Author(s):
भानुप्रकाश खरे
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भानुप्रकाश खरे
शोधार्थी (संस्कृत), शोध अध्ययन केन्द्र, शास. स्वशा.स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दतिया (म.प्र.)
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 5,
Issue - 2,
Year - 2014
ABSTRACT:
श्रीमद्भागवत में संस्कारों का विस्तृत वर्णन किया गया है। संस्कार मनुष्य का चहुँमुखी विकास करते हैं। संस्कार का शाब्दिक अर्थ है सुधारने की प्रक्रिया। भागवतकालीन मानव का जीवन संस्कार सम्पन्न होता था। संस्कार की प्रक्रियाओं में देवताओं के समक्ष शुद्ध और उन्नतोन्मुखी भावी जीवन की प्रतिज्ञा की जाती है। संस्कारों के माध्यम से मनुष्य अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वाह करना भी सीखता है। गर्भाधान से अन्त्येष्टि संस्कार जिनके होते हैं, वही द्विज कहलाते हैं।1
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भानुप्रकाश खरे. श्रीमद्भागवत में संस्कारों की विवेचना. Research J. Humanities and Social Sciences. 5(2): April-June, 2014, 239-240
Cite(Electronic):
भानुप्रकाश खरे. श्रीमद्भागवत में संस्कारों की विवेचना. Research J. Humanities and Social Sciences. 5(2): April-June, 2014, 239-240 Available on: https://www.rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2014-5-2-17
संदर्भ:-
1. श्रीमद्भागवत - 7/15/52
2. वही - 3/14/11
3. वही - 10/5/1-3, 6/14/33
4. वही - 1/12/14
5. वही - 10/07/8
6. धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग) पृ.-195
7. श्रीमद्भागवत - 10/8/11
8. वही - 10/8/12
9. वही - 3/24/19
10. वही - 5/9/4
11. वही - 10/45/26-31
12. वही - 12/2/3
13. वही - 5/9/4
14. ऋग्वेद - 10/14-19
15. श्रीमद्भागवत - 9/10/12
16. वही - 9/10/29
17. वही - 7/10/22
18. वही - 7/10/24