Author(s):
सत्येन्दु शर्मा, संजय चन्द्राकर, ज्योति रवि तिवारी
Email(s):
Email ID Not Available
DOI:
Not Available
Address:
सत्येन्दु शर्मा1 संजय चन्द्राकर2 एवं ज्योति रवि तिवारी3
1विभागाध्यक्ष (संस्कृत)ए शास. दू.ब. महिला स्नात. महाविद्यालय, रायपुर, (छ. ग
2सहा. प्राध्यापक (समाजशास्त्र)ए शास. दू.ब. महिला स्नात. महाविद्यालय, रायपुर, (छ. ग
3संकायाध्यक्ष (गृहविज्ञान)ए शास. दू.ब. महिला स्नात. महाविद्यालय, रायपुर, (छ. ग
*Corresponding Author:
Published In:
Volume - 1,
Issue - 3,
Year - 2010
ABSTRACT:
आदिम युग में सहवास एवं प्रसव भले ही एक स्वाभाविक कर्म रहा हो, लेकिन वैदिक काल से विकसित होते हुए गृह्यसूत्रकाल तक गर्भाधान एक सुव्यवस्थित संस्कार के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। गृह्यसूत्रोें के अनुसार पति मनोवांछित पुत्र- पुत्री प्राप्ति के लिए व्रत धारण करता था, व्रत की समाप्ति पर अग्नि में पक्कान्न की आहुति दी जाति थी और तब वैदिक ऋचाओं का गान करता हुआ पति अपनी सुसज्जित पत्नी में गर्भाधान करता था।
Cite this article:
सत्येन्दु शर्मा, संजय चन्द्राकर, ज्योति रवि तिवारी. गर्भाधान संस्कार का वैज्ञानिक महत्व. Research J. of Humanities and Social Sciences. 1(3): Oct.-Dec. 2010, 89-90.
Cite(Electronic):
सत्येन्दु शर्मा, संजय चन्द्राकर, ज्योति रवि तिवारी. गर्भाधान संस्कार का वैज्ञानिक महत्व. Research J. of Humanities and Social Sciences. 1(3): Oct.-Dec. 2010, 89-90. Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2010-1-3-4
संदर्भग्रंथः-
1 मनुस्मृति
2 याज्ञवल्क्यस्मृति
3 भागवतपुराण
4 महाभारत