ABSTRACT:
आधुनिक वैश्विक परिदृश्य जिस गति से भूमंडलीकरण के दौर से गुजर रहा है, इससे यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि-उसकी दृष्टि और रूख भी अब गाँव की ओर है। तब भला गाँव की मिट्टी में पला-बढ़ा साहित्यकार क्यों न उसकी महक को अभिव्यक्त करता ? कृत्रिमता से दूर बिलकुल यथार्थ अभिव्यक्ति स्वाातंत्र्योत्तर हिन्दी-साहित्यकारों की रही है। इन रचनाकारों ने ग्राम-चेतना के जिन बारीक बिंदुओं को देखा-समझा तथा अपनी अनुभूति और अभिव्यक्ति का विषय बनाया है, उससे उनके गहन ग्राम्य विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण की परिणति ही स्वीकारी जानी चाहिए।
Cite this article:
जयपाल सिंह प्रजापति. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-साहित्यकारों की एक दृष्टि: ग्राम-चेतना की ओर. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(2): April-June, 2012, 161-164.
Cite(Electronic):
जयपाल सिंह प्रजापति. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-साहित्यकारों की एक दृष्टि: ग्राम-चेतना की ओर. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(2): April-June, 2012, 161-164. Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2012-3-2-1