचन बाला रामटेके1 एवं आभा तिवारी2
1शोध छात्रा, हिन्दी, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
2प्राध्यापक, हिन्दी, शा.दू.ब.म.स्ना. महाविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

Published In:   Volume - 3,      Issue - 1,     Year - 2012


ABSTRACT:
उपन्यास में घटनाएँ होती हैं, जो कि उपन्यास के शरीर का निर्माण करती हैं। यही घटनाएँ उपन्यास के जिस अंश में सम्पादित की जाती हैं, उन्हें कथावस्तु कहते हैं। यह कथावस्तु और घटनाएँ मनुष्यों पर आश्रित होती है, यही मनुष्य पात्र कहलाते हैं। ”कथावस्तु उपन्यास का प्राण हैं। उपन्यास का कथानक, इतिहास, पुराण, जीवनी, अनुश्रुति विज्ञान, राजनीति आदि से कहीं से भी ग्रहण किया जा सकता है।“1 कथानक में मार्मिकता के साथ-ही-साथ जीवन का एक स्वच्छ दृष्टिकोण भी निहित है। जिस धरातल पर आज समाज खड़ा हुआ है, वहाँ उसने पुरानी मान्यताएँ तो समाप्त कर दी है परन्तु जीवन के नये आदर्शों को ढालने में यह असफल रहा है। उपन्यास का मुख्य उद्देश्य ऐसे ही समाज में एक स्वस्थ प्रेम की भावना को विकसित होते हुए दिखाना है। ”धर्मवीर भारती जी के ‘गुनाहों का देवता’ का कथानक इतना सजल, इतना स्निग्ध और इतना मार्मिक है। इसमें गुलाब की सुकुमार पंखुरियों की भांति ही जीवन का विकास और विनाश होता है। और हम सोच ही नहीं पाते कि इसे कैसे रोका जाएं। बिनती और चन्दर के विवाह की शहनाइयां हम नहीं सुनते। सुनते हैं केवल सुधा की मचलती हुई आह, जो कि गंगा की शान्त एवं पावन धारा में विलीन हो जाती है। भारती जी का कथानक साफ-सुथरा, सुष्ठु और सन्तुलित है। यहाँ सबसे बड़ी सफलता भारती जी को इस बात में मिली है कि उन्होंने घटनाओं और अन्तद्र्वन्द का सामंजस्य बड़े सुन्दर ढंग से किया है।“2 उपन्यास का नायक चन्दर अपने संरक्षक डाॅ. शुक्ला की लड़की सुधा से प्रेम करता है - ऐसा प्रेम जिसको कि देखकर देवता भी शरमा जाएं। किन्तु वह अपनी भावनाओं में ऐसा उलझ जाता है कि बौद्धिक एवं ठोस धरातल पर आ ही नहीं पाता। और यही भावात्मक उलझन उसके विकास में घुन की तरह लग जाती है। ”दूज के चाँद सी मासूम सुधा की क्वांरी सांसों का देवता चन्दर उससे विलग हो जाने पर अपनी एकांकी आत्मा के साथ भयानक चक्रवात में जा गिरता है, जिसके हर झोंके में गुनाह था और हर आघात में एक भयानक मानसिक दर्द। लेकिन उस तूफान में पड़कर भी चन्दर डूबा नहीं, उसके पंख टूटे नहीं। वह हवाओं को चीरकर बाहर निकल आया, लेकिन तूफान के गुजर जाने के बाद उसने देखा कि आत्मा के गुलाब की पंखुरी बिखर चुकी है।“3 पात्र उपन्यास के कथा-रूपी शरीर को गति प्रदान करने वाले अवयव हैं। उपन्यास के पात्रों के क्रिया-कलाप द्वारा ही कथावस्तु का निर्माण होता है, अतः पात्र जितने अधिक सक्रिय और सजीव होंगे, उपन्यास उतना ही प्रभावशाली और रोचक सिद्ध होगा।


Cite this article:
कंचन बाला रामटेके, आभा तिवारी. गुनाहों का देवता. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(1): Jan- March, 2012, 87-89.

Cite(Electronic):
कंचन बाला रामटेके, आभा तिवारी. गुनाहों का देवता. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(1): Jan- March, 2012, 87-89.   Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2012-3-1-18


संदर्भ ग्रंथ सूची
1.        झेमचन्द्र, मल्लिक सुमन योगेन्द्र कुमार, साहित्य-विवेचन, आत्माराम एन्ड संस, दिल्ली, 1952, पृ. 153, पैरा. 2

2.        राजेन्द्र यादव के अठारह उपन्यास, अझर प्रकाशन प्रा.लि., दरियागंज, 1981, पृ. 97, पैरा. 2

3.        श्रीवास्तव शिव नारायण, सरस्वती मंदिर, वाराणसी, पृ. 117, पैरा. 2

4.        डाॅ. प्रसाद अमर, जायसवाल गणेश प्रसाद, हिन्दी लघु उपन्यास, विद्याविहार गाँधी नगर, कानपुर, 1984, पृ. 58, पैरा अन्तिम

5.        डाॅ. राजपाल हुकुमचंद, धर्मवीर भारती, साहित्य के विविध आयाम, भूमिका प्रकाशन, नई दिल्ली, 1991, पृ. 141, पैरा. 2

6.        डाॅ. झाल्टे दंगल, उपन्यास समीक्षा के नये प्रतिमान, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, 1987, पृ. 78, पैरा. 2

7.        त्यागी साधना, धर्मवीर भारती समग्र, वैभव प्रकाशन, रायपुर, 2008, पृ. 147, पैरा. 2

 

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