Author(s): हेमंत शर्मा

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DOI: Not Available

Address: हेमंत शर्मा
पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर
*Corresponding Author:

Published In:   Volume - 3,      Issue - 2,     Year - 2012


ABSTRACT:
सी.एस. जार्ज (जू.) ने प्रबंध के संबंध में कहा कि- ‘‘प्रबंध का तात्पर्य दूसरों के माध्यम से कार्य को पूरा कराना है’’, किंतु आज के प्रबंधशास्त्रियों की विचारधारा के अनुसार वर्तमान समय में प्रबंध का कार्य प्रभावशाली नेतृत्व प्रदान करना है। यह विचारधारा आज की नहीं अपितु रामायण काल में जब आज के प्रबंधशास्त्र की कल्पना भी नहीं की गई थी, तब प्रभु श्रीराम जी द्वारा प्रभावशाली नेतृत्व प्रदान कर उद्देश्य की प्राप्ति की गई थी, जब वो किसी राज्य के राजा भी नहीं थे अर्थात् यह विचारधारा, ‘‘प्रबंध का कार्य प्रभावशाली नेतृत्व प्रदान करना है’’ सनातन काल से शाश्वत है। रामायण का अध्ययन जिस विषय-दृष्टि से की जावे, इसमें उस विषय-वस्तु का सार-विवरण मिलेगा। रामायण शास्त्रों की खान है, प्रबंध की विषय-दृष्टि से अध्ययन करने पर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि रामायण प्रबंध की पहली पाठशाला थी और प्रबंधशास्त्र का मूल उद्भव रामायण से ही हुआ है।


Cite this article:
हेमंत शर्मा. रामायण: ‘‘प्रबंध का मूल’’ विजयसूत्र अभिप्रेरणा. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(2): April-June, 2012, 173-178.

Cite(Electronic):
हेमंत शर्मा. रामायण: ‘‘प्रबंध का मूल’’ विजयसूत्र अभिप्रेरणा. Research J. Humanities and Social Sciences. 3(2): April-June, 2012, 173-178.   Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2012-3-2-3


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RNI: Not Available                     
DOI: 10.5958/2321-5828 


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