Author(s): जयपाल सिंह प्रजापति

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Address: जयपाल सिंह प्रजापति
सहायक प्राध्यपक-हिन्दी, शासकीय महाविद्यालय बकावण्ड, बस्तर (छ.ग.) भारत.
*Corresponding Author:

Published In:   Volume - 3,      Issue - 2,     Year - 2012


ABSTRACT:
आधुनिक वैश्विक परिदृश्य जिस गति से भूमंडलीकरण के दौर से गुजर रहा है, इससे यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि-उसकी दृष्टि और रूख भी अब गाँव की ओर है। तब भला गाँव की मिट्टी में पला-बढ़ा साहित्यकार क्यों न उसकी महक को अभिव्यक्त करता ? कृत्रिमता से दूर बिलकुल यथार्थ अभिव्यक्ति स्वाातंत्र्योत्तर हिन्दी-साहित्यकारों की रही है। इन रचनाकारों ने ग्राम-चेतना के जिन बारीक बिंदुओं को देखा-समझा तथा अपनी अनुभूति और अभिव्यक्ति का विषय बनाया है, उससे उनके गहन ग्राम्य विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण की परिणति ही स्वीकारी जानी चाहिए।


Cite this article:
जयपाल सिंह प्रजापति. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-साहित्यकारों की एक दृष्टि: ग्राम-चेतना की ओर. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(2): April-June, 2012, 161-164.

Cite(Electronic):
जयपाल सिंह प्रजापति. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-साहित्यकारों की एक दृष्टि: ग्राम-चेतना की ओर. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(2): April-June, 2012, 161-164.   Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2012-3-2-1


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RNI: Not Available                     
DOI: 10.5958/2321-5828 


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