Author(s): सुषमा नारा

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DOI: Not Available

Address: सुषमा नारा
म0 नं0 368, सैक्टर-14, रोहतक (हरियाणा)
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 4,      Issue - 2,     Year - 2013


ABSTRACT:
स्वामी दयानन्द ने अपने दार्षनिक अध्ययन में अनेक ग्रंथों में विभिन्न विषयों का उल्लेख किया है। स्वामी दयानन्द ने पुनर्जन्म विषय को भी विभिन्न ग्रन्थों में वैदिक प्रमाणों के साथ स्पष्ट किया है। उन्होंने अपने ग्रन्थों में विभिन्न वेदों व दर्षनों का प्रमाण देकर पुनर्जन्म विषय का स्पष्टीकरण किया है। उनकी यह पुनर्जन्म संबधि विचारधारा दार्षनिक जगत् में एक अलग प्रकार की विचारधारा है। वे ऋग्वेद का उदाहरण देकर स्पष्ट करते हैं ‘असुनीते पुनरस्मासु .......................................या स्वस्तिः।’1 अर्थात् हे सुखदायक परमेष्वर । आप कृपा करके पुनर्जन्म में हमारे बीच में उत्तम नेत्र आदि सब इन्द्रियां स्थापन कीजिए, तथा प्राण अर्थात् मन, बुद्धि, चित्त, अंहकार, बल, पराक्रम आदि युक्त शरीर पुनर्जन्म में कीजिए। हे जगदीष्वर। इस संसार अर्थात् इस जन्म और परजन्म में हम लेाग उत्तम भोगों को प्राप्त हों, तथा हे भगवान्। आपकी कृपा से सूर्यलोक, प्राण और आपको विज्ञान तथा प्रेम से सदा देखते रहें। हे अनुमते अर्थात् सबको मान देने वाले, सब जन्मों में हम लोगों को सुखी रखिए, जिससे हम लोगों को स्वस्ति अर्थात् कल्याण की प्राप्ति हो।2ं


Cite this article:
सुषमा नारा. स्वामी दयानन्द के मत में पुनर्जन्म. Research J. Humanities and Social Sciences. 4(1): January-March, 2013, 238-241.

Cite(Electronic):
सुषमा नारा. स्वामी दयानन्द के मत में पुनर्जन्म. Research J. Humanities and Social Sciences. 4(1): January-March, 2013, 238-241.   Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2013-4-2-23


संदर्भ ग्रंथ सूची
1.      ’’असुनीते पुनरस्मासु चक्षु पुनः प्राणमिह नो द्योहि भोगम्। ज्योक् पश्येम सूर्यमुच्चरन्तमनुमते मृडया नः स्वस्ति।।’’ ऋ0, अ0 8, 1, व0 - 23, मं0 6, 7।
2.      ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, पुनर्जन्म विषय, महर्षि दयानन्द सरस्वती, झण्डेवालन, अजमेरी गेट, दिल्ली - 4, प्रथम संस्करण - 1998, पृ0 सं0 - 227।
3.      वही पृ0 सं0 - 230।
4.      पुनर्मत्विन्द्रियं  कल्पयन्तामिहैव,  अथर्ववेद, काण्ड-7, अनु0-6, व0 - 67, मं0-1
5.      ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, पुनर्जन्म विषय, महर्षि दयानन्द सरस्वती, झण्डेवालन, अजमेरी गेट, दिल्ली - 4, प्रथम संस्करण - 1998, पृ0  सं0 - 230।
6.      पतंजलि योगसूत्र, पाद-2, सूत्र-0।
7.      ऋ0 भा0 भू0, पु0 वि0, पृ0 सं0 - 232।
8.      ‘पुनरूत्पत्ति प्रेत्यभावः’ न्यायदर्षन आ01, अ01, सू0 - 29।
9.      ऋ0 भा0 भू0, पु0 वि0, पृ0 सं0 - 233।
10.     सांख्य सूत्र - 1.15 9 महर्षि कपिल, भारतीय विद्या प्रकाषन, वाराणसी, संस्करण, 1977।
11.     दयानन्द सिद्धान्त सन्दर्भ कोष, प्रो0 ज्ञान प्रकाष शास्त्री, परिमल पब्लिकेषन, शक्ति नगर दिल्ली, प्रथम संस्करण- 2011, पृ0 सं0 - 564।
12.     युर्जेवेद भाष्य - 39.6 महर्षि दयानन्द, आर्ष सहित्य प्रचार ट्रस्ट, खारी बावली, दिल्ली -6, 1973।
13.     ऋ0 भा0 भू0, पु0 वि0, स्वामी दयानन्द सरस्वती, महर्षि दयानन्द सरस्वती, झण्डेवालन, अजमेरी गेट, दिल्ली - 6, प्रथम संस्करण - 1998, पृ0 सं0 - 232।
14.     वही पृ0 सं0 - 232।
15.     सत्यार्थ प्रकाष, नवम् सम्मुल्लास, स्वामी दयानन्द सरस्वती, आर्य साहित्य प्रचार ट्रस्ट, खारी बावली, 65वां संस्करण  नवम्बर-2007, दिल्ली-3, पृ0            सं0 - 167।
16.     दयानन्द सिद्धान्त सन्दर्भ कोष, प्रो0 ज्ञान प्रकाष शास्त्री, परिमल पब्लिकेषन्स, शक्तिनगर, दिल्ली, पृथम संस्करण-2011, पृ0 सं0 - 565।
17.     वही पृ0 सं0 - 565।
18.     सत्यार्थ प्रकाष, नवम् सम्मुल्लास, पृ0 सं0 - 178।
19.     वही पृ0 सं0 - 179।
20.     ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, पुनर्जन्म विषय, पृ0 सं0 - 230।
21.     वही पृ0 सं0 - 179-180।
22.     ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, पुनर्जन्म विषय, पृ0 सं0 - 229।

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