Author(s): श्रीनिधि पांडेय, आभा तिवारी

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Address: श्रीनिधि पांडेय1 आभा तिवारी2
1.शोधार्थी, दूधाधारी बजरंग महिला स्नात. महाविद्यालय, रायपुर
2.दूधाधारी बजरंग महिला स्नात. महाविद्यालय, रायपुर
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 3,      Issue - 1,     Year - 2012


ABSTRACT:
राहुल सांकृत्यायन जिन्हे महापंडित की उपाधि दी जाती है । हिन्दी के एक प्रमुख साहित्यकार थे । वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् थे और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में उन्होने यात्रा वृतांतध् यात्रा साहित्य तथा विश्व दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए । वह हिन्दी यात्रा साहित्य के पितामह कहे जाते है। ‘‘यात्रा वर्णन लिखने वाले साहित्यकारों में राहुलजी का नाम सबसे पहले आता है । देश- विदेश के अनुभवों का जब हम वर्णन करते है तो उनकी शैली और अधिक रसात्मक हो जाती है । वास्तव में इस रसात्मकता का आधार इनका अनुभव रहता है ।‘‘1 राहुल सांकृत्यायन उन विशिष्ट साहित्य सर्जकों में है जिन्होने जीवन और साहित्य दोनो को एक तरह से जिया । उनके जीवन के जितने मोड आये, वे उनकी तर्क बुध्दि के कारण आये । बचपन की परिस्थिति व अन्य सीमाओं को छोडकर उन्होने अपने जीवन में जितनी राहों का अनुकरण किया वे सब उनके अंतर्मन की छटपटाहट के द्वारा तलाशी गई थी । जिस राह को राहुल जी ने अपनाया उसे निर्भर होकर अपनाया । वहाॅं न द्विविधा थी न ही अनिश्चय का कुहासा । ज्ञान और मन की भीतरी पर्तों के स्पदंन से प्रेरित होकर उन्होने जीवन को एक विशाल परिधि दी । उनके व्यक्तित्व के अनेक आयाम है । उनकी रचनात्मक प्रतिभा का विस्तार भी राहुलजी के गतिशील जीवन का ही प्रमाण है । उनके नाम के साथ जुडे हुए उनेक विशेषण है । शायद ही उनका नाम कभी बिना विशेषण के लिया गया हो । उनके नाम के साथ जुडे हुए कुछ शब्द है - महापंडित, शब्द - शास्त्री, त्रिपिटकाचार्य, अन्वेषक, यायावर, कथाकार, निबंध - लेखक, आलोचक, कोशकार, अथक यात्री और भी जाने क्या - क्या । जो यात्रा उन्होने अपने जीवन में की, वही यात्रा उनकी रचनाधार्मिता की भी यात्रा थी । राहुलजी को कृतियों की सूची बहुत लंबी है । उनके साहित्य को कई वर्गो में बाॅंटा जा सकता है । कथा साहित्य जीवनी, पर्यटन, इतिहास, दर्शन, भाषा - ज्ञान, व्याकरण, कोश-निर्माण, लोक साहित्य, पुरातत्व आदि । बहिर्जगत् की यात्राएॅं और अंतर्मन के आंदोलनों का समन्वित रूप है राहुलजी की रचना - संसार घुमक्कड उनके बाल - जीवन से ही प्रारंभ हो गई और जिन काव्य - पंक्तियों से उन्होने प्रेरणा ली वे है ‘‘ सैर की दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहाॅं, जंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाॅ ‘‘ राहुलजी जीवन पर्यन्त दुनियाॅं की सैर करते रहे । इस सैर में सुविधा असुविधा का कोई प्रश्न ही नही था । जहाॅं जो साधन उपलब्ध हुए उन्हें स्वीकार किया । वे अपने अनुभव और अध्ययन का दायरा बढाते रहे । ज्ञान के अगाध भंडार थे राहुलजी । राहुलजी का कहना थ कि उन्होने ज्ञान को सफर में नाव की तरह लिया है । बोझ की तरह नही । उन्हे विश्व पर्यटक का विशेषण भी दिया गया । उनकी घुमक्कडी प्रवृत्ति ने कहा ‘‘घुमक्कडों संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है ‘‘। अनेक ग्रंथो की रचना में उनके यात्रा - अनुभव प्रेरणा के बिंदु रहे है । न केवल देश में वरन् विदेशों में भी उन्होने यात्राएॅं की, दुर्गम पथ पार किए।


Cite this article:
श्रीनिधि पांडेय , आभा तिवारी. राहुल सांकृत्यायन के व्यक्तित्व के विभिन्न आयाम. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(1): Jan- March, 2012, 151-153.

Cite(Electronic):
श्रीनिधि पांडेय , आभा तिवारी. राहुल सांकृत्यायन के व्यक्तित्व के विभिन्न आयाम. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(1): Jan- March, 2012, 151-153.   Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2012-3-1-34


संदर्भ ग्रंथ:-
1.      रस्तोगी देवीचरण, हिन्दी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास पृ. क्र. 284
2.      सांकृत्यायन डाॅ. कमला, महामानव महापंडित, पृ. 99
3.       माचवे डाॅ., प्रभाकर, राहुल सांकृत्यायन: व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ. 156

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